शादी को हमेशा से एक पवित्र बंधंन माना जाता है. हमारे शास्त्रों में शादी, पति, ससुराल, सास-ससुर सभी को बहुत ऊंचा स्थान मिला हुआ है और पत्नी के लिए कुछ तय निर्देश हैं. पत्नी को हमेशा सास-ससुर, पति की सेवा करनी होती है और उसे हर समय देवता के स्थान पर रखना होता है. ऋषि कपूर और फराह की फिल्म नसीब अपना-अपना में तो एक पूरा का पूरा गाना इसी बात पर निर्धारित किया गया है, 'भला है बुरा है जैसा भी है. मेरा पति मेरा देवता है.' इसी भारतीय सोच ने कभी न तो शादी को न ही इसके रिवाजों को सवालों को कटघरे में खड़ा किया.
पर एक बार अगर पति को देवता की गद्दी से थोड़ा नीचे लाकर देखेंगे तो पाएंगे कि वो भी आम इंसान ही है. वो भी गलतियां करता है, वो भी घर के काम कर सकता है, वो भी पत्नी की तरह इंसान है. अगर पति को इंसान मानना शुरू कर देंगे तो शायद शादियों के नियमों पर भी सवाल उठने लगेंगे. आखिर क्यों सिर्फ पत्नी ही मंगलसूत्र पहने, क्यों सिर्फ वही सिंदूर लगाए? क्यों कन्यादान किया जाए? इसका उल्टा भी हो सकता है. बेशक हो सकता है. समानता के अधिकारों की बात करने वाले लोग अगर शादी के रिवाजों को थोड़ा सा बदल दें तो शायद समानता काफी हद तक मिल सकती है. इसे धर्म का या रीति - रिवाजों का अपमान नहीं कहेंगे बल्कि कुछ नए रिवाजों की शुरुआत कह सकते हैं.
इसी कड़ी में दो दुल्हनों ने रिवाजों को बदल दिया. 11 मार्च 2019 को विजयपुरा जिले में हुई शादी एक उदाहरण बन गई. अमित और प्रिया की शादी जिसमें अमित लिंगायत समुदाय का है और प्रिया कुरुबा समुदाय की. दोनों की शादी इसलिए अलग है क्योंकि इस शादी में प्रिया ने अमित के गले में मंगलसूत्र डाला.
नहीं ये धर्म का अपमान बिलकुल नहीं है...
ये सवाल अगर...
शादी को हमेशा से एक पवित्र बंधंन माना जाता है. हमारे शास्त्रों में शादी, पति, ससुराल, सास-ससुर सभी को बहुत ऊंचा स्थान मिला हुआ है और पत्नी के लिए कुछ तय निर्देश हैं. पत्नी को हमेशा सास-ससुर, पति की सेवा करनी होती है और उसे हर समय देवता के स्थान पर रखना होता है. ऋषि कपूर और फराह की फिल्म नसीब अपना-अपना में तो एक पूरा का पूरा गाना इसी बात पर निर्धारित किया गया है, 'भला है बुरा है जैसा भी है. मेरा पति मेरा देवता है.' इसी भारतीय सोच ने कभी न तो शादी को न ही इसके रिवाजों को सवालों को कटघरे में खड़ा किया.
पर एक बार अगर पति को देवता की गद्दी से थोड़ा नीचे लाकर देखेंगे तो पाएंगे कि वो भी आम इंसान ही है. वो भी गलतियां करता है, वो भी घर के काम कर सकता है, वो भी पत्नी की तरह इंसान है. अगर पति को इंसान मानना शुरू कर देंगे तो शायद शादियों के नियमों पर भी सवाल उठने लगेंगे. आखिर क्यों सिर्फ पत्नी ही मंगलसूत्र पहने, क्यों सिर्फ वही सिंदूर लगाए? क्यों कन्यादान किया जाए? इसका उल्टा भी हो सकता है. बेशक हो सकता है. समानता के अधिकारों की बात करने वाले लोग अगर शादी के रिवाजों को थोड़ा सा बदल दें तो शायद समानता काफी हद तक मिल सकती है. इसे धर्म का या रीति - रिवाजों का अपमान नहीं कहेंगे बल्कि कुछ नए रिवाजों की शुरुआत कह सकते हैं.
इसी कड़ी में दो दुल्हनों ने रिवाजों को बदल दिया. 11 मार्च 2019 को विजयपुरा जिले में हुई शादी एक उदाहरण बन गई. अमित और प्रिया की शादी जिसमें अमित लिंगायत समुदाय का है और प्रिया कुरुबा समुदाय की. दोनों की शादी इसलिए अलग है क्योंकि इस शादी में प्रिया ने अमित के गले में मंगलसूत्र डाला.
नहीं ये धर्म का अपमान बिलकुल नहीं है...
ये सवाल अगर आपके मन में है कि आखिर इसे धर्म का अपमान क्यों न कहा जाए तो मैं आपको बता दूं कि अमित और प्रिया ने असल में धर्म की रक्षा ही की है. इन दोनों ने 12वीं सदी के लिंगायत समुदाय के भगवान बासवन्ना की शिक्षा के हिसाब से शादी की है. बासवन्ना ने ये समझाया था कि महिला और पुरुष एक समान अधिकारों के हकदार होते हैं.
ये सिर्फ अकेला एक उदाहरण नहीं है. दूसरा जोड़ा प्रभुराज और अंकिता जो दोनों अलग-अलग समुदाय के थे उनकी शादी भी इसी तरह हुई. उन्होंने तो कन्यादान भी नहीं करवाया क्योंकि इस प्रथा का मतलब है कि अब बेटी पर उसके माता-पिता का हक नहीं. वो माता-पिता जिन्होंने उसे इतना बड़ा किया, हर तरह से काबिल बनाया और हर तरह से उसकी रक्षा की. इस शादी में भी सभी बड़े लिंगायत समुदाय के लीडर आए थे.
इसके कुछ दिन पहले एक बंगाली दुल्हन ने शादी की एक रस्म निभाने से मना कर दिया था जिसमें ये कहा जाता है कि अब दुल्हन माता-पिता के सारे कर्ज चुकाकर आगे बढ़ गई है, उसने मना कर दिया क्योंकि उसके हिसाब से माता-पिता का कर्ज कभी नहीं चुकाया जा सकता. उस दुल्हन के माता-पिता ने भी ये कहा था कि उनकी बेटी कोई वस्तु नहीं है जिसे किसी और को दिया जाए. वो एक इंसान है.
ये शादी के रिवाज थे जिनको लेकर उन दुल्हनों को ट्विटर पर कोसा जा रहा है जिन्होंने समाज के नियमों को तोड़ने का साहस किया.
अब यहां भी देखिए कि अगर पत्नी ने मंगलसूत्र बांधा तो पति ने बंधवाया भी. ये असल में समानता दिखाने का एक तरीका ही है. पति और पत्नी दोनों अपनी जिंदगी की शुरुआत उस तरह से कर रहे हैं जिस तरह से वो चाहते हैं.
समाज के ठेकेदारों को इसमें दिक्कत हो रही है, लेकिन न तो ये लोग उस दूल्हा-दुल्हन को जानते हैं, न ही उनकी शादी में न्योता था, न ही उनसे कोई मतलब है, न ही उनके गलि-मोहल्ले-शहर के हैं और न ही उनके कुछ भी करने से किसी को फर्क पड़ता है, लेकिन बुराई सिर्फ इसलिए की जा रही है क्योंकि उस जोड़े ने नियमों को तोड़ने की कोशिश की है.
धर्म इतना कमजोर कभी नहीं होता कि उसे रक्षकों की जरूरत पड़े. समय के साथ-साथ सदियों पुराने रीति-रिवाज बदले हैं और आगे भी उनमें बदलाव आता रहेगा. धर्म के नाम पर पहले सति प्रथा भी की जाती थी, लेकिन उसे भी बदला गया. धर्म के नाम पर पहले कई कुरीतियां होती थीं, लेकिन उन्हें भी बदला गया. अब धर्म के नाम पर चल रहे रिवाजों को बदलकर अगर कुछ अच्छी सोच को समाज में स्थापित किया जा सकता है तो आखिर क्यों न किया जाए.
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