लगभग हर दिन अखबारों, टीवी पर बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन हिंसा की खबरों को सुर्खियों में देखना दिल दहला देता है. हाल ही में, बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण के दो ऐसे मामलों ने पूरे इंटरनेट पर आग लगा दी है. पहला मामला दिल्ली के ट्रायल कोर्ट में 10 साल की एक बच्ची का था. इस बच्ची ने अपने चाचा द्वारा किए गए रेप को अपने स्केच से जाहिर किया. दूसरे मामले में पीड़िता 5 साल की एक बच्ची थी जिसने दिल्ली हाई कोर्ट को अपनी बार्बी गुड़िया की सहायता से अपने साथ हुए अत्याचार के बारे में बताया.
अगर 5 साल और 10 साल की बच्चियों के साथ हुए ऐसे घिनौने अपराध के बारे में जानने के बाद भी आपका दिल नहीं दहला तो आगे की कहानी सुनिए. इन बच्चियों को कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े, वकीलों के 'शर्मनाक' और 'अपमानजनक' सवालों का जवाब देना पड़ा, जिनका जवाब देना बड़ों लोगों के लिए ही पहाड़ की तरह होता है तो फिर बच्चों की मानसिक स्थिति क्या होती होगी ये सोचकर रूह तक कांप जाती है. फिर ये बताने की तो कोई जरूरत ही नहीं कि इस सारी प्रक्रिया से गुजरते हुए उन बच्चियों का क्या हाल हुआ होगा.
रेप शरीर को ही नहीं मन को भी तोड़ डालता है
लेकिन राहत की बात ये है कि दोनों ही मामलों को न्यायपालिका ने एक बहुत अप्रत्याशित तरीके से हैंडल किया, जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है. बच्चियों को और अधिक मानसिक उत्पीड़न से बचाने के मकसद से कोर्ट ने उन्हें अपने खिलाफ हुए यौन उत्पीड़न को बताने के लिए चीजों की सहायता लेने पर प्रोत्साहित किया.
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की अदालत ने 10 साल की बच्ची द्वारा बनाए गए क्रेयोन स्केच पर भरोसा किया और उसको ही सबूत मानते हुए आरोपी को दोषी ठहराया. मामले में आरोपी को पांच साल जेल कैद की सजा सुनाई.
इसी तरह से हाई कोर्ट के जज ने 5 साल की बच्ची को अपना दर्द बयान करने के लिए अनोखा तरीका अपनाया. कोर्ट ने बच्ची को अपनी गुड़िया से खेलने की अनुमति दी और इसके बाद बच्ची ने अपने साथ हुए हर अत्याचार को गुड़िया के साथ करके दिखाया. हाई कोर्ट ने उसे सबूत मानते हुए 23 साल के आरोपी को सजा सुनाई.
बच्चियों के साथ जिस तरह के अपराध हुए हैं उनको देखते हुए कोर्ट के संवेदनशील तरीके की तारीफ करनी चाहिए. अपने ऊपर हुए अत्याचार के बाद बच्चियों को किस दर्द से गुजरना पड़ा होगा वो दिल दहलाने वाला है. इस घटना ने बच्चियों के शरीर को छोड़िए उनके मन-मस्तिष्क को किस तरीके से छतिग्रस्त किया होगा ये हमारी कल्पना से भी परे है.
यही कारण है कि दोनों ही मामलों में कोर्ट द्वारा अपनाए गए संवेदनशील तरीकों की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है. कोर्ट के इस कदम ने ना सिर्फ बच्चियों के गुनहगार को पकड़ा गया बल्कि उन्हें कोर्ट के असंवेदनशील माहौल से भी बचाया. ये ऐसी चीजें हैं जिसका हकदार सभी रेप पीड़ितों को होना चाहिए. ये और बात है कि इन मामलों में पीड़िता छोटी बच्चियां हैं लेकिन बड़ी लड़कियों के लिए भी अपने साथ हुए रेप की घटना के बारे में बताना भी भारी पड़ता है.
अब यही उम्मीद करते हैं कि बच्चों के साथ शुरू हुई भारत में न्यायपालिका की संवेदनशीलता लड़िकयों की उम्र को नहीं बल्कि भावनाओं को ध्यान में रखेगी.
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