मौतों के मातम में ईद आ रही है. ईद का अर्थ खुशी है और इस त्योहार की रूह मदद/दान और त्याग है. अपनों की मौतों ने खुशियों का मौक़ा छीन लिया है लेकिन मदद के अवसर बढ़ गए हैं. सबसे बड़ी इबादत जरुरतमंद की मदद है. और ऐसा नहीं कि मदद के लिए खूब दौलत और सोर्सेज हों. जज़्बे, अहसास और हौसलों से भी किसी न किसी रूप से मदद की जा सकती है. अगर ऊपर वाले ने दौलत दी है और आप पर फितरा, ज़कात और खुम्स वाजिब है तो कोराना की तबाही में जरूरतमंदों को मदद की खूब ईदी दीजिए. गरीबों को भोजन, राशन और कैश दीजिए. दवा, इंजेक्शन, ऑक्सीजन मुहैया कराइये. हो सके तो नई या अपनी गाड़ी को ही एंबुलेंस बना दीजिए. और इसके जरिए मरीजों की जिन्दगी बचाने का सवाब हासिल कीजिए.
जिन्हें ऊपर वाले ने दौलत से नवाज़ा है वो गरीबों और जरुरतमंदों के लिए खिदमते खल्क (मानव सेवा) मे अपना योगदान दे भी रहे हैं. वैसे तो मजहब कहता है कि मदद ऐसी हो कि एक हाथ से मदद कीजिए तो दूसरे हाथ को ख़बर ना हो. लेकिन अगर आप अपनी ख़िदमत को तस्वीरों के जरिए पेश भी कीजिए तो कोई हर्ज नहीं. इससे दूसरों को भी कुछ बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है. देश में तमाम लोग इस तरह के नेक काम करते नज़र आ रहे हैं. मोहब्बत और तहज़ीब के शहर में भी कई सोनू सूद दिख रहे हैं. गंगा जमुमी तहज़ीब परवान चढ़ रही है.
इमदाद और जहरा मुबीन नाम के नौजवान कोरोना में मरने वालों को उनकी आखिरी मंजिल मरघटों और कब्रिस्तानों तक पंहुचाने में मदद कर रहे हैं. मुकेश बहादुर सिंह नाम के एक शख्स उन तक ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचा रहे हैं, ऑक्सीजन के अभाव में जिनकी सांसे उखड़ रही हैं. ये कोई नहीं देख रहा है कि जरुरतमंद हिंदू, मुसलमान, ब्राह्मण, क्षत्रिय है या पिछड़ा...
मौतों के मातम में ईद आ रही है. ईद का अर्थ खुशी है और इस त्योहार की रूह मदद/दान और त्याग है. अपनों की मौतों ने खुशियों का मौक़ा छीन लिया है लेकिन मदद के अवसर बढ़ गए हैं. सबसे बड़ी इबादत जरुरतमंद की मदद है. और ऐसा नहीं कि मदद के लिए खूब दौलत और सोर्सेज हों. जज़्बे, अहसास और हौसलों से भी किसी न किसी रूप से मदद की जा सकती है. अगर ऊपर वाले ने दौलत दी है और आप पर फितरा, ज़कात और खुम्स वाजिब है तो कोराना की तबाही में जरूरतमंदों को मदद की खूब ईदी दीजिए. गरीबों को भोजन, राशन और कैश दीजिए. दवा, इंजेक्शन, ऑक्सीजन मुहैया कराइये. हो सके तो नई या अपनी गाड़ी को ही एंबुलेंस बना दीजिए. और इसके जरिए मरीजों की जिन्दगी बचाने का सवाब हासिल कीजिए.
जिन्हें ऊपर वाले ने दौलत से नवाज़ा है वो गरीबों और जरुरतमंदों के लिए खिदमते खल्क (मानव सेवा) मे अपना योगदान दे भी रहे हैं. वैसे तो मजहब कहता है कि मदद ऐसी हो कि एक हाथ से मदद कीजिए तो दूसरे हाथ को ख़बर ना हो. लेकिन अगर आप अपनी ख़िदमत को तस्वीरों के जरिए पेश भी कीजिए तो कोई हर्ज नहीं. इससे दूसरों को भी कुछ बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है. देश में तमाम लोग इस तरह के नेक काम करते नज़र आ रहे हैं. मोहब्बत और तहज़ीब के शहर में भी कई सोनू सूद दिख रहे हैं. गंगा जमुमी तहज़ीब परवान चढ़ रही है.
इमदाद और जहरा मुबीन नाम के नौजवान कोरोना में मरने वालों को उनकी आखिरी मंजिल मरघटों और कब्रिस्तानों तक पंहुचाने में मदद कर रहे हैं. मुकेश बहादुर सिंह नाम के एक शख्स उन तक ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचा रहे हैं, ऑक्सीजन के अभाव में जिनकी सांसे उखड़ रही हैं. ये कोई नहीं देख रहा है कि जरुरतमंद हिंदू, मुसलमान, ब्राह्मण, क्षत्रिय है या पिछड़ा है. बस इंसान इंसान के काम आ रहा है.
सोशल एक्टिविस्ट अरमान ख़ान ने नई एंबुलेंस का इंतजाम किया है. उनका मानना है कि मदद की नुमायश नहीं होना चाहिए, पर वो एंबुलेंस की तस्वीर इसलिए ज़ाहिर कर रहे हैं ताकि जरुरतमंद एंबुलेंस की सेवाएं ले सकें. अरमान कहते हैं कि ईद इबादतों और त्याग की परीक्षा देने का इनाम है. इस बार की ईद भी सबकी परीक्षा लेगी. इस बुरे वक्त में अच्छी बात ये है कि रमजान की इबादतों में रोजों और नमाजों के अलावा मानव सेवा की भावनाएं खूब उजागर हुईं है.
इंसानों के भेष में हर धर्म और हर समुदाय के तमाम ऐसे फरिश्ते दिखे जिन्होंने कालजयी कहानीकार प्रेमचंद के किरदार हामिद की तरह अपनी कम आमदनी को भी दूसरों की ज़रुरत पर न्योछावर कर दिया. ईद में भी ऐसे ही जज्बे दिखाई दे तो ग़म के मौसम की ईद आंसू पोंछ देगी. चर्चित कहानी 'ईदगाह' के किरदार हामिद को अपनी दादी के दर्द का अहसास था. वो दो पैसे लेकर ईद के मेले में गया था. उसे भी खिलोने खरीदने की इच्छा थी,लेकिन इस यतीन-यसीर बच्चे ने अपना मन मार लिया था.
मन की इच्छाओं को त्याग दिया था. (यतीन-यसीर का अर्थ है जिसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी हो.) हामिद के दिल में ये चुभता था कि उसकी बूढ़ी दादी के पास चिमटा नहीं है, और जब वो रोटी सेकती है तो उसका हाथ जल जाता है. बस इसी एहसास ने उसे दो पैसै में खिलौना लेने के बजाय चिमटा खरीद लिया था. बस इस खूबसूरत भावना ने ही प्रेमचंद के इस काल्पनिक चरित्र को अमर बना दिया. और हामिद ईद का पर्याय बन गया. आज के हालात में ये बाल किरदार हम सबको प्रेरणा दे रहा है.
आपको इस ईद में कोरोना बीमारी से सिसकते मरीजों का अहसास करना होगा. इस महामारी में मर गए लोगों के परिजनों के आंसुओं को महसूस करना होगा. कोरोना से सताए लोगों को तसल्ली और मदद की ईदी देनी होगी. हामिद बनकर इस ईद को यादगार बना दीजिए.
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