'कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती.' एक छात्र ने तो इस लाइन को अपने मन में ऐसा बैठा लिया कि वह 9 साल में इंजीनियरिंग पास नहीं कर पाया तो भी उसने हार नहीं मानी. बीटेक के इस छात्र की कुल 17 बार कंपार्टमेंट लगी हैं. कई बार मौके दिए गए, लेकिन वह पास नहीं हो सका. लगातार फेल होने की वजह से अब उसे परीक्षा देने के और मौके नहीं दिए गए. इसके बाद छात्र जा पहुंचा कोर्ट के दरवाजे पर, लेकिन वहां से भी निराशा ही हाथ लगी. उल्टा कोर्ट ने यहां तक कह डाला- 'आप इंजीनियर मत बनो, देश पर और कोर्ट पर दया करो.' छात्र को जज की बात बुरी तो जरूर लगी, लेकिन जज के सामने और रास्ता भी क्या था?
17 बार लगी है कंपार्टमेंट
ये मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का है, जहां नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक छात्र ने याचिका दायर की थी. इस छात्र ने 2009 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थित एनआईटी में एडमिशन लिया था. अपनी चार साल का इंजीनियरिंग के दौरान छात्र को कुल 17 बार कंपार्टमेंट लगी. एनआईटी की तरफ से उसे अन्य 4 साल का समय दिया गया ताकि वह अपनी 17 कंपार्टमेंट को पास कर सके, लेकिन छात्र पास नहीं हो सका. इसके बाद इंस्टीट्यूट ने और मौके देने से मना कर दिया, तो छात्र ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
दया तो छोड़िए, कोर्ट ने फटकार लगा दी
जब कोर्ट में जज के सामने ये याचिका आई तो वह भी हैरान रह गए. परीक्षाएं पास नहीं कर पाने के पीछे छात्र ने कुछ निजी कारण का हवाला दिया. याचिका सुनने के बाद जज कृष्ण मुरारी ने एक सुर में छात्र से कहा कि वह इंजीनियरिंग छोड़ दे. उल्टा उसे फटकार भी लगाई और कहा कि अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए वह कोर्ट का समय बर्बाद...
'कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती.' एक छात्र ने तो इस लाइन को अपने मन में ऐसा बैठा लिया कि वह 9 साल में इंजीनियरिंग पास नहीं कर पाया तो भी उसने हार नहीं मानी. बीटेक के इस छात्र की कुल 17 बार कंपार्टमेंट लगी हैं. कई बार मौके दिए गए, लेकिन वह पास नहीं हो सका. लगातार फेल होने की वजह से अब उसे परीक्षा देने के और मौके नहीं दिए गए. इसके बाद छात्र जा पहुंचा कोर्ट के दरवाजे पर, लेकिन वहां से भी निराशा ही हाथ लगी. उल्टा कोर्ट ने यहां तक कह डाला- 'आप इंजीनियर मत बनो, देश पर और कोर्ट पर दया करो.' छात्र को जज की बात बुरी तो जरूर लगी, लेकिन जज के सामने और रास्ता भी क्या था?
17 बार लगी है कंपार्टमेंट
ये मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का है, जहां नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक छात्र ने याचिका दायर की थी. इस छात्र ने 2009 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थित एनआईटी में एडमिशन लिया था. अपनी चार साल का इंजीनियरिंग के दौरान छात्र को कुल 17 बार कंपार्टमेंट लगी. एनआईटी की तरफ से उसे अन्य 4 साल का समय दिया गया ताकि वह अपनी 17 कंपार्टमेंट को पास कर सके, लेकिन छात्र पास नहीं हो सका. इसके बाद इंस्टीट्यूट ने और मौके देने से मना कर दिया, तो छात्र ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
दया तो छोड़िए, कोर्ट ने फटकार लगा दी
जब कोर्ट में जज के सामने ये याचिका आई तो वह भी हैरान रह गए. परीक्षाएं पास नहीं कर पाने के पीछे छात्र ने कुछ निजी कारण का हवाला दिया. याचिका सुनने के बाद जज कृष्ण मुरारी ने एक सुर में छात्र से कहा कि वह इंजीनियरिंग छोड़ दे. उल्टा उसे फटकार भी लगाई और कहा कि अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए वह कोर्ट का समय बर्बाद कर रहा है.
छात्र ने कोर्ट से दया दिखाने के लिए कहा तो जज ने तुरंत जवाब देते हुए कहा कि आप कोर्ट पर दया करो और कोर्ट का बहुमूल्य समय और पैसा बर्बाद मत करो. कोर्ट ने कहा कि उसकी इस याचिका की सुनवाई में कोर्ट का जितना पैसा बर्बाद हुआ है, वह उसकी इंजीनियरिंग की फीस से कहीं अधिक है. उन्होंने साफ कह दिया कि जो देश के संसाधनों का दुरुपयोग करता है, उसके लिए कोर्ट के मन में कोई दया नहीं है. कोर्ट ने कहा कि जब आप पिछले 9 सालों में कंपार्टमेंट की परीक्षा पास नहीं कर पाए हैं तो एक मौके में कैसे कर पाएंगे. अंत में कोर्ट ने कहा कि आप इंजीनियरिंग छोड़ दीजिए और देश को बचाइए और कोई दूसरा प्रोफेशन चुन लीजिए.
अगर देखा जाए तो कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि छात्र को कम से कम एक मौका तो देना ही चाहिए था, लेकिन जरा खुद ही सोचिए कि इससे क्या फायदा होता. जो 9 सालों में पास नहीं हो सका वो महज एक मौके में 17 कंपार्टमेंट कैसे पास कर पाता? चलिए जैसे-तैसे पास भी हो जाता तो कैसे इंजीनियर बनता, इसका अदांजा आप भी लगा सकते हैं. इसी लिए कोर्ट ने अपनी बात में ये कहा कि इंजीनियर मत बनिए और देश को बचाइए. जज इन्हीं सारी बातों को अच्छे से समझ गए थे, इसलिए याचिका खारिज करने के अलावा उनके सामने और कोई रास्ता भी नहीं था.
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