बिहार में 14 फरवरी यानि वैलेंटाइन डे के दिन से इंटरमीडिएट की परीक्षा शुरू हो गई है. इंटर की परीक्षा का नाम आते ही पिछले साल के इंटर टापर्स की याद आ जाती है. यूं तो बिहार में मैट्रिक और इंटर की परीक्षा शान्तिपूर्ण और कदाचारमुक्त कराना मुश्किल ही नहीं बल्कि बहुत मुश्किल है. फिर भी सरकार ने इंटर की परीक्षा की ऐसी तैयारी की है जैसे कोई आपदा प्रबंधन का मामला हो. अखबारों में तीन दिन से विज्ञापन छापे जा रहे है कि कदाचार मुक्त परीक्षा के लिए क्या क्या कदम उठाये जा रहे हैं. अगर किसी परीक्षा केन्द्र पर कदाचार की सूचना आती है तो उस केन्द्र को ब्लैकलिस्टेड कर दिया जायेगा वगैरह वगैरह.
पिछले से पिछले साल यानि 2015 में जमकर नकल हुई थी. चार चार मंजिला पर चढ़कर पूरी दुनिया ने इस करतब को देखा होगा. खैर वो वर्ष बिहार में चुनावी वर्ष था. सौभाग्यशाली बच्चे वही होते हैं जिनकी परीक्षा चुनावी वर्ष में होती है. उस वर्ष सरकारें चुनाव जीतने के अलावा कुछ नहीं सोचतीं, धड़ाधड़ योजनाओं का शिलान्यास होता है. वो घोषणाएं होती है जो कभी पूरी नहीं होतीं. और सबसे बडा फैसला परीक्षा में बच्चों को खुली छुट मिल जाती है. यही हुआ उस वर्ष लेकिन उसके बाद 2016 में बिहार में नई गठबंधन की सरकार बनी. सबमें जोश था कि कुछ कर दिखाना है. सरकार ने सोचा कि सबसे पहले उस दाग को धोया जाए जिसकी वजह से पिछली सरकार की अंतिम समय में किरकिरी हुई थी. संयोग से उस समय भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे.
बात 2016 की हो रही है नई सरकार थी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नये जोश नये गठबंधन की सरकार के साथ कदाचार का जो कलंक बिहार पर लगा था उसे धो डालना चाहते थे. संयोग से शिक्षामंत्री भी नए, 11 वर्षों के बाद अशोक चौधरी को मंत्री का पद मिला इसलिए वो भी जोश में...
बिहार में 14 फरवरी यानि वैलेंटाइन डे के दिन से इंटरमीडिएट की परीक्षा शुरू हो गई है. इंटर की परीक्षा का नाम आते ही पिछले साल के इंटर टापर्स की याद आ जाती है. यूं तो बिहार में मैट्रिक और इंटर की परीक्षा शान्तिपूर्ण और कदाचारमुक्त कराना मुश्किल ही नहीं बल्कि बहुत मुश्किल है. फिर भी सरकार ने इंटर की परीक्षा की ऐसी तैयारी की है जैसे कोई आपदा प्रबंधन का मामला हो. अखबारों में तीन दिन से विज्ञापन छापे जा रहे है कि कदाचार मुक्त परीक्षा के लिए क्या क्या कदम उठाये जा रहे हैं. अगर किसी परीक्षा केन्द्र पर कदाचार की सूचना आती है तो उस केन्द्र को ब्लैकलिस्टेड कर दिया जायेगा वगैरह वगैरह.
पिछले से पिछले साल यानि 2015 में जमकर नकल हुई थी. चार चार मंजिला पर चढ़कर पूरी दुनिया ने इस करतब को देखा होगा. खैर वो वर्ष बिहार में चुनावी वर्ष था. सौभाग्यशाली बच्चे वही होते हैं जिनकी परीक्षा चुनावी वर्ष में होती है. उस वर्ष सरकारें चुनाव जीतने के अलावा कुछ नहीं सोचतीं, धड़ाधड़ योजनाओं का शिलान्यास होता है. वो घोषणाएं होती है जो कभी पूरी नहीं होतीं. और सबसे बडा फैसला परीक्षा में बच्चों को खुली छुट मिल जाती है. यही हुआ उस वर्ष लेकिन उसके बाद 2016 में बिहार में नई गठबंधन की सरकार बनी. सबमें जोश था कि कुछ कर दिखाना है. सरकार ने सोचा कि सबसे पहले उस दाग को धोया जाए जिसकी वजह से पिछली सरकार की अंतिम समय में किरकिरी हुई थी. संयोग से उस समय भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे.
बात 2016 की हो रही है नई सरकार थी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नये जोश नये गठबंधन की सरकार के साथ कदाचार का जो कलंक बिहार पर लगा था उसे धो डालना चाहते थे. संयोग से शिक्षामंत्री भी नए, 11 वर्षों के बाद अशोक चौधरी को मंत्री का पद मिला इसलिए वो भी जोश में थे. परीक्षा बहुत शान्तिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गई. मीडिया कदाचार का निशान ढुंढती रह गई. सबकुछ अच्छा चल रहा था, रिजल्ट आया और सब कुछ मिट्टी में मिल गया.
हाय रे किस्मत एक तो बिहार इंटरमीडिएट में आर्ट्स की टॉपर रूबी राय हुई, जिसे अपने सब्जेक्ट तक के बारे में भी जानकारी नहीं थी, उपर से मीडिया ने सब्जेक्ट के बारे में ही पूछ लिया सब भेद खुल गया. विज्ञान का टाॉपर सौरव, दोनों एक ही बच्चा राय के कालेज से, उसके बाद जो कुछ हुआ सबको मालूम है. बाद में पता चला कि इस बार कदाचार तो नहीं हुआ पूरा का पूरा परीक्षा केन्द्र ही मैनेज हो गया. उसके बाद भी कुछ कसर रह गई तो कॉपी को फिर से एक्सपर्ट से लिखवाया गया इसमें सभी की मिली भगत भी सामने आई. बोर्ड के अध्यक्ष लालकेश्वर सिंह, सचिव हरिहरनाथ झा और टापर्स कालेज के प्रिंसिपल बच्चा राय जेल गए. फिलहाल बच्चा राय को जमानत मिल गई है.
अब 2017 की बारी है. इस बार बिहार विद्यालय परीक्षा समीति ने फुल प्रूफ व्यवस्था की है. 12 लाख से अधिक छात्र इस बार परीक्षा दे रहे हैं. सभी परीक्षा केन्द्रों पर सीसीटीवी कैमरा लगाया गया है. इस बार फार्म भी आनलाइन भरवाया गया छात्रों से जिसकी वजह से बहुत से छात्र छात्राओं का एडमिट कार्ड ही नहीं आया. परीक्षा बोर्ड अचानक इतना हाई टेक हो गया कि बच्चो की कौन कहें 35 वर्षों से प्रिसिंपल कामिनी जी को भी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें. बरौनी इंटर कालेज की प्रिसिंपल कामिनी पहुंची थी पता करने की उनके कालेज के कुछ बच्चों का एडमिट कार्ड क्यों नहीं आया तो पता चला कि सब कुछ आनलाइन है ऐसे में अब कुछ नहीं हो सकता है, बोर्ड के बाबूओं ने प्रिंसिपल साहिबा को कहा कि अब कालेज में ही कुछ हो सकता है बाद में प्रिंसिपल को समझ आया कि प्रिंसिपल तो वही है फिर कॉलेज किसके पास जाए, वो बार-बार आग्रह कर रही थी कि किसी तरह परीक्षा का डेट बढ़ जाये.
भाग्यनारायण कन्या महाविद्यालय की छात्राएं भी भाग्य भरोसे ही हैं. कामिनी जी का कहना है कि वो 1982 से इस कालेज की प्रिंसिपल हैं लेकिन ऐसा हादसा पहले कभी उनके साथ नहीं हुआ. हादसा से उनका मतलब एडमिट कार्ड नहीं मिलने से है, उन्होंने कहा कि अचानक बोर्ड ने आनलाइन फार्म भरने का फरमान जारी कर दिया. उनके कालेज में न तो कम्प्यूटर है और न ही कोई कम्प्यूटर चलना जानता है ऐसे में कैफे में जाकर उन्होंने 11 सौ से अधिक लडकियों का फार्म भरा जिसमें से कुछ का एडमिट कार्ड आया और कुछ का नहीं आया बहुत परेशान हैं. परेशानी में वो ये भी भूल गई कि इंटर में कुल कितने सब्जेक्ट हैं हर बार वो नया अंक ही बोलती रहीं.
बहरहाल इस बार बिहार परीक्षा बोर्ड की कमान एक आईएएस अधिकारी आनंद किशोर के हाथ में है उन्होंने परीक्षा की व्यवस्था सुधारने की बहुत कोशिश की है. मीडिया तक को परीक्षा केन्द्र में जाने से रोक लगा दी है. अब ये देखना होगा कि परीक्षा से लेकर रिजल्ट तक कुछ गड़बड़झाला न हो जाये. क्योंकि पहले ही कहा गया है कि बिहार में परीक्षा कराना किसी आपदा से कम नहीं है. बिहार कर्मचारी चयन आयोग का मामला अभी चल रहा है, करोड़ों का माल लेकर पेपर आउट कराने से लेकर रिजल्ट मैनेज करने का काम होता रहा है. आयोग के सचिव परमेश्वर राम भी गिरफ्तार हो गए हैं इसलिए बिहार में ये जुमला चल रहा है कि टॉप कराएगा लालकेश्वर और नौकरी देगा परमेश्वर...
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