Chadrayaan-2 मिशन के तहत 7 सितंबर की तड़के इसरो का लैंडर से उस वक्त संपर्क टूट गया था, जब वह चांद की सतह पर लैंड कर रहा था. ये संपर्क तब टूटा जब लैंडर चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर था. उस समय तो इसरो के हर वैज्ञानिक के चेहरे पर निराशा छा गई थी, यहां तक कि इसरो प्रमुख के सिवान की आंखों में आंसू आ गए थे, लेकिन अगले ही दिन ऑर्बिटर ने लैंडर की थर्मल इमेज भेजकर लैंडर की लोकेशन कंफर्म कर दी. बताया जा रहा था कि लैंडर ने हार्ड या फिर क्रैश लैंडिंग की होगी. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा था कि लैंडर टूट तो नहीं गया? वह सही है या उसे कोई नुकसान पहुंचा है? अब ऑर्बिटर से मिली जानकारी ने इन सवालों के भी जवाब दे दिए हैं.
ऑर्बिटर से मिली ताजा जानकारी मिलने के बाद इसरो के एक अधिकारी ने बताया है लैंडर पूरी तरह से सुरक्षित है और उसके साथ कोई टूट-फूट नहीं हुई है. हां उन्होंने ये जरूर कहा है कि वह टिल्टेड है यानी टेढ़ा है. हालांकि, इसरो की ओर से अभी तक इसकी कोई तस्वीर जारी नहीं की गई है. इसरो की ओर से लगातार लैंडर के साथ संपर्क करने की कोशिश की जा रही है और ऑर्बिटर से भेजी जा रही तस्वीरें का एनालिसिस भी किया जा रहा है. अब सवाल ये उठता है कि टिल्टेड पोजीशन में भी लैंडर विक्रम से रोवर प्रज्ञान बाहर निकल पाएगा या नहीं? वैसे जिस तरह का लैंडर का डिजाइन है, ऐसा मुमकिन नहीं लगता कि इस स्थिति में रोवर उससे बाहर निकलेगा. हां ये जरूर मुमकिन है कि आने वाले दिनों में इसरो का लैंडर के साथ संपर्क स्थापित हो जाए, क्योंकि लैंडर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है. हालांकि, बाद में इसरो ने ये साफ किया है कि जो बातें तो एक न्यूज एंजेंसी ने इसरो अधिकारियों के हवाले से छापी हैं, अभी उनकी पुष्टि नहीं हुई है. जैसे ही पुष्टि होती है तो खुद इसरो की तरफ से इसकी जानकारी मीडिया को दी जाएगी.
ऑर्बिटर से मिली जानकारी के अनुसार लैंडर पूरी तरह से सुरक्षित है और उसके साथ कोई टूट-फूट नहीं हुई है.
लैंडर के इसरो का संपर्क टूटने पर भले ही सभी दुखी हुई थे, लेकिन इसरो के ही अधिकारियों ने ये भी साफ किया है कि लैंडर से संपर्क टूटने की वजह से सिर्फ 5 फीसदी मिशन ही प्रभावित हुआ है, बाकी का 95 फीसदी सब सही रहा है. दरअसल, इस मिशन का असली हीरो तो ऑर्बिटर है, जो चंद्रमा की कक्षा में चक्कर काट रहा है और पूरी तरह से ठीक है. अगले करीब 7 सालों तक ये चांद की कक्षा में चक्कर काटेगा और इसरो को अहम जानकारियां भेजता रहेगा. ये ऑर्बिटर ही है, जिसके कैमरे चांद की सतह की तस्वीरें भेजकर ये साफ कर रहे हैं कि लैंडर विक्रम अभी जिंदा है.
आखिर कितना ताकवर है ऑर्बिटर का कैमरा?
इसरो के अनुसार चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में लगा कैमरा किसी भी लूनर मिशन में इस्तेमाल किया गया अब तक का सबसे हाई रिजॉल्यूशन (0.3m) का कैमरा है. चांद की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई (एल्टिट्यूड) पर चक्कर काट रहा ऑर्बिटर चांद की हाई रिजॉल्यूशन की तस्वीरें भेजता रहेगा, जो आगे की रिसर्च और स्टडी में इस्तेमाल होंगी. वैसे इस कैमरे का मुख्य मकसद तो चंद्रमा की सतह की तस्वीरें भेजना था, लेकिन अब लैंडर की खोज करना भी ऑर्बिटर की ही जिम्मेदारी बन गई है.
कैसे लैंड हुआ होगा विक्रम?
आशंका यही जताई जा रही थी कि 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई से क्रैश होने का मतलब है कि लैंडर विक्रम पूरी तरह से टूट गया होगा. अगर चांद की ग्रैविटी 1/6वां हिस्सा मानते हुए ये सोच लें कि 1000/6 किलो के ऑब्जेक्ट के लिए 2.1 किलोमीटर से गिरने पर उसकी गति 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रही होगी. इन तर्कों से तो ऐसा लगा था कि विक्रम टूट गया होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है. वह तो सही सलामत है. ये कैसे हुआ?
ऑर्बिटर से अलग होकर लैंडर का चांद पर लैंड करना ऑटोमेटेड था. चंद्रमा की सतह पर लैंड करने के लिए विक्रम में पहले से ही प्रोग्राम फीड कर दिया गया था. यानी इसरो का उसे लैंड कराने में कोई रोल नहीं था. इसरो का सिर्फ लैंडर से संपर्क टूटा. मुमकिन है कि लैंडर विक्रम में कोई तकनीकी खराबी नहीं आई होगी. ऐसे में लैंडर ने अपने से हिसाब से लैंड करने की कोशिश की होगी, लेकिन किसी कारणवश वह न तो सही जगह पर लैंड हुआ ना ही सही से लैंड हो सका. अगर उसकी क्रैश लैंडिंग हुई होती तो टूट-फूट जरूर होती, लेकिन ऐसा नहीं है. वास्तव में क्या हुआ होगा, इसका पता धीरे-धीरे ऑर्बिटर से भेजी गई तस्वीरों से ही चलेगा.
लैंडर से जुड़ी हर जानकारी काम आएगी
भले ही अभी लैंडर काम कर रहा हो या ना कर रहा हो, लेकिन उससे जुड़ी हर जानकारी इसरो के काम की है. लैंडर की स्टडी करने के बाद ही ये पता चल सकता है कि आखिर उन आखिरी पलों में क्या हुआ था कि लैंडर से इसरो का संपर्क टूट गया. अगर इसरो ने लैंडर के साथ संपर्क स्थापित करने में कामयाबी पा ली, तब तक तो वारे-न्यारे समझिए. इस मिशन में जो परेशानी थी, वह भी खत्म हो जाएगी. लैंडर से जुड़े कई सवाल हैं, जिनके जवाब लोग जानना चाह रहे हैं, जो लैंडर ही दे सकता है. जिस तरह एक दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज का ब्लैक बॉक्स हादसे के कारणों के सारे राज खोल देता है, वैसे ही लैंडर से संपर्क होने या उससे जुड़ी और अधिक जानकारियां मिलने के बाद ही ये राज खुलेगा कि आखिर इसरो से लैंडर का संपर्क क्यों टूटा? ये सारी जानकारियां हासिल करने में फिलहाल तो चंद्रयान के ऑर्बिटर का कैमरा ही मदद कर रहा है.
- विक्रम की लैंडिंग की शुरुआत तो बिल्कुल सही थी, फिर अचानक संपर्क कैसे टूटा?
- लैंडिंग करते समय लैंडर विक्रम में लगे सभी रॉकेट भी सही से काम कर रहे थे, फिर अचानक इसरो से संपर्क टूटने की वजह क्या थी?
- क्या चांद की सतह के पास किसी तरह का कोई मैग्नेटिक फील्ड था, जिसकी वजह से संपर्क टूटा?
- लैंडर भले ही टूटा-फूटा नहीं है, लेकिन वह टेढ़ा है तो उसने कितनी ताकत से लैंड किया होगा?
आगे के मिशन में मिलेगी मदद
लैंडर के साथ आखिरी पलों में क्या हुआ था, ये जानना इसलिए भी बहुत अहम है, क्योंकि आने वाले समय में गगनयान चांद पर भेजा जाएगा. दो बार तो गगनयान बिना किसी इंसान के साथ वहां जाएगा, लेकिन तीसरी बार वह 3 एस्ट्रोनॉट्स को लेकर चांद पर पहुंचेगा. इतना ही नहीं, एक मिशन तो सूर्य के लिए भी प्लान किया जा रहा है. ऐसे में लैंडर से मिली हर छोटी-बड़ी जानकारी बहुत ही फायदे की हो सकती है. इसरो प्रमुख के सिवान ने लैंडर के बारे में पहले भी कहा था कि इसरो के वैज्ञानिकों ने विक्रम की लैंडिंग को लेकर सेकेंड के कई हिस्सों तक जाकर उसकी प्लानिंग की है. इतनी बारीकी से योजना बनाने के बावजूद लैंडर के चांद पर लैंड करने से पहले ही उसका इसरो के साथ संपर्क टूट जाने का मतलब है कि इसकी वजह जानना अहम है, ताकि आने वाले किसी भी मिशन में ये दिक्कत ना आए. और ये सब मुमकिन करेगा चंद्रयान-2 मिशन का असली हीरो, ऑर्बिटर.
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