सुनिए वीर दास!
भारत में आज भी बहुत बड़ी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है और यहां हम आज भी छतों पर सोकर तारे गिन सकते हैं. और रही बात आपके कथन 'दिन में पूजा और रात में रेप' की तो कुछ आंकड़े इस पोस्ट के साथ लगी तस्वीरों में देखिए. यह नहीं कहती कि भारत स्त्रियों के लिए सुरक्षित ही है. बल्कि मैं स्वयं रात अकेले निकलने से पहले सोचूंगी. और अब तो बेटी की मां हूं, सुरक्षा की चिंता उसके साथ जन्मी. यह भी सच है कि ख़ुद को देशप्रेमी, स्त्री संरक्षक मानने वाले कई पुरुषों के मुंह पर मां-बहन की गालियां तकियाकलाम की तरह रखी रहती हैं और जिन्हें अंदाज़ा भी नहीं कि ये गालियां हमें कितनी तकलीफ़ देती हैं. यह भी सच है कि भारत में बलात्कार के कई मामले दर्ज ही नहीं कराए जाते, कई पुलिस द्वारा ही अनसुने कर दिए जाते हैं. मगर यह भी सच है कि एक बैंक अधिकारी जब सरकारी ड्यूटी के तहत एक किसान के घर कर्जा जमा करने की कहने गया तो उसकी पत्नी ने अधिकारी पर बलात्कार का झूठा मामला लगा दिया था और वह अधिकारी क्योंकि तथाकथित सवर्ण वर्ग से आता था अतः उसे इतना सताया गया कि उसने आत्महत्या कर ली. और इस बैंक अधिकारी जैसे भी कई मामले यहां दर्ज हैं.
यह भी सच है कि 'दिन में पूजा करने वाला बहुतायत आदमी रात में बलात्कार नहीं करता' अतः वैश्विक पटल पर धर्म को बदनाम करने से पहले वैश्विक आंकड़े देख लें. यह भी देख लें बीते कि 2000 वर्षों के इतिहास में कैथलिक समाज ने एक भी स्त्री पोप नहीं दिया. उनके यहां स्त्रियों को पूजा नहीं जाता फिर भी वहां स्त्रियों के साथ होने वाले बलात्कार के मामले भारत से ज़्यादा हैं.
बीते कुछ वर्षों में महसूस किया कि एक फ़ैशन सा बन...
सुनिए वीर दास!
भारत में आज भी बहुत बड़ी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है और यहां हम आज भी छतों पर सोकर तारे गिन सकते हैं. और रही बात आपके कथन 'दिन में पूजा और रात में रेप' की तो कुछ आंकड़े इस पोस्ट के साथ लगी तस्वीरों में देखिए. यह नहीं कहती कि भारत स्त्रियों के लिए सुरक्षित ही है. बल्कि मैं स्वयं रात अकेले निकलने से पहले सोचूंगी. और अब तो बेटी की मां हूं, सुरक्षा की चिंता उसके साथ जन्मी. यह भी सच है कि ख़ुद को देशप्रेमी, स्त्री संरक्षक मानने वाले कई पुरुषों के मुंह पर मां-बहन की गालियां तकियाकलाम की तरह रखी रहती हैं और जिन्हें अंदाज़ा भी नहीं कि ये गालियां हमें कितनी तकलीफ़ देती हैं. यह भी सच है कि भारत में बलात्कार के कई मामले दर्ज ही नहीं कराए जाते, कई पुलिस द्वारा ही अनसुने कर दिए जाते हैं. मगर यह भी सच है कि एक बैंक अधिकारी जब सरकारी ड्यूटी के तहत एक किसान के घर कर्जा जमा करने की कहने गया तो उसकी पत्नी ने अधिकारी पर बलात्कार का झूठा मामला लगा दिया था और वह अधिकारी क्योंकि तथाकथित सवर्ण वर्ग से आता था अतः उसे इतना सताया गया कि उसने आत्महत्या कर ली. और इस बैंक अधिकारी जैसे भी कई मामले यहां दर्ज हैं.
यह भी सच है कि 'दिन में पूजा करने वाला बहुतायत आदमी रात में बलात्कार नहीं करता' अतः वैश्विक पटल पर धर्म को बदनाम करने से पहले वैश्विक आंकड़े देख लें. यह भी देख लें बीते कि 2000 वर्षों के इतिहास में कैथलिक समाज ने एक भी स्त्री पोप नहीं दिया. उनके यहां स्त्रियों को पूजा नहीं जाता फिर भी वहां स्त्रियों के साथ होने वाले बलात्कार के मामले भारत से ज़्यादा हैं.
बीते कुछ वर्षों में महसूस किया कि एक फ़ैशन सा बन गया है. आप भारत को वैश्विक पटल पर ग़रीब दिखाइए, भारतीय धर्मों का मज़ाक उड़ाइए, भारतीय वर्ण व्यवस्था को दिखाइए तो आपको ज़्यादा फॉलोवर्स मिलेंगे. वैश्विक स्तर पर भी बहुतायत में स्वीकृति मिलेगी. हंसी तब आती है जब ऐसा करने वाले अपने ही घरों से वर्ण व्यवस्था नहीं हटा पाते, अपने ही घर की स्त्रियों के हक़ के लिए नहीं लड़ पाते और अपने ही देश को आगे बढ़ाने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाते.
बल्कि इन लोगों से यदि आत्मनिर्भर भारत जैसी बातें की जाएं, इन्हें बताया जाए कि सरकार नए आइडियाज़ को तवज्जो दे रही है. पैसा-जगह भी दे रही है. आप शुरू कीजिए व्यापार, छोड़कर आइए महानगरों की प्रदूषण भरी ज़िन्दगी. कोशिश कीजिए अपने देश के ग्रामीण इलाकों को बेहतर बनाने की तो यही लोग शराब के दो पैग़ के साथ अपनी बेबसी बताकर निकल लेंगे.
6 साल पहले भोपाल आइक्लीन के समय जब हम चंद युवा सड़कों पर झाड़ू लगाते, शहर को सुंदर बनाने की कोशिश करते थे तब इसी तरह के लोग हमारे आगे कचरा फेंक जाते थे बजाय ख़ुद हाथ में झाड़ू थामने के. हमने मान लिया है कि हमारा काम घर की बालकनी से कचरा उछालना है और सरकार का काम है उसके लिए घर-घर के बाहर एक-एक सफ़ाई कर्मचारी नियुक्त करना.
हमें तो इतना प्रिविलेज चाहिए कि चार कदम चलकर मोहल्ले के नुक्कड़ पर रखे कचरेदान में कचरा भी ना फेंकना पड़े. उस कचरेदान के चारों ओर लगा कचरे का ढेर इस बात का सुबूत है कि हम कितने नालायक हैं. वीर दास सरीख़े लोग इसी तबके में आते हैं. ऋषिकेश घूमने जाने वालों में 70% युवा वर्ग होगा. जो ट्रेकिंग के लिए जाता है, रिवर राफ्टिंग के लिए जाता है.
इतने लोगों में क्या कभी किसी ने सोचा कि नीलकंठ मंदिर के सामने पहाड़ी पर जो कभी झरना हुआ करता था, अब वह कचरे का झरना बन गया है तो क्यों ना उसे साफ़ करने के लिए कुछ कोशिशें की जाए. एक आंदोलन इसी के लिए कर लिया जाए? जशपुर जैसी छोटी सी जगह में रात में खेतों में बैठकर शराब पीने वाले और वहीं शराब की बोतलें छोड़कर चले जाने वाले यह नहीं सोचते कि सुबह जब कोई किसान यहां नंगे पैर आएगा तो उसे कांच चुभ सकता है.
मन में करुणा, अपने देश को अपना समझकर आगे बढ़ाने की भावना वाली जमात थोड़ी हैं हम. हम तो बल्कि चाहते हैं कि देश में बर्बादी बढ़ती रहे ताकि हम वैश्विक पटल पर देश को नंगा करके तालियां पिटवा सकें. भारत में सबसे ज़्यादा एयर पॉल्यूशन महानगरों में है. दिल्ली-गाज़ियाबाद-गुड़गांव के इलाके में प्रतिवर्ष स्मॉग का रोना रोया जाता है और प्रतिवर्ष ही हज़ारों की संख्या में एसी/कारें आदि ख़रीदें जाते हैं.
गांव की ज़मीन बेचकर शहर में एक फ्लैट ख़रीदने को ही तरक्की के रूप में गढ़ दिया गया है. गांव में रहने वालों को ग़रीब-बेबस-अनपढ़-लाचार की छवि में गढ़ दिया गया है. गाड़ी का प्रदूषण फ्री सर्टिफिकेट अपडेट कराने की जगह हमारा युवा कहता है, 'कोई माई का लाल गाड़ी रोककर तो दिखा दे'. वीर दास अकेले नहीं हैं ऐसा करने वाले या सोचने वाले.
यहां हर हाथ में पकड़ा मोबाइल इस बात की प्रतीक्षा में राह पर खड़ा है कि कहीं तमाशा हो और मैं रिकॉर्ड कर वायरल वीडियो बना सकूं. मोबाइल छोड़कर उस तमाशे को शांत करने वाले हाथ अब न के बराबर मिलते हैं.
इतना लिखने के बाद भी मैं यह मानती हूं कि सारी दुनिया में क्या क्राइम रेट या प्रदूषण इंडेक्स चल रहा है इससे हमें मतलब नहीं होना चाहिए. हमें हमारे देश को, अपना मानकर उसे बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
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