भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy) वैसे ही बुरे दौर से गुजर रही थी, उस पर कोरोना वायरस (Corona virus) का असर 'गरीबी में गीले आंटे' की तरह सामने आया है. भारत फार्मास्युटिकल एलायंस (IPA) ने आने वाले वक़्त में दवाओं (Medicines) के निर्माण को लेकर कुछ जरूरी बातें कहीं हैं. जिसमें कोरोना वायरस की वजह से दवा निर्माण पर पड़ने वाला असर शामिल है. आईपीए के अनुसार अब भारत (India) की फार्मास्युटिकल कम्पनियां सिर्फ अगले दो या 3 महीनों तक ही दवाएं बना पाएंगी. कोरोना वायरस (Coronavirus) के फैलाव को रोकने के लिए चीन से हमारे सारे ट्रेड बंद है. और अब तक दवाओं के निर्माण में जरूरी कैमिकल और सामान वहीं से आता था, इसलिए चीन में छाई इस महामारी का सीधा असर भारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री पर देखने को मिल रहा है. एलायंस का दावा है कि दवाओं के लिए कच्चा माल न होने के कारण भारत सिर्फ अगले दो या तीन महीनों तक ही दवाएं बनाने में सक्षम है.
बायो एशिया 2020 पर बोलते हुए आईपीए के आईपीए के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा है कि "हम केंद्र के साथ संपर्क में हैं और मांग कर रहे हैं कि एपीआई निर्माण इकाइयों को पर्यावरण मंजूरी मिले ताकि चीन पर हमारी निर्भरता ख़त्म हो जाए. जैन के अनुसार,भारत ने नोवेल कोरोनवायरस-प्रभावित राष्ट्रों से 17,000 करोड़ मूल्य के एपीआई को आयात किया है.
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर स्थिति है. ये एक ऐसा वक़्त है जब आगे क्या होगा? इसे लेकर अभी कोई भविष्यवाणी भी नहीं की जा सकती. आईपीए का कहना है कि हमारे पास दवाएं बनाने के लिए अगले दो या तीन महीनों तक के लिए ही कच्चा माल है. हम इस मामले पर देश की सरकार से बात कर रहे हैं ताकि...
भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy) वैसे ही बुरे दौर से गुजर रही थी, उस पर कोरोना वायरस (Corona virus) का असर 'गरीबी में गीले आंटे' की तरह सामने आया है. भारत फार्मास्युटिकल एलायंस (IPA) ने आने वाले वक़्त में दवाओं (Medicines) के निर्माण को लेकर कुछ जरूरी बातें कहीं हैं. जिसमें कोरोना वायरस की वजह से दवा निर्माण पर पड़ने वाला असर शामिल है. आईपीए के अनुसार अब भारत (India) की फार्मास्युटिकल कम्पनियां सिर्फ अगले दो या 3 महीनों तक ही दवाएं बना पाएंगी. कोरोना वायरस (Coronavirus) के फैलाव को रोकने के लिए चीन से हमारे सारे ट्रेड बंद है. और अब तक दवाओं के निर्माण में जरूरी कैमिकल और सामान वहीं से आता था, इसलिए चीन में छाई इस महामारी का सीधा असर भारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री पर देखने को मिल रहा है. एलायंस का दावा है कि दवाओं के लिए कच्चा माल न होने के कारण भारत सिर्फ अगले दो या तीन महीनों तक ही दवाएं बनाने में सक्षम है.
बायो एशिया 2020 पर बोलते हुए आईपीए के आईपीए के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा है कि "हम केंद्र के साथ संपर्क में हैं और मांग कर रहे हैं कि एपीआई निर्माण इकाइयों को पर्यावरण मंजूरी मिले ताकि चीन पर हमारी निर्भरता ख़त्म हो जाए. जैन के अनुसार,भारत ने नोवेल कोरोनवायरस-प्रभावित राष्ट्रों से 17,000 करोड़ मूल्य के एपीआई को आयात किया है.
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर स्थिति है. ये एक ऐसा वक़्त है जब आगे क्या होगा? इसे लेकर अभी कोई भविष्यवाणी भी नहीं की जा सकती. आईपीए का कहना है कि हमारे पास दवाएं बनाने के लिए अगले दो या तीन महीनों तक के लिए ही कच्चा माल है. हम इस मामले पर देश की सरकार से बात कर रहे हैं ताकि हमारे पर्यावरणीय मंजूरी के प्रयासों में तेजी आ जाए.
यदि ऐसा हो जाता है तो चीन पर हमारी निर्भरता ख़त्म हो जाएगी वरना आने वाले कुछ महीनों के बाद स्थिति भयावह होगी. बता दें कि चीन के चलते इस वक़्त भारत दवाओं के निर्माण के मद्देनजर वैकल्पिक स्रोत पर बल दे रहा है. जैन ने ये भी स्वीकारा है कि चीन में इस बीमारी का असर कब ख़त्म होगा इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है इसलिए आने वाले वक़्त में दवाओं की किल्लत निश्चित है.
पेरासिटामॉल के दाम 40 फीसदी बढ़े
आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले एनाल्जेसिक, पेरासिटामोल की कीमतें चीन में कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण 40% तक बढ़ गई हैं. वहीं ब्लूमबर्ग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि एज़िथ्रोमाइसिन जिसका इस्तेमाल कई बैक्टीरिया संक्रमणों के इलाज के लिए लिए जाता है उस एंटीबायोटिक के दाम भी 70% प्रतिशत बढ़ गए हैं.
चीन के दवा निर्माता स्थिति सामान्य करने की कोशिश तो कर रहे हैं मगर अब भी इसमें लंबा वक़्त लगेगा. दवा के मुख्य एलिमेंट की बढ़ी हुई कीमतों का ये असर केवल भारत की फार्म इंडस्ट्री पर नहीं बल्कि कई और उद्योगों में देखने को मिलेगा. कहा जा रहा है कि अगर इस शटडाउन से चीन नहीं उभरता है तो इसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा.
क्या करने वाली है सरकार
बता दें कि 90 के दशक में भारत की एपीआई इंडस्ट्री चीन से कहीं आगे थे. चीन ने इसे देखकर प्लानिंग शुरू की और उसने दवा के कारोबारियों को मुफ्त बिजली पानी, सब्सिडी दिलाई जिससे वो कुछ समय बाद भारत की फार्मास्युटिकल कम्पनियों से आगे निकल गया. चूंकि दवा कारोबारियों के हालात जटिल हैं इसलिए कहा ये भी जा रहा है कि एपीआई सप्लाई के लिए भारत यूरोपीय देशों का रुख करे.
बहरहाल अब जबकि पेरासिटामॉल के दाम बढ़ने से स्थिति गंभीर हो गई है. फार्मा निर्माताओं के पास चुनौतियों का पहाड़ है. देखना दिलचस्प रहेगा कि भारतीय फार्मा निर्माता कम्पनियां इस चुनौती का सामना कैसे करती हैं? साथ ही सरकार इन कंपनियों के लिए क्या प्रबंध करती है.
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