वो समय जब भारत पाकिस्तान के खिलाफ डटकर खड़ा हुआ है उसी समय एक ऐसी खबर सामने आई है जिससे मन विचलित हो उठा. पैरामिलिट्री फोर्स में वैसे ही जवानों की कमी है और इस बीच करीब 60% ऑफिसर्स ने सिलेक्शन के बाद भी बीएसएफ ज्वाइन करने से मना कर दिया.
2015 में हुई यूपीएसी की परीक्षा में कुल 28 लोग सिलेक्ट किए गए थे. उन्हें 2017 में बीएसएफ में एसिसटेंट कमांडेंट की पोस्ट पर ज्वाइन करना था, लेकिन इनमें से 16 लोगों ने मना कर दिया. उनमें से कुछ लोगों को लगा कि हो सकता है कि आने वाले वक्त में ये लोग किसी भी अर्धसैनिक बल की परीक्षा में ना बैठ पाएं, इस डर से भी जवान बीएसएफ ज्वाइन नहीं करना चाहते.
कुछ सालों से हो रहा है ऐसा....
ये सिर्फ इस साल नहीं कि ये हालत पिछले कुछ सालों से बीएसएफ की रही है. जिन लोगों ने 2014 का यूपीएससी एक्जाम दिया था और 2016 में ज्वाइन करना था उन 31 चुने हुए जवानों में से भी सिर्फ 17 ने ही ड्यूटी ज्वाइन की. इसी साल 2013 में सिलेक्ट हुए कैंडिडेट ड्यूटी ज्वाइन करने वाले थे, लेकिन 110 में से 69 ने ही ट्रेनिंग ली और उनमें से 15 ने ट्रेनिंग के दौरान ही रिजाइन कर दिया.
होम मिनिस्ट्री के हिसाब से बीएसएफ में 5309 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 522 ही गजेटेड ऑफिसर हैं. अब आप समझ ही गए होंगे कि बीएसएफ में जवानों की कितनी कमी है.
क्या है कारण...
जहां सभी कैंडिडेट सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठे थे अधिकतर लोगों ने अपनी सर्विस CISF के लिए भरी थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर सिलेक्टेड कैंडिडेट्स ने कहा कि पैरामिलिट्री फोर्स में सेकंड क्लास ट्रीटमेंट मिलता है और कैरियर ग्रोथ कम होती है. इसलिए भी लोग बीएसएफ से नहीं जुड़ना...
वो समय जब भारत पाकिस्तान के खिलाफ डटकर खड़ा हुआ है उसी समय एक ऐसी खबर सामने आई है जिससे मन विचलित हो उठा. पैरामिलिट्री फोर्स में वैसे ही जवानों की कमी है और इस बीच करीब 60% ऑफिसर्स ने सिलेक्शन के बाद भी बीएसएफ ज्वाइन करने से मना कर दिया.
2015 में हुई यूपीएसी की परीक्षा में कुल 28 लोग सिलेक्ट किए गए थे. उन्हें 2017 में बीएसएफ में एसिसटेंट कमांडेंट की पोस्ट पर ज्वाइन करना था, लेकिन इनमें से 16 लोगों ने मना कर दिया. उनमें से कुछ लोगों को लगा कि हो सकता है कि आने वाले वक्त में ये लोग किसी भी अर्धसैनिक बल की परीक्षा में ना बैठ पाएं, इस डर से भी जवान बीएसएफ ज्वाइन नहीं करना चाहते.
कुछ सालों से हो रहा है ऐसा....
ये सिर्फ इस साल नहीं कि ये हालत पिछले कुछ सालों से बीएसएफ की रही है. जिन लोगों ने 2014 का यूपीएससी एक्जाम दिया था और 2016 में ज्वाइन करना था उन 31 चुने हुए जवानों में से भी सिर्फ 17 ने ही ड्यूटी ज्वाइन की. इसी साल 2013 में सिलेक्ट हुए कैंडिडेट ड्यूटी ज्वाइन करने वाले थे, लेकिन 110 में से 69 ने ही ट्रेनिंग ली और उनमें से 15 ने ट्रेनिंग के दौरान ही रिजाइन कर दिया.
होम मिनिस्ट्री के हिसाब से बीएसएफ में 5309 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 522 ही गजेटेड ऑफिसर हैं. अब आप समझ ही गए होंगे कि बीएसएफ में जवानों की कितनी कमी है.
क्या है कारण...
जहां सभी कैंडिडेट सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठे थे अधिकतर लोगों ने अपनी सर्विस CISF के लिए भरी थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर सिलेक्टेड कैंडिडेट्स ने कहा कि पैरामिलिट्री फोर्स में सेकंड क्लास ट्रीटमेंट मिलता है और कैरियर ग्रोथ कम होती है. इसलिए भी लोग बीएसएफ से नहीं जुड़ना चाहते.
विवेक मिन्ज नाम के एक कैंडिडेट ने बताया कि मुझे वो नहीं मिला जो चाहिए था. मेरा पहला ऑप्शन CISF था, लेकिन वो मिला नहीं. अगर मुझे CISF मिला होता तो मैं आसानी से ज्वाइन कर लेता. मिन्ज IAS की तैयारी भी कर रहे हैं जो उनका प्रमुख उद्धेश्य है.
CISF से कहीं शहर में पोस्टिंग मिल जाती और मैं सिविल सर्विस के लिए तैयारी कर पाता. बाकी सभी फोर्स जैसे BSF, CRPF, ITBP आदि में कुछ ना कुछ समस्या रही है.
अधिकतर पैरामिलिट्री फोर्स में चुने हुए लोग सिविल सर्विस की तैयारी करना चाहते हैं और सरकारी नौकरी की सिक्योरिटी चाहते हैं.
पैसे भी नहीं मिलते...
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एक कैंडिडेट जो अपना नाम नहीं बताना चाहता उसने कहा कि सभी फोर्स में टॉप पोजीशन IPS के जरिए भरी जाती है. BSF ऑफिसर बनकर मैं कभी ऊपर तक नहीं पहुंच पाऊंगा. कई ऑफिसर रिटायरमेंट से पहले कमांडेंट की पोजीशन तक भी नहीं पहुंच पाते हैं. यहां तक कि पैसे भी ठीक नहीं मिलते. समय पर इंक्रिमेंट भी नहीं होता.
इसके अलावा, राजिस्थान के पुनीत मेहता का कहना है कि वो एक मुश्किल नौकरी के लिए तैयार नहीं हैं. उन्हें CISF नहीं मिला इसलिए नौकरी नहीं ज्वाइन की. मैं दिमागी तौर पर बॉर्डर पर नौकरी करने के लिए तैयार नहीं हूं जहां कोई भी सुख-सुविधा नहीं होती. मैं अभी भी सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा हूं.
एक और ऑफिसर जो पंजाब से हैं कहते हैं कि बीएसएफ और आर्मी में हमेशा से समानता की कमी रही है. बीएसएफ की नौकरी में कोई कमी नहीं है. आखिर ये सरकारी नौकरी है जो मुश्किल से मिलती है, लेकिन इसकी आर्मी से कोई तुलना नहीं है. समाज में जितनी आर्मी को इज्जत मिलती है उतनी बीएसएफ को नहीं.
बाकी ऑप्शन की तलाश...
जालंधर से आने वाले प्रभदीप सिंह का कहना है कि उन्हें बीएसएफ के अलावा किसी और सर्विस के बारे में ज्यादा पता नहीं था. हालांकि, अभी उनके पास और कोई ऑप्शन नहीं है, लेकिन फिर भी मैं बीएसएफ नहीं ज्वाइन कर रहा.
बीएसएफ में कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर देखा जाए तो जवानों को बाकी ऑप्शन तलाशने में ज्यादा रुचि है. बीएसएफ जवानों के साथ होने वाला वर्ताव और पाकिस्तानी हमले भी इसका हिस्सा हो सकते हैं. सभी ने पिछले साल जवान तेज बहादुर का वीडियो देखा था. इसके बाद दो और जवानों ने वीडियो पोस्ट किया था.
पिछले साल की रिपोर्ट आई थी कि डेढ़ साल में 774 जवानों की मृत्यु हुई, लेकिन इनमें से सिर्फ 25 को ही शहीद का दर्जा मिला क्योंकि बाकियों की मौत दिल का दौरा पड़ने, एक्सिडेंट और अन्य बीमारियों से हुई. आंकड़े कहते हैं कि 2015 जनवरी से लेकर 2016 सितंबर तक सिर्फ 25 जवानों की जान मुठभेड़ में गई है. बाकी या तो किसी बीमारी या फिर किसी दुर्घटना के कारण वीरगती को प्राप्त हुए हैं.
क्या लाइफस्टाइल के कारण हो रही मौतें?
बीएसएफ के जवानों की लाइफस्टाइल काफी कठिन होती है. मुश्किल से मुश्किल जगहों पर रहना. कई दिनों तक कोई आराम ना मिलना, छुट्टी ना मिलना, बीमारी फैलना आदि बीएसएफ के जवानों में आम है. गाहे-बगाहे ये खबरें आती रहती हैं कि जवानों में स्ट्रेस बढ़ रहा है.
उसपर तेज बहादुर के वीडियो की तरह कई वीडियो भी सामने आ चुके हैं. तो क्या मान लेना चाहिए कि बीएसएफ की कठिनाइयों के चलते जवान उसमें रुचि नहीं ले रहे. क्या सरकार को इनके लिए कुछ नहीं करना चाहिए. अगर सीमा पर रक्षा के लिए जवान ही नहीं होंगे तो फिर कैसे हम सुरक्षित रह पाएंगे?
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