कोरोनावायरस (Coronavirus) को लेकर लोगों के बीच खूब दहशत है. ऐसे में त्योहार यानी होली (Holi) भी सिर पर है. लोग कशमकश में हैं कि एक ऐसे समय में जब इन्फेक्शन का खतरा बना हो, जिसकी चपेट में आकर दुनिया भर में लोग बीमार पड़ रहे हों और उनकी मौत की खबरें आ रही हों. दोस्तों/ रिश्तेदारों संघ त्योहार मनाया जाए या नहीं? तो बता दें कि अब तो आपको होली जरूर मनानी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि होलिका दहन एक ऐसे फॉगिंग सिस्टम की तरह काम करता है जिसका पूरे भारत में समय एक रहता है. होलिका दहन साबित करता है कि हजारों वर्षों से चले आ रहे हमारे त्योहारों में धार्मिक परम्पराएं कितनी साइंटिफिक हैं.
कोई मनाये-ना मनाये, भारतवासियों सहित दुनियाभर को इस बार होली मनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहिए. होली-दिवाली जैसे त्योहारों के पारंपरिक विधि विधान के पीछे साइंटिफिक रीज़न्स हैं. होली और दिवाली जैसे त्योहार क्रमशः मार्च-नवंबर मे होते हैं. सामान्य तापमान वाले इन महीनों में तमाम वायरस/कीटाणु/बैक्टीरिया प्रभावी होते हैं. इसलिए इन त्योहारों के धार्मिक रीतिरिवाज, खानपान, पूजा-पाठ इत्यादि इन किटाणुओं को नष्ट करते हैं.
हर चौराहे पर होलिका दहन राक्षस रूपी किटाणुओं को नष्ट करते हैं. दहन/हवन का धुंआ आसपास के इलाकों के कोने-कोने में फागिंग का काम करता है. किटाणुओं को भगाने का अभियान जिस तरह भारत में होता है दुनिया में कहीं नहीं होता. होलिका दहन में एक ही टाइम (मुहुर्त) पर आल इंडिया वन टाइम फागिंग सिस्टम साबित करता है कि हजारों वर्ष पुरानी हमारे त्योहारों की धार्मिक परंपराएं कितनी साइंटिफिक हैं.
दीपावली में अलइयां-बलइयां जलाना, घरों में सफाई-पुताई करने का मुख्य उद्देश्य यही है कि...
कोरोनावायरस (Coronavirus) को लेकर लोगों के बीच खूब दहशत है. ऐसे में त्योहार यानी होली (Holi) भी सिर पर है. लोग कशमकश में हैं कि एक ऐसे समय में जब इन्फेक्शन का खतरा बना हो, जिसकी चपेट में आकर दुनिया भर में लोग बीमार पड़ रहे हों और उनकी मौत की खबरें आ रही हों. दोस्तों/ रिश्तेदारों संघ त्योहार मनाया जाए या नहीं? तो बता दें कि अब तो आपको होली जरूर मनानी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि होलिका दहन एक ऐसे फॉगिंग सिस्टम की तरह काम करता है जिसका पूरे भारत में समय एक रहता है. होलिका दहन साबित करता है कि हजारों वर्षों से चले आ रहे हमारे त्योहारों में धार्मिक परम्पराएं कितनी साइंटिफिक हैं.
कोई मनाये-ना मनाये, भारतवासियों सहित दुनियाभर को इस बार होली मनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहिए. होली-दिवाली जैसे त्योहारों के पारंपरिक विधि विधान के पीछे साइंटिफिक रीज़न्स हैं. होली और दिवाली जैसे त्योहार क्रमशः मार्च-नवंबर मे होते हैं. सामान्य तापमान वाले इन महीनों में तमाम वायरस/कीटाणु/बैक्टीरिया प्रभावी होते हैं. इसलिए इन त्योहारों के धार्मिक रीतिरिवाज, खानपान, पूजा-पाठ इत्यादि इन किटाणुओं को नष्ट करते हैं.
हर चौराहे पर होलिका दहन राक्षस रूपी किटाणुओं को नष्ट करते हैं. दहन/हवन का धुंआ आसपास के इलाकों के कोने-कोने में फागिंग का काम करता है. किटाणुओं को भगाने का अभियान जिस तरह भारत में होता है दुनिया में कहीं नहीं होता. होलिका दहन में एक ही टाइम (मुहुर्त) पर आल इंडिया वन टाइम फागिंग सिस्टम साबित करता है कि हजारों वर्ष पुरानी हमारे त्योहारों की धार्मिक परंपराएं कितनी साइंटिफिक हैं.
दीपावली में अलइयां-बलइयां जलाना, घरों में सफाई-पुताई करने का मुख्य उद्देश्य यही है कि सामान्य तापमान वाले नवंबर में पनप रहे जहरीले और जानलेवा वाइरस को नष्ट किया जा सके.
इसलिए आज जब जानलेना और लाइलाज कोरोना वायरस से भारत सहित सारी दुनिया थर्रायी हुई है तो इस वायरस को भगाने का यही इलाज है कि होली जैसे त्योहार को पूरी परंपराओं और विधिविधान के साथ जम कर मनाया जाये. बल्कि इस बार भारत के मुस्लिम मोहल्लों में भी होलिका दहन किया जाये. दुनिया के तमाम देशों के साथ मुस्लिम देशों में भी होलिका दहन किया जाये.
ये भी पढ़ें -
सियासी होली में जोगीरा भी हुआ चुनावी
होली से पहले विवाद सर्फ एक्सेल के साथ!
होली का वैज्ञानिक महत्व भी जान लीजिए
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.