विद्या बालन की फिल्म कहानी-2 ने हमारे जीवन के हिस्से को कुरेद दिया है, जिस पर आमतौर पर बात नहीं होती. यौन शोषण का यह मामला क्यान पर्दे में ही रहना चाहिए ?
समाज में यौन विकृति शुरू से है और जिसका सबसे विभत्स रूप बाल यौन शोषण हैं. लेकिन अपनी विभत्सता के बावजूद इसके दर्द की आवाज़ हमेशा ही मौन रही. 1941 में इस्मत चुग़तई ने लिहाफ़ में महिलाओं के बीच समलैंगिकता की कहानी लिखी, जिसके चलते उनपर अश्लीलता का मुक़द्दमा चलाया गया. लेकिन इस कहानी में एक बाल यौन शोषण का एक दबा हुआ क़िस्सा भी था जिसे पूरी तरह से नज़रअंदाज किया गया.
सांकेतिक फोटो |
विदेशी किताबों की चर्चा करें तो सिडनी शेलडन की किताब 'tell me your dream' अपने पिता द्वारा यौन शोषण की शिकार एक बच्ची की कहानी है जो split personality की शिकार होकर अलग अलग देशों में हत्याएँ करती है. रूसी प्रफ़ेसर/उपन्यासकार व्लादिमीर नेवाकोव की 1955 में पेरिस से प्रकाशित 'लोलिता' एक अधेड़ उम्र के प्रफ़ेसर की कहानी है जो अपनी सौतेली बेटी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाता है. असमान्य कथा वस्तु के कारण बीसवीं शताब्दी के साहित्यिक इतिहास में लोलिता ने जल्द ही अपना स्थान दर्ज करा लिया था..
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अक्सर कहा जाता है बॉलीवुड समकालीन पीढ़ी को बिगाड़ते हुए समाज को सर्वनाश की ओर ले जा रहा है. लेकिन बॉलीवुड भी साहित्य की तरह ही समाज का...
विद्या बालन की फिल्म कहानी-2 ने हमारे जीवन के हिस्से को कुरेद दिया है, जिस पर आमतौर पर बात नहीं होती. यौन शोषण का यह मामला क्यान पर्दे में ही रहना चाहिए ?
समाज में यौन विकृति शुरू से है और जिसका सबसे विभत्स रूप बाल यौन शोषण हैं. लेकिन अपनी विभत्सता के बावजूद इसके दर्द की आवाज़ हमेशा ही मौन रही. 1941 में इस्मत चुग़तई ने लिहाफ़ में महिलाओं के बीच समलैंगिकता की कहानी लिखी, जिसके चलते उनपर अश्लीलता का मुक़द्दमा चलाया गया. लेकिन इस कहानी में एक बाल यौन शोषण का एक दबा हुआ क़िस्सा भी था जिसे पूरी तरह से नज़रअंदाज किया गया.
सांकेतिक फोटो |
विदेशी किताबों की चर्चा करें तो सिडनी शेलडन की किताब 'tell me your dream' अपने पिता द्वारा यौन शोषण की शिकार एक बच्ची की कहानी है जो split personality की शिकार होकर अलग अलग देशों में हत्याएँ करती है. रूसी प्रफ़ेसर/उपन्यासकार व्लादिमीर नेवाकोव की 1955 में पेरिस से प्रकाशित 'लोलिता' एक अधेड़ उम्र के प्रफ़ेसर की कहानी है जो अपनी सौतेली बेटी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाता है. असमान्य कथा वस्तु के कारण बीसवीं शताब्दी के साहित्यिक इतिहास में लोलिता ने जल्द ही अपना स्थान दर्ज करा लिया था..
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अक्सर कहा जाता है बॉलीवुड समकालीन पीढ़ी को बिगाड़ते हुए समाज को सर्वनाश की ओर ले जा रहा है. लेकिन बॉलीवुड भी साहित्य की तरह ही समाज का दर्पण है. जब जो जैसा था ठीक वैसा ही दिखाया जाता है.
2001 में मीरा नायर द्वारा निर्मित फ़िल्म मानसून वेडिंग ड्रामा / कॉमडी के कैटेगरी में आता है और इस फ़िल्म ने लोगों को ख़ूब हँसाया भी लेकिन बाल यौन शोषण की शिकार शेफाली शाह का दर्द भी महसूस किया गया. हालाँकि इस फ़िल्म में भी बाल यौन शोषण दबे और सहमे हुए स्वरूप में ही था लेकिन जिसने भी इस फ़िल्म को देखा उसने समाज में बाल यौन शोषण के अस्तित्व को स्वीकारा.
यौन शोषण के सबसे ज़्यादा मामले जो नज़र में आये हैं उसमें ज़्यादातर में घर के पुरुष / रिश्तेदार यहाँ तक की कई बार पिता भी ज़िम्मेदार पाये गए है. ज्यातदातर मामले संज्ञान में आने के बाद भी घर की इज़्ज़त की ख़ातिर दबा दिये जाते हैं.
रियलिटी शो 'सत्यमेव जयते' के एक एपिसोड में आमिर खान ने बाल यौन शोषण के मुद्दे को आवाज़ दी बल्कि महिलाओं और बच्चों को जागरूक भी किया. कई दबी सहमी हुई ज़ुबान खुल गई थी, दर्द की कई छोटी मोटी दरिया बह कर दूर निकल गई थी. मुझे याद है उस एपिसोड को देखने के बाद मैंने अपनी मेड से कहा वो आपने साथ अपनी चार साल की बच्ची को ला सकती है जिसे वो काम पर आने से पहले स्लम के कुछ लड़कों के पास छोड़ आती थी. उसके क्यूँ पूछने पर उसे मैंने उसे सत्यमेव जयते का वो एपिसोड repeat टेलिकास्ट में दिखाया था.
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मुद्दा जब भी यौन शोषण का आता है तब हम स्वतः ही निर्णायक बन पुरुष को दोषी मान लेते हैं लेकिन महिलायें भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं . मेरी कहानी संग्रह से 'लाल बाबू' पढ़ने के बाद मेरे एक पुरुष मित्र ने कहा "अगली संग्रह में "लाल बबुआइन" लिखना. कूरेदने पर उसने बताया कि कैसे बचपन में एक Aunty उसके साथ अजीब अजीब हरकतें करती थी और उससे करवाती थी, जिसे करने में बाद में उसे मज़ा भी आने लगा था.
ख़ैर बात बॉलीवुड की हो रही थी सो एक दिन यूँ ही हाथ में रिमोट लेकर चैनल घुमाते हुए अचानक ही मेरी नज़र अलिया भट्ट पर पड़ी और मेरी ऊँगलियाँ रुक गई. अलिया का मासूम चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था. यह सीन इम्तियाज़ अली द्वारा निर्मित हाईवे मूवी से था. जिसके कुछ अंतिम दृश्य चल रहे थे. उस सीन में अलिया रोते हुए एक दाढ़ी वाले अंकल से कहती है, 'क्या आज आप मुझे chocolate नहीं दोगे ?'
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अंकल के हाँ कहने पर वो फिर पूछती है कि 'यहाँ सबके सामने दोगे या बाथरूम में?' बस इसी सीन में अलिया का सारा दर्द बयाँ हो जाता है! ये दर्द सिर्फ़ अलिया का नहीं है, ये दर्द हर दूसरे तीसरे घर के किसी बच्चे का है! ज़रूरी नहीं कि यौन शोषण की शिकार सिर्फ़ लड़की बच्ची होती है सर्वे के अनुसार लड़के बच्चे की समान संख्या में शिकार होते है!
अभी-अभी विद्या बालन अभिनीत कहानी-2 भी बाल यौन शोषण पर निर्मित एक फ़िल्म है. यह एक ऐसी युवती की कहानी है जिसका बचपन में रिश्तेदार द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है , इसका उसके दिमाग़ पर इतना गहरा असर होता है कि शारीरिक सम्बन्ध से उसका विश्वास उठ जाता है. वह इतनी भयाक्रांत होती है कि अपने पति के साथ भी सहज महसूस नहीं कर पाती है! उसका परिवार बिखर जाता है पर वह अपना जीवन एक यौन उत्पीड़ित बच्ची को बचाने में लगा देती है.
आइये हम सब भी सचेत हो जायें और अपने बच्चे को यौन उत्पीड़न से बचायें.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.