भारतीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार पर कब्ज़ा जमाने के बाद अब चीन की कंपनियां भारतीय दवाइयों में भी सेंध लगा चुकी हैं. हिंदुस्तान में छपी एक खबर के अनुसार सरकार के दवाओं की कीमतों पर सख्ती और जैनरिक दवाएं लिखने पर जोर देने के बाद दवा कंपनियों ने अब मुनाफा कमाने के लिए भारतीय एपीआई की जगह चीनी एपीआई का इस्तेमाल धड़ल्ले से करना शुरू कर दिया है. चीनी एपीआई, भारतीय एपीआई से चार गुना तक सस्ती होती है और साथ ही जहां भारतीय एपीआई के सभी डाटाबेस स्पष्ट होते हैं तो वहीं चीनी एपीआई के आंकड़े स्पष्ट नहीं होते हैं.
क्या होता है एपीआई ?
एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स. ये इंटरमीडिएट्स, टेबलेट्स, कैप्सूल्स और सिरप बनाने के मुख्य रॉ मैटेरियल्स होते हैं. किसी भी दवाई के बनने में एपीआई की मुख्य भूमिका होती है और इसी एपीआई के लिए अब भारतीय कंपनियां बहुत हद तक चीन पर निर्भर हैं.
भारतीय दवा कंपनियों की चीन पर निर्भरता एपीआई के इम्पोर्ट के आकड़ों से भी समझी जा सकती है. साल 2015-16 में भारत ने चीन से 13,853.20 करोड़ के एपीआई इम्पोर्ट किया यह कुल इम्पोर्ट का 65 फीसदी था. साल 2014-15 में आयात के ये आकंड़े 12,757.96 करोड़ के थे जो कुल आयात का 64.33 फीसदी था, जबकि साल 2013-14 में ये आकंड़े 12,061.53 करोड़ के थे. यानी पिछले तीन सालों में भारत ने कुल 60,041.25 करोड़ के इम्पोर्ट में 38,672.69 करोड़ का रॉ मैटीरियल केवल चीन से इम्पोर्ट किया. सरकार की भारतीय दवाई कंपनियों को बढ़ावा देने की तमाम कोशिशों के बावजूद, रॉ मैटीरियल के लिए चीन पर इतनी निर्भरता कई सवाल खड़े करती है.
चीन पर रॉ मैटीरियल के लिए निर्भरता का दूसरा पहलू ये भी है कि दवा कंपनियों को स्पष्ट निर्देश हैं कि वो केवल डब्ल्यूएचओ के जीएमपी मानकों के अनुरूप निर्मित एपीआई ही आयात करें, बावजूद...
भारतीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार पर कब्ज़ा जमाने के बाद अब चीन की कंपनियां भारतीय दवाइयों में भी सेंध लगा चुकी हैं. हिंदुस्तान में छपी एक खबर के अनुसार सरकार के दवाओं की कीमतों पर सख्ती और जैनरिक दवाएं लिखने पर जोर देने के बाद दवा कंपनियों ने अब मुनाफा कमाने के लिए भारतीय एपीआई की जगह चीनी एपीआई का इस्तेमाल धड़ल्ले से करना शुरू कर दिया है. चीनी एपीआई, भारतीय एपीआई से चार गुना तक सस्ती होती है और साथ ही जहां भारतीय एपीआई के सभी डाटाबेस स्पष्ट होते हैं तो वहीं चीनी एपीआई के आंकड़े स्पष्ट नहीं होते हैं.
क्या होता है एपीआई ?
एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स. ये इंटरमीडिएट्स, टेबलेट्स, कैप्सूल्स और सिरप बनाने के मुख्य रॉ मैटेरियल्स होते हैं. किसी भी दवाई के बनने में एपीआई की मुख्य भूमिका होती है और इसी एपीआई के लिए अब भारतीय कंपनियां बहुत हद तक चीन पर निर्भर हैं.
भारतीय दवा कंपनियों की चीन पर निर्भरता एपीआई के इम्पोर्ट के आकड़ों से भी समझी जा सकती है. साल 2015-16 में भारत ने चीन से 13,853.20 करोड़ के एपीआई इम्पोर्ट किया यह कुल इम्पोर्ट का 65 फीसदी था. साल 2014-15 में आयात के ये आकंड़े 12,757.96 करोड़ के थे जो कुल आयात का 64.33 फीसदी था, जबकि साल 2013-14 में ये आकंड़े 12,061.53 करोड़ के थे. यानी पिछले तीन सालों में भारत ने कुल 60,041.25 करोड़ के इम्पोर्ट में 38,672.69 करोड़ का रॉ मैटीरियल केवल चीन से इम्पोर्ट किया. सरकार की भारतीय दवाई कंपनियों को बढ़ावा देने की तमाम कोशिशों के बावजूद, रॉ मैटीरियल के लिए चीन पर इतनी निर्भरता कई सवाल खड़े करती है.
चीन पर रॉ मैटीरियल के लिए निर्भरता का दूसरा पहलू ये भी है कि दवा कंपनियों को स्पष्ट निर्देश हैं कि वो केवल डब्ल्यूएचओ के जीएमपी मानकों के अनुरूप निर्मित एपीआई ही आयात करें, बावजूद इसके चीन से एपीआई भेजने वाली कुछ कंपनियां इन मानकों की भी अनदेखी करती हैं. इसका नतीजा दवाइयों की गुणवत्ता में कमी के रूप में देखा जा सकता है, मतलब जो दवाई आप अपनी सेहत में सुधार के लिए लेते हैं वो आपकी सेहत के लिए खतरनाक साबित होती है.
कंपनियां अपना रहीं हैं दोहरे मापदंड
कंपनियां भी आपकी सेहत से खिलवाड़ में लगी हैं, कंपनियां जहां भारत में बिक्री के लिए सस्ती एवं कमतर गुणवत्ता वाली चीनी एपीआई का इस्तेमाल कर रहीं हैं तो वहीं विदेशों में निर्यात करने वाली दवाइयों में बेहतर गुणवत्तायुक्त भारतीय एपीआई लगा रही हैं. मतलब साफ है कि कंपनियां आपकी सेहत से ज्यादा अपने मुनाफे को तवज्जो दे रहीं हैं. ऐसे में ये बहुत आवश्यक है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि हमें जो दवाइयां मिल रहीं हैं वो हमारे स्वास्थ के साथ खिलवाड़ न करें.
ये भी पढ़ें-
आसान शब्दों में समझिए सस्ती - महंगी दवाओं की पहेली को
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.