Sukma Naxal Attack में शहीद हुए 23 जवानों के परिजनों पर क्या बीत रही होगी? इस बात की हम और आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं. इस दर्द को वही महसूस कर सकता है जिस पर बीती हो. छत्तीसगढ़ नक्सली (naxal attack in chhattisgarh) हमले में सीआरपीएफ के साथ एसटीएफ के जवान भी शहीद हुए हैं. इस हमले में शहीद होने वाले एसटीएफ जवान सुखराम फरस के घर जब शहादत की खबर पहुंची तब उनकी पत्नी एक साल के बच्चे को गोद में खिला रही थीं. जब जिलाधिकारी ने उनके घर जाकर यह खबर सुनाई तो सभी सुन्न रह गए. बूढ़े पिता ने जब जवान बेटे के शहीद होने की खबर सुनी तो वह एक दम खामोश हो गए. मां एक कमरे में चुपचाप बैठ गईं. वहीं शहीद की पत्नी का रोना देख लोगों का कलेजा फट गया. किसने सोचा था कि एक पल में इस घर की सारी खुशियां छिन जाएंगी.
अभी डेढ़ साल पहले ही तो इस घर में शहनाई बजी थी. एक साल पहले ही आंगन में किलकारी गूंजी थी कि अचानक परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. अभी तो पति-पत्नी ने साथ में कितने सपने देखे थे. जरा सोचिए शहीद सुखराम ने माता-पिता से क्या-क्या वादे किए होंगे. जैसे इस बार घर ज्यादा दिन रहूंगा. उन्हें मां का इलाज भी तो कराना था. छोटे भाई की जिम्मेदारी भी तो निभानी थी. भविष्य में बच्चे का स्कूल में दाखिला भी करवाना था. पत्नी के अधूरे वादे निभाने थे और ना जाने क्या-क्या...लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था.
दरअसल, सुखराम गरियाबंद जिला से 40 किलोमीटर दूर मोहदा गांव के निवासी थे. तीन भाइयों में वे दूसरे नंबर पर थे. पत्नी और बच्चा गांव में ही माता-पिता के साथ रहते हैं. पत्नी गोद में मासूम को लिए जिस तरह रो रही थीं, वह बयां नहीं किया जा सकता. लोग उन्हें समझा रहे थे. महिलाएं सांत्वना दे रही थीं, लेकिन उन्हें...
Sukma Naxal Attack में शहीद हुए 23 जवानों के परिजनों पर क्या बीत रही होगी? इस बात की हम और आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं. इस दर्द को वही महसूस कर सकता है जिस पर बीती हो. छत्तीसगढ़ नक्सली (naxal attack in chhattisgarh) हमले में सीआरपीएफ के साथ एसटीएफ के जवान भी शहीद हुए हैं. इस हमले में शहीद होने वाले एसटीएफ जवान सुखराम फरस के घर जब शहादत की खबर पहुंची तब उनकी पत्नी एक साल के बच्चे को गोद में खिला रही थीं. जब जिलाधिकारी ने उनके घर जाकर यह खबर सुनाई तो सभी सुन्न रह गए. बूढ़े पिता ने जब जवान बेटे के शहीद होने की खबर सुनी तो वह एक दम खामोश हो गए. मां एक कमरे में चुपचाप बैठ गईं. वहीं शहीद की पत्नी का रोना देख लोगों का कलेजा फट गया. किसने सोचा था कि एक पल में इस घर की सारी खुशियां छिन जाएंगी.
अभी डेढ़ साल पहले ही तो इस घर में शहनाई बजी थी. एक साल पहले ही आंगन में किलकारी गूंजी थी कि अचानक परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. अभी तो पति-पत्नी ने साथ में कितने सपने देखे थे. जरा सोचिए शहीद सुखराम ने माता-पिता से क्या-क्या वादे किए होंगे. जैसे इस बार घर ज्यादा दिन रहूंगा. उन्हें मां का इलाज भी तो कराना था. छोटे भाई की जिम्मेदारी भी तो निभानी थी. भविष्य में बच्चे का स्कूल में दाखिला भी करवाना था. पत्नी के अधूरे वादे निभाने थे और ना जाने क्या-क्या...लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था.
दरअसल, सुखराम गरियाबंद जिला से 40 किलोमीटर दूर मोहदा गांव के निवासी थे. तीन भाइयों में वे दूसरे नंबर पर थे. पत्नी और बच्चा गांव में ही माता-पिता के साथ रहते हैं. पत्नी गोद में मासूम को लिए जिस तरह रो रही थीं, वह बयां नहीं किया जा सकता. लोग उन्हें समझा रहे थे. महिलाएं सांत्वना दे रही थीं, लेकिन उन्हें कुछ होश ही नहीं था. वे बार-बार पति का नाम लेकर बेहोश हो जा रही थीं.
वहीं आंगन में बैठे पिता खामोशी से बहू की दहाड़ सुन रहे थे. जैसे वह कहना चाह रहे हों, रो लेने दो उसे शायद दर्द कम हो जाएगा. लोग घर में आना-जाना कर रहे थे, कुछ-कुछ बोलकर समझा रहे थे लेकिन वह एकदम मौन थे. एक पिता ऐसे हालात में कर भी क्या सकता है. बेटे के शहीद (Bijapur naxal attack) होने पर गर्व होता है, लेकिन जो सीने में दर्द दफन है उसे कैसे संभाला जाए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.