संविधान बंधक है भीड़ तंत्र के हाथों में और राजनीति तमाशा देख रही है. ये तस्वीर है उस देश की जिसे बचपन से अब तक महान कहता आया. लेकिन अब डर लगता है यहां, मालूम नहीं कब कौन सा आदमी नफरत का छुरा घोंप दे पीठ में, सिर्फ इस बात पर कि मेरे सर्टिफिकेट में मेरे नाम के साथ जाति वाले कॉलम में ब्राह्मण लिखा हुआ है, डर लगता है ये सोचकर कि क्या पता कल को कोई सिरफिरा जातिगत नफरत में इतना अंधा हो जाए कि स्कूल से लौटते मेरे बच्चे को ही मार डाले क्योंकि उसका सरनेम उसे सवर्ण बताता है. और मुझे अच्छी तरह मालूम है कि इस देश का संविधान मुझे या मेरे बच्चे को बचा नहीं पाएगा.
मेरी धार्मिक आस्थाएं नफरत के जूते के नीचे रोज़ कुचली जा रही है. जिस संविधान ने मुझे आज़ादी दी कि मैं राम को भगवान मानकर पूजूं, जिस संविधान ने मुझे आज़ादी दी कि मैं दुर्गा पूजा करूं, उनपर थूका जा रहा है, उन्हें जूते मारे जा रहे हैं, मैं आहत हूं, लेकिन कह नहीं सकता क्योंकि तब मैं संविधान विरोधी और दलित विरोधी हो जाऊंगा.
देश की राजनीति का एक वर्ग मेरी जाति, जिसे संविधान ने बताया कि वो मेरी जाति है के नाम पर मुझे मेरे पुरखों को ब्राह्मणवादी सोच कहकर खुले आम गाली दे सकता है, लेकिन मैं अगर उस सोच के प्रतिउत्तर में सिर्फ सवाल पूछ लूं कि मेरा कुसूर क्या है, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा, तो मेरे सर पर जूते मारते हुए मुझे बताया जाएगा कि तुम्हारे पुरखों ने हमारे पुरखों को कभी जूते मारे थे, आज संविधान ने हमें आज़ादी दी है तुमसे बदला लेने की. मैं बचाव में भी हाथ जोड़ूंगा तो मुझे सामंती करार दिया जाएगा.
मुझे अपनी तीन पीढ़ी अच्छी तरह याद है, कभी किसी तरह का जातिगत भेदभाव नहीं देखा, अपने बच्चे को भी यही सिखाया कि इंसान इंसान में भेद...
संविधान बंधक है भीड़ तंत्र के हाथों में और राजनीति तमाशा देख रही है. ये तस्वीर है उस देश की जिसे बचपन से अब तक महान कहता आया. लेकिन अब डर लगता है यहां, मालूम नहीं कब कौन सा आदमी नफरत का छुरा घोंप दे पीठ में, सिर्फ इस बात पर कि मेरे सर्टिफिकेट में मेरे नाम के साथ जाति वाले कॉलम में ब्राह्मण लिखा हुआ है, डर लगता है ये सोचकर कि क्या पता कल को कोई सिरफिरा जातिगत नफरत में इतना अंधा हो जाए कि स्कूल से लौटते मेरे बच्चे को ही मार डाले क्योंकि उसका सरनेम उसे सवर्ण बताता है. और मुझे अच्छी तरह मालूम है कि इस देश का संविधान मुझे या मेरे बच्चे को बचा नहीं पाएगा.
मेरी धार्मिक आस्थाएं नफरत के जूते के नीचे रोज़ कुचली जा रही है. जिस संविधान ने मुझे आज़ादी दी कि मैं राम को भगवान मानकर पूजूं, जिस संविधान ने मुझे आज़ादी दी कि मैं दुर्गा पूजा करूं, उनपर थूका जा रहा है, उन्हें जूते मारे जा रहे हैं, मैं आहत हूं, लेकिन कह नहीं सकता क्योंकि तब मैं संविधान विरोधी और दलित विरोधी हो जाऊंगा.
देश की राजनीति का एक वर्ग मेरी जाति, जिसे संविधान ने बताया कि वो मेरी जाति है के नाम पर मुझे मेरे पुरखों को ब्राह्मणवादी सोच कहकर खुले आम गाली दे सकता है, लेकिन मैं अगर उस सोच के प्रतिउत्तर में सिर्फ सवाल पूछ लूं कि मेरा कुसूर क्या है, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा, तो मेरे सर पर जूते मारते हुए मुझे बताया जाएगा कि तुम्हारे पुरखों ने हमारे पुरखों को कभी जूते मारे थे, आज संविधान ने हमें आज़ादी दी है तुमसे बदला लेने की. मैं बचाव में भी हाथ जोड़ूंगा तो मुझे सामंती करार दिया जाएगा.
मुझे अपनी तीन पीढ़ी अच्छी तरह याद है, कभी किसी तरह का जातिगत भेदभाव नहीं देखा, अपने बच्चे को भी यही सिखाया कि इंसान इंसान में भेद ईश्वर का अपमान है. लौकीराम चाचा, झाऊराम चाचा, रामविलास अंकल, नन्हे अंकल, माफ करना...तुम्हारे कंधों पे बड़ा हुआ...अगर मेरी बात गलत हो तो ईश्वर के यहां मेरे खिलाफ गवाही ज़रूर देना. मैं हमेशा से इस बात का पक्षधर रहा कि समाज में बराबरी होनी चाहिए, जो वाकई शोषित वर्ग है उसे उसका अधिकार मिलना ही चाहिए, उन्हें अतिरिक्त भी मिलना चाहिए, अभी बहुत काम बाकी है जो वंचितों के लिए किया जाना चाहिए. लेकिन सड़कों पर हिंसा का नंगा नाच देखकर मैं सचमुच डर गया हूं, मुझे कोई गर्व नहीं इस बात का कि मैं भारतवासी हूं.
मैं अच्छी तरह समझ गया हूं कि संविधान सिर्फ एक किताब है जिसे कुछ इंसानों ने बनाया और सत्ता लाभ के लिए इंसानों ने ही उसमें संशोधन किए. मुझे कोई गर्व नहीं बचा इस देश के संविधान पर जिस देश में लोग संविधान का हवाला देकर सिर्फ जाति के आधार पर उन्हें जान से मारना चाहते हैं. बिना किसी जांच के जेल भेजना चाहते हैं. इस संविधान में अब मेरा कोई अधिकार सुरक्षित नहीं, क्योंकि मैं अपने नाम और आस्था के साथ अब सम्मान से जी नहीं सकता. अपनी मेहनत के आधार पर शिक्षा और रोज़गार नहीं पा सकता. मैंनें नारे सुने हैं, स्लोगन पढ़े हैं डर लगता है, बहुत डर, तब जब अपने बच्चों को सोते हुए देखता हूं.
अगर आपका आरोप ये है कि आपके पूर्वजों ने अपमान सहे, जुल्म सहे, तो मेरा आरोप आप पर ये है कि मैं आपकी नफरत भरी आंखों से रोज़ अपमान सहता हूं, बिना किसी अपराध के. अपने परिवार को आपके हिंसक जुल्म का शिकार होते देखता हूं. जब मेरे परिवार के बच्चे का बाप खेत बेचकर पढ़ाई के पैसे जमा करता है और सिर्फ जाति की वजह से वो 90 और 9 के अंतर से हर बार हार जाता है तो मैं भी रोता हूं. संविधान मेरे आंसू नहीं पोंछ सकता. मेरी बेबसी ये कि मैं अपनी पीड़ा बता भी नहीं सकता.
मैं एक उम्र बिता चुका, हो सकता है बाकी बची उम्र जी सकूं या किसी उन्मादी के हाथों मारा जाऊं, लेकिन अपने बच्चों के नाम एक विरासत छोड़ जाऊंगा, कि जब भी मौका मिले ये देश उनके हवाले छोड़कर हमेशा चले जाना, जिन्हें तुमसे तुम्हारे नाम की वजह से नफरत है, और फिर कभी वापस मत लौटना.
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