इस समय पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है. हर देश इससे निजात पाने की कोशिशें भी कर रहा है. इसी बीच संयुक्त राष्ट्र में दुनिया भर के नेता जमा हुआ हैं. यहीं पर 16 साल की एक एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग भी आई हैं, जो जलवायु परिवर्तन को लेकर लंबे समय से आवाज उठा रही हैं. ग्रेटा ने संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन के बारे में सबको चेतावनी देते हुए एक इमोशनल स्पीच दी. आपको बता दें कि जलवायु परिवर्तन की दिशा में ग्रेटा की कोशिशों को देखते हुए उनका नाम शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने कहा- 'आपने हमारे सपने, हमारा बचपन अपने खोखले शब्दों से छीना. हालांकि, मैं अभी भी भाग्यशाली हूं. लेकिन लोग झेल रहे हैं, मर रहे हैं, पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है. आपने हमें असफल कर दिया. युवा समझते हैं कि आपने हमें छला है. हम युवाओं की आंखें आप लोगों पर हैं और अगर आपने हमें फिर असफल किया तो हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे. हम आपको जाने नहीं देंगे. आपको यहां इसी वक्त लाइन खींचनी होगी. दुनिया जग चुकी है और चीजें बदलने वाली हैं, चाहे आपको यह पसंद आए या न आए.'
ग्रेटा स्वीडन की रहने वाली हैं, जिन्होंने पहली बार ग्रेटा ने 9 साल की उम्र में क्लाइमेट एक्टिविज्म में हिस्सा लिया था. जलवायु परिवर्तन का असर वैसे स्वीडन समेत पूरी दुनिया पर पड़ता हुआ दिख रहा है, लेकिन ग्रेटा की ये लड़ाई काफी बड़ी है. उनकी बात की गहराई को समझने के लिए कुछ ऐसे देशों की ओर निगाह ले जानी होगी, जो असल में जलवायु परिवर्तन के भुक्तभोगी हैं. जिन पर जलवायु परिवर्तन ने इतना बुरा असर डाला कि या तो वह खत्म हो चुके हैं, या खत्म होने की कगार पर हैं.
खत्म होने की कगार पर है किरिबाटी
यहां बात हो रही है लॉन टेटिओटा (Ioane Teitiota) की, जो किरिबाटी (Kiribati) के रहने वाले हैं. ओसियानिया द्वीप का ये देश हर ओर से समुद्र से घिरा है. जहां तक नजरें जा सकती हैं, सिर्फ समुद्र ही दिखता है. अक्सर ही यहां बाढ़ जैसे हालात बन जाते...
इस समय पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है. हर देश इससे निजात पाने की कोशिशें भी कर रहा है. इसी बीच संयुक्त राष्ट्र में दुनिया भर के नेता जमा हुआ हैं. यहीं पर 16 साल की एक एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग भी आई हैं, जो जलवायु परिवर्तन को लेकर लंबे समय से आवाज उठा रही हैं. ग्रेटा ने संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन के बारे में सबको चेतावनी देते हुए एक इमोशनल स्पीच दी. आपको बता दें कि जलवायु परिवर्तन की दिशा में ग्रेटा की कोशिशों को देखते हुए उनका नाम शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने कहा- 'आपने हमारे सपने, हमारा बचपन अपने खोखले शब्दों से छीना. हालांकि, मैं अभी भी भाग्यशाली हूं. लेकिन लोग झेल रहे हैं, मर रहे हैं, पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है. आपने हमें असफल कर दिया. युवा समझते हैं कि आपने हमें छला है. हम युवाओं की आंखें आप लोगों पर हैं और अगर आपने हमें फिर असफल किया तो हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे. हम आपको जाने नहीं देंगे. आपको यहां इसी वक्त लाइन खींचनी होगी. दुनिया जग चुकी है और चीजें बदलने वाली हैं, चाहे आपको यह पसंद आए या न आए.'
ग्रेटा स्वीडन की रहने वाली हैं, जिन्होंने पहली बार ग्रेटा ने 9 साल की उम्र में क्लाइमेट एक्टिविज्म में हिस्सा लिया था. जलवायु परिवर्तन का असर वैसे स्वीडन समेत पूरी दुनिया पर पड़ता हुआ दिख रहा है, लेकिन ग्रेटा की ये लड़ाई काफी बड़ी है. उनकी बात की गहराई को समझने के लिए कुछ ऐसे देशों की ओर निगाह ले जानी होगी, जो असल में जलवायु परिवर्तन के भुक्तभोगी हैं. जिन पर जलवायु परिवर्तन ने इतना बुरा असर डाला कि या तो वह खत्म हो चुके हैं, या खत्म होने की कगार पर हैं.
खत्म होने की कगार पर है किरिबाटी
यहां बात हो रही है लॉन टेटिओटा (Ioane Teitiota) की, जो किरिबाटी (Kiribati) के रहने वाले हैं. ओसियानिया द्वीप का ये देश हर ओर से समुद्र से घिरा है. जहां तक नजरें जा सकती हैं, सिर्फ समुद्र ही दिखता है. अक्सर ही यहां बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं और सबसे खतरनाक बात ये है कि समुद्र का खारा पानी तालाब के पानी को तो खराब कर ही देता है, फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है. मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए ये कहा जा रहा है आने वाले 25-30 सालों में किरिबाटी का नामोनिशां नहीं रहेगा, क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है.
इस खतरे को देखते हुए ही लॉन टेटिओटा ने 2015 में परिवार समेत न्यूजीलैंड में शरण लेने की सोची थी. इसके लिए उन्होंने बाकायदा आवेदन तक किया, लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली. तर्क ये दिया गया कि न्यूजीलैंड में शरण लेने की शर्तों में जलवायु परिवर्तन नहीं है. आखिरकार उन्हें वापस किरिबाटी जाना पड़ा और जीवन को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है. भले ही लॉन टेटिओटा को न्यूजीलैंड में शरण नहीं मिली, लेकिन उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर और जलवायु परिवर्तन की ओर खींचने में सफलता पाई.
मालदीव का अस्तित्व खतरे में
जब कभी दुनिया के खूबसूरत देशों की बात होती है तो मालदीव का नाम जरूर आता है. 1200 द्वीपों में बसे इस देश में दुनिया भर से लोग घूमने आते हैं. लोगों को यहां समुद्र के पानी का किनारा जितना अच्छा लगता है, वही मालदीव की जान का दुश्मन भी बना जा रहा है. जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का जल स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है और अगर ये अधिक बढ़ गया तो मालदीव का खत्म होना तय है. वैसे एक बात समझ लीजिए, वैज्ञानिकों की राय है कि कुछ भी कर लें, लेकिन अभी नहीं तो सौ-पचास साल बाद सही, मालदीव का खत्म होना तय है. ये मामला इतना गंभीर है कि आज से करीब 10 साल पहले ही मालदीव ने इस ओर दुनिया का ध्यान खींचने के लिए पानी के अंदर एक बैठक की थी और एक याचिका पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें दुनिया से गुहार लगाई गई थी कि वह अपना कार्बन उत्सर्जन कम करें, ताकि उनके अस्तित्व पर खतरा ना मंडराए. अगर जलवायु परिवर्तन को लेकर कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया तो जल्द ही मालदीव पर खतरा छा जाएगा.
बांग्लादेश में 1.9 करोड़ बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा
जलवायु परिवर्तन की वजह से बांग्लादेश में लगातार प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं. इसकी वजह से वहां रहने वाले करीब 1.9 करोड़ बच्चों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है. सबसे अधिक खतरा चक्रवात और बाढ़ से है. खैर, अभी तो ये खतरा सिर्फ बच्चों की जिंदगी पर मंडरा रहा है, लेकिन अगर समुद्र का जल स्तर यूं ही बढ़ता रहा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हमने कुछ नहीं किया तो एक दिन बांग्लादेश के डूबने की नौबत आ जाएगी. ऐसी स्थिति में करोड़ों लोगों की जान खतरे में होगी. वैसे ये खतरा हर उस द्वीप या देश पर मंडरा रहा है, जो समुद्र के बीच में बसा हुआ है.
जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ गए कई आइलैंड
- किरिबाटी तो अभी खत्म होने के कगार पर है, लेकिन तेबुनगिनाको (Tebunginako) खत्म हो चुका है जो किरिबाटी देश के तहत आने वाला ही एक आइलैंड था. 1970 में समुद्र का पानी धीरे-धीरे गांव के नजदीक आने लगा. आज के समय में उसका कोई नामोनिशां नहीं है.
- हवाइयन आइलैंड में 11 एकड़ का हुरिकेन वलाका (Hurricane Walaka) नाम का भी एक आइलैंड हुआ करता था, जो 2018 में खत्म हो गया. इसकी संभावनाएं तो पहले से ही जताई जाने लगी थी. कुछ विशेषज्ञों ने इस ओर इशारा कर दिया था, लेकिन 2018 खत्म होते-होते एक स्थानीय अखबार ने इस बात की पुष्टि कर दी.
- वहीं दूसरी ओर 5 पैसिफिक आइलैंड भी खत्म हो चुके हैं. 2016 में आई ऑस्ट्रेलियन रिसर्चर्स की रिपोर्ट के अनुसार सोलोमन आइलैंड्स के छोटे-छोटे 5 पैसिफिक आइलैंड जलवायु परिवर्तन के चलते खत्म हो गए हैं. इनमें से एक था नौतांबु आइलैंड, जहां 25 परिवार रहते थे, लेकिन अब वहां सिर्फ समुद्र का पानी दिखता है.
यूनाइटेड नेशन्स में फिलहाल जलवायु परिवर्तन पर बात हो रही है, लेकिन 2013 में यूनाइटेड नेशन्स पहले ही जलवायु परिवर्त के लिए चेतावनी दे चुका है. यूनाइटेड नेशन्स की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार अगर कार्बन उत्सर्जन में देशों ने कमी नहीं की तो सन 2100 तक समुद्र का जलस्तर 1.5 से 3 फुट तक बढ़ जाएगा. आपको बता दें कि कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन पहले नंबर पर है और अमेरिका दूसरे, वहीं भारत तीसरे नंबर पर है. ग्रेटा थनबर्ग की इमोशनल और अलार्मिंग स्पीच मुख्य रूप से इन्हीं देशों के लिए थी, ताकि वह आने वाले भविष्य के खतरे को भांप सकें.
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