एक रिसर्च स्टडी में कोरोना महामारी के प्रसार को लेकर जो तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं वो अब तक की वैज्ञानिक धारणा से बिल्कुल अलग हैं. रिसर्च के दावे अगर सही हैं तो अब तक दुनिया कोरोना से जंग में बड़ी चूक कर रही थी. और इसी वजह से महामारी रुकने की बजाय बढ़ती ही जा रही है. रिसर्च के दावे कोरोना से जंग में ये बहुत मददगार साबित हो सकते हैं. मेडिकल जर्नल "लैंसेट" में प्रकाशित छह विशेषज्ञों के शोध में बताया गया है कि कैसे SARS-CoV-2 वायरस जो कोविड 19 (कोरोना) की वजह है, उसका प्रसार हवा से हो रहा है. रिसर्च की दुनियाभर में चर्चा हो रही है.
सालभर पहले भी कई वैज्ञानिकों ने इसी तरह का दावा किया था लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने तब हवा के जरिए कोरोना फैलने की बात तो मानी मगर ठोस वैज्ञानिक साक्ष्यों की कमी की वजह से इसे अडॉप्ट नहीं किया. WHO ने तब दिशा में और ज्यादा काम करने की जरूरत पर बल दिया था. अब अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के छह विशेषज्ञों की टीम अध्ययन के आधार पर हवा से कोरोना के फैलने के दावे और वैज्ञानिक सबूत पेश कर रही है.
तो कोरोना से लड़ाई के तरीके गलत थे
रिसर्च करने वाली टीम के मुताबिक़ हवा के जरिए जो वायरस फैलते हैं उन्हें दिखाना काफी मुश्किल होता है. पिछले कई संक्रमणों पर हुए रिसर्च में यह पाया जा चुका है कि बूंदों के जरिए फैलने वाली बात गलत थी, वे सभी संक्रमण हवा के जरिए ही फैले थे. बूंदे किसी के खांसी या छींक के कारण पैदा होती हैं. रिसर्च टीम का दावा है- "चूंकि कोरोना से लड़ाई हवा के जरिए संक्रमण की बजाय बूंद वाली थियरी के आधार पर हो रही है, इसीलिए महामारी पर काबू नहीं हो पा रहा." टीम ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और हेल्थ सेक्टर में काम कर रही दूसरी जिम्मेदार संस्थाओं से रिसर्च में मिले साक्ष्यों को अपनाने की अपील की जिससे महामारी के प्रसार को थामा जा सके.
क्या है बूंद थियरी जिसके आधार पर लड़ी जा रही है कोरोना से जंग
दरअसल, बूंद थियरी में किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने से उसके कॉन्टैक्ट का दूसरा व्यक्ति भी सांस के जरिए निकली बूंदों की वजह से संक्रमित हो जाता है. या अगर किसी संक्रमित व्यक्ति की खांसी या छींक से बूंदे किसी भी सतह पर पडीं और कोई उसके सम्पर्क में आ गया तो वो संक्रिमत हो जाता है. अब तक कोरोना से बचाव के तरीके जैसे मास्क पहनना, हाथ धोना, साफ़ सफाई रखना, सेनिटाइज इस्तेमाल करना और स्वास्थ्य उपकरण इसी कॉन्टैक्ट को ख़त्म करने के लिए बनाए गए थे.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की समीक्षा में भी रिसर्च के दावे पुख्ता
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ट्रिश ग्रिन्हाल के नेतृत्व में कई विशेषज्ञों की एक टीम ने रिसर्च में किए गए दावों की समीक्षा की. समीक्षकों ने 10 ऐसे सबूत पाए जिससे दावा पुख्ता है कि कोरोना महामारी का प्रसार हवा के जरिए हो रहा है. लिस्ट में सबसे ऊपर स्कैगिट चोईर जैसी घटनाएं हैं. बड़े पैमाने पर संक्रमण फ़ैलाने वाली इस घटना में एक व्यक्ति से 53 लोग संक्रमित हुए थे. जबकि इस पर हुए रिसर्च में इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि संक्रमित होने वाले लोगों का आपस में कॉन्टैक्ट हुआ था या लोगों ने किसी तरह की सतह या वस्तुओं को छुआ था. हवा से कोरोना फ़ैलने के पुख्ता सबूत के रूप में यह भी पाया गया कि बाहर की तुलना में बंद जगहों यानी जहां हवा का वेंटिलेशन कम था वहां कोरोना संक्रमण का प्रसार ज्यादा है.
जिनमें लक्षण नहीं थे वो संक्रमण फैलाने में ज्यादा जिम्मेदार
रिसर्च में यह पुख्ता तथ्य भी मिला कि जिन लोगों में कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं दिख रहे थे ऐसे लोगों की वजह से फ़ैलाने वाले संक्रमण की दर 40 प्रतिशत है. अगर बूंद से ही संक्रमण फ़ैल रहा है तो इन लोगों में खांसने और छींकने का कोई सबूत नहीं था. फिर कैसे दर इतनी ज्यादा है. ये आंकड़ा भी हवा से वायरस फ़ैलने का बड़ा सबूत है. वैज्ञानिकों ने माना कि बिना लक्षण वाले रोगियों की वजह से ही वायरस बहुत ज्यादा फैला. रिसर्च में यह भी पाया गया कि होटल के दो कमरों में अगल-बगल रहने वाले लोगों के बीच भी संक्रमण फैला जबकि दोनों का कोई कॉन्टैक्ट ही नहीं हुआ था.
कोरोना से जंग में कारगर साबित होगी स्टडी
हालांकि अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन और दूसरी जिम्मेदार संस्थाओं ने स्टडी पर अपने विचार नहीं दिए हैं. लेकिन अगर स्टडी के वैज्ञानिक दावे सही हैं तो ये बहुत काम आने वाले हैं. संक्रमण से बचाव के तौर तरीके बदल जाएंगे. किसी संक्रमित व्यक्ति से सीधे संपर्क में आने से बचने में पुराने तरीकों के साथ ही स्टडी के नतीजें कम आएँगे. यानी हवा से संक्रमण के खतरे को कम करना होगा. पर्याप्त हवादार घर में ही रहना, हर हाल में भीड़ से बचना, घर के अंदर भी मास्क का उपयोग, हवा के संक्रमण से बचाने वाले मास्क और ऐसे ही स्वास्थ्य उपकरणों पर काम करना होगा.
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