मुझे याद है जब मैं 'वहां' जाती थी तो बड़े दिनों में मिलने वाले कुछ कज़न्स मेरे शरीर की 'ग्रोथ' पर बड़ी पैनी नज़र रखते थे. वह इतनी तीखी होती थी कि मैं आसानी से भांप सकती थी. स्कूल में साथ के अधिकांश लड़के जब लड़कियों को टारगेट करते या उन पर जोक्स बनाते तो वे उसे 'प्राइवेट टाक' कहते थे. यह परिपाटी की तरह अब तक चला आ रहा है. जिसमें वे क्लास की किसी भी करीबी सहपाठी को हिस्सा नहीं बनाते थे/हैं. दफ़्तर में अधिकांश सहकर्मी आज फलां क्या पहनकर आई और किसमें उसके स्तन ज़्यादा कसे हुए दिखते हैं, कमर की शेप ज़्यादा लचीली और सेक्सी दिख रही है. यह बातें सिगरेट टाइम में छल्लों के साथ उड़ाते.
अधिकांश पुरुषों को अपनी सहकर्मियों-सहपाठियों के 'बूब साइज़' पता होते हैं जो लड़कियों ने उन्हें नहीं बताए होते बल्कि लड़कों ने ख़ुद अपनी 'एक्सरे-निगाहों' से नापे होते हैं. जिसे वे गाहे-बगाहे आपस में 'मर्दों की बातें हैं' टैग के नीचे डिस्कस करते हैं. कॉलेज के दिनों में कुछ लड़के जानकर लड़कियों के बैग में हाथ डालते थे फिर ठहाके लगाते थे कहकर कि इसमें तो "वो चीज़" रखी है. लड़कियां झेंप जाती थीं.
अधिकांश मर्दों के फ़ोन में कुछ व्हाट्सएप ग्रुप्स ऐसे होते हैं जिन्हें सबसे बचाए रखने के लिए वे सीक्रेट कोड्स में पासवर्ड रखते हैं. साथ ही ग्रुप्स में भी सीक्रेट कोड्स में बातें होती हैं. स्त्रियों के बारे में बने जोक्स/वल्गर कमेंट डिस्कस किए जाते हैं. एमएमएस पास किए जाते हैं.
उसने चौदह साल की उम्र में अपनी आठ वर्ष की बहन को 'सेक्सुअली हरास्ड', और 'काइंड ऑफ रेप' सिर्फ इसलिए किया क्योंकि वह जब अपनी बहनों के साथ ठिठौली करता तो घर की औरतें उसे रोकती...
मुझे याद है जब मैं 'वहां' जाती थी तो बड़े दिनों में मिलने वाले कुछ कज़न्स मेरे शरीर की 'ग्रोथ' पर बड़ी पैनी नज़र रखते थे. वह इतनी तीखी होती थी कि मैं आसानी से भांप सकती थी. स्कूल में साथ के अधिकांश लड़के जब लड़कियों को टारगेट करते या उन पर जोक्स बनाते तो वे उसे 'प्राइवेट टाक' कहते थे. यह परिपाटी की तरह अब तक चला आ रहा है. जिसमें वे क्लास की किसी भी करीबी सहपाठी को हिस्सा नहीं बनाते थे/हैं. दफ़्तर में अधिकांश सहकर्मी आज फलां क्या पहनकर आई और किसमें उसके स्तन ज़्यादा कसे हुए दिखते हैं, कमर की शेप ज़्यादा लचीली और सेक्सी दिख रही है. यह बातें सिगरेट टाइम में छल्लों के साथ उड़ाते.
अधिकांश पुरुषों को अपनी सहकर्मियों-सहपाठियों के 'बूब साइज़' पता होते हैं जो लड़कियों ने उन्हें नहीं बताए होते बल्कि लड़कों ने ख़ुद अपनी 'एक्सरे-निगाहों' से नापे होते हैं. जिसे वे गाहे-बगाहे आपस में 'मर्दों की बातें हैं' टैग के नीचे डिस्कस करते हैं. कॉलेज के दिनों में कुछ लड़के जानकर लड़कियों के बैग में हाथ डालते थे फिर ठहाके लगाते थे कहकर कि इसमें तो "वो चीज़" रखी है. लड़कियां झेंप जाती थीं.
अधिकांश मर्दों के फ़ोन में कुछ व्हाट्सएप ग्रुप्स ऐसे होते हैं जिन्हें सबसे बचाए रखने के लिए वे सीक्रेट कोड्स में पासवर्ड रखते हैं. साथ ही ग्रुप्स में भी सीक्रेट कोड्स में बातें होती हैं. स्त्रियों के बारे में बने जोक्स/वल्गर कमेंट डिस्कस किए जाते हैं. एमएमएस पास किए जाते हैं.
उसने चौदह साल की उम्र में अपनी आठ वर्ष की बहन को 'सेक्सुअली हरास्ड', और 'काइंड ऑफ रेप' सिर्फ इसलिए किया क्योंकि वह जब अपनी बहनों के साथ ठिठौली करता तो घर की औरतें उसे रोकती नहीं. जिनके बीच बैठकर वह सब करता. जब वह चलते-चलते अपने से पांच साल छोटी बहन का बरमूडा खिसका देता तो चाची कहती, पागल है.
जब वो फलां कज़न के घर बार-बार उसी समय जाता जब वह अकेली होती तो जानकर भी घरवाले चुप रह जाते. वह क्रिमिनल उस बच्ची को सेक्सुअली ह्रास करने के बाद भी घर का हिस्सा बना रहा, लायक बेटा बना रहा. यही प्रवर्ति औरतों के लिए 'ऑब्जेक्टिफिकेशन' को जन्म देती है। क्योंकि जिस समय इन 'लायक़ बेटों' को थप्पड़ मारने की ज़रूरत थी नहीं मारे गए.
मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद अधिकांश घर के मर्दों को यह पता होता है कि किस औरत का पेट और पीठ साड़ी में से ज़्यादा झांक रहा था. यह जो 'अधिकांश' है ना इससे हम अब तक नहीं चेते. मां बहन की गालियां तो हमारे यहाँ जुमलों की तरह इस्तेमाल की जाती हैं.
ये #बॉयज़लॉकररूम 'सिर्फ एक' हमारे सामने आया है. ऐसे कई होंगे जो हमारे आसपास होंगे लेकिन हमें ख़बर नहीं. औरतों को ऑब्जेक्ट की तरह देखना नई बात नहीं है. इस मामले में नया और डरावना बस यह है कि अब हम इसे उजागर क्राइम की श्रेणी में रख रहे हैं. यह हमारे सामने है, जहां 'बच्चे' ये कह रहे हैं कि 'उसे बुला, मैं बड़ी आसानी से उसका रेप कर सकता हूं. अपने साथ दो-चार और लोगों को लाना.'
यह जानना डरावना है कि ये बच्चे ऐसा लिखने के बाद अपने घरों में, अपनी मां-बहन-पिता के सामने सामान्य रह रहे होंगे, घरवालों के दुलारे बनकर. जिनके माता-पिता इनके करियर की चिंता में ख़ाक हो रहे होंगे इस बात से अनजान कि बेटा 'करियर' नहीं 'क्राइम' प्लान कर रहा है. हद यह है कि पकड़े जाने के कुछ ही घंटे बाद यह फिर शुरू होता है इस हिदायत के साथ कि 'अब फ़ेक प्रोफाइल्स से आना ताकि पकड़े ना जाओ.'
बॉयज़ लॉकर रूम उस अनदेखी का नतीजा है जो हमारे समाज में बेटों के साथ 'अरे लड़के हैं' और आज के ज़माने में बच्चों के साथ 'we should not get involved in their privacy' के नाम पर की जाती है.
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