दर्शक-श्रोता के दिलों दिमाग में बनी छवि को बदलना आसान नही होता. अमूमन खुद कलाकार भी अपने पेशे और हुनर से दूरी रख पाने में असफल होते देखे जा सकते हैं. भोजपुरी गीत संगीत और फिल्मों की दुनिया का जाना पहचाना नाम मनोज तिवारी अपनी जिस धारदार आवाज और गीतों के लिए जाने जाते हैं. उतना एक सांसद रहते हुए उन्हें कभी नहीं जाना गया. कई बार अपनी जन सभाओं में उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. कहने को तो मनोज तिवारी बीजेपी के दिल्ली में रह रहे भोजपुरी वोटरों को साधने वाले उम्मीदवार और सांसद हैं. लेकिन उनकी उस समाज में बनी छवि आज भी देखें तो 'ए गोरी ढेर भइल चोरवा सिपहिया' 'मार देनी चट से तमाचा' सरीखे अन्य लोकप्रिय और सीधे अर्थों में कहें तो फूहड़ भोजपुरी गीतों के जरिये ही बनी है. इन सारी बातों के बावजूद इस बात को नाकारा नहीं जा सकता कि मनोज के ही चलते आज भोजपुरी को दुनिया में एक नई और वैश्विक पहचान मिली है.
बीते दिनों दिल्ली में ही एक सभा में एक महिला शिक्षिका ने मनोज तिवारी के उसी गीतकार मन को अपने अंतरमन में उतार एक गाने की फरमाइश की थी. पूरे सोशल मीडिया और मीडिया चैनलों में इसके बाद हुए बवाल को शायद ही कभी भुलाया जा सके. ऐसा भी सोचा गया कि जननेता होने के बाद एक कलाकार ने सामाजिक मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन संभवतः बंद कर दिया होगा. लेकिन हाल फिलहाल में जिस तरह एक तस्वीर सोशल मीडिया में तैर रही है उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि गायक और सांसद मनोज तिवारी की अपनी प्रतिष्ठा दांव पर है.
आगामी 12 अगस्त को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में सपना चौधरी के साथ मनोज तिवारी का साझा स्टेज कार्यक्रम रखा गया है. ऐसे मे अगर माननीय सांसद महोदय के प्रोटोकोल का ध्यान रखकर यह...
दर्शक-श्रोता के दिलों दिमाग में बनी छवि को बदलना आसान नही होता. अमूमन खुद कलाकार भी अपने पेशे और हुनर से दूरी रख पाने में असफल होते देखे जा सकते हैं. भोजपुरी गीत संगीत और फिल्मों की दुनिया का जाना पहचाना नाम मनोज तिवारी अपनी जिस धारदार आवाज और गीतों के लिए जाने जाते हैं. उतना एक सांसद रहते हुए उन्हें कभी नहीं जाना गया. कई बार अपनी जन सभाओं में उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. कहने को तो मनोज तिवारी बीजेपी के दिल्ली में रह रहे भोजपुरी वोटरों को साधने वाले उम्मीदवार और सांसद हैं. लेकिन उनकी उस समाज में बनी छवि आज भी देखें तो 'ए गोरी ढेर भइल चोरवा सिपहिया' 'मार देनी चट से तमाचा' सरीखे अन्य लोकप्रिय और सीधे अर्थों में कहें तो फूहड़ भोजपुरी गीतों के जरिये ही बनी है. इन सारी बातों के बावजूद इस बात को नाकारा नहीं जा सकता कि मनोज के ही चलते आज भोजपुरी को दुनिया में एक नई और वैश्विक पहचान मिली है.
बीते दिनों दिल्ली में ही एक सभा में एक महिला शिक्षिका ने मनोज तिवारी के उसी गीतकार मन को अपने अंतरमन में उतार एक गाने की फरमाइश की थी. पूरे सोशल मीडिया और मीडिया चैनलों में इसके बाद हुए बवाल को शायद ही कभी भुलाया जा सके. ऐसा भी सोचा गया कि जननेता होने के बाद एक कलाकार ने सामाजिक मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन संभवतः बंद कर दिया होगा. लेकिन हाल फिलहाल में जिस तरह एक तस्वीर सोशल मीडिया में तैर रही है उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि गायक और सांसद मनोज तिवारी की अपनी प्रतिष्ठा दांव पर है.
आगामी 12 अगस्त को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में सपना चौधरी के साथ मनोज तिवारी का साझा स्टेज कार्यक्रम रखा गया है. ऐसे मे अगर माननीय सांसद महोदय के प्रोटोकोल का ध्यान रखकर यह कार्यक्रम रखा गया है तो यह जरूर पता लगाया जाना चाहिए कि किसने मनीज तिवारी जी से इस कार्यक्रम के लिए मंजूरी मांगने की हिमाकत की होगी. क्या पैसे ज्यादा मिलने की वजह से मनोज वहां जा रहे है या फिर वो अपनी मधुर तान से एक बार फिर जनता को ठगने का इरादा रख रहे हैं.
यह वही सपना चौधरी है जिन्होंने खुद अपने एक स्टेज प्रोग्राम में रवि किशन को स्टेज पर आमंत्रित करते हुए कहा था कि इनके (मनोज तिवारी) कुछ प्रोटोकॉल होते हैं पर मैं आपको (रवि किशन) छोडूंगी नहीं. फिलहाल देखना होगा कि आगामी 12 अगस्त को गाजीपुर में जमी महफ़िल में सपना चौधरी संग दिल्ली के सांसद दर्शकों का कितना मनोरंजन कर पाते हैं? साथ ही दर्शकों श्रोताओं की फरमाइश के लिए उन्होंने क्या नया लिख रखा है इस पर भी कइयों की नज़रे रहेंगी.
सीधे तौर पर मनोज तिवारी जैसे गीतकार जो अपने गीतों के लोकप्रिय होने के कारण ही जननेता बन जाते हैं उन्हें यह भी समझना होगा कि उनकी अपनी पहचान उनका पेशा और हुनर ही है. इस पर उनका जितना हक है उतना ही गीतकार और श्रोता का भी है.
प्रोटोकॉल जैसे अन्य संवैधानिक शब्दों का अगर असल मतलब भारत जैसे देश की अर्धशिक्षित और गरीब जनता समझने लगे तो फूहड़ से फूहड़ गानों को गाकर बने गीतकार कभी लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच ही नहीं सकते. गौरतलब है कि पढ़ा लिखा दर्शक समूह भी मनोज तिवारी के गीतों का शौकीन हुआ करता था और आज भी है. महिला शिक्षिका उन्हीं में से एक थी.
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