'भारत मुसलमानों के लिए स्वर्ग है, यहां उनके सभी धार्मिक और मौलिक अधिकार सुरक्षित हैं.'
ये मुख़्तार अब्बास नकवी(Mukhtar Abbas Naqvi) का कथन है. इसे सुनकर इस्लाम (Islam) को मानने वाला एक समुदाय उन्हें दक्षिणपंथी बताता है तो वहीं कुछ लोग उन्हें भाजपा (BJP) का नुमाइंदा घोषित कर उनकी कही बातों को सिरे से ख़ारिज करने की भरसक कोशिश करते हैं. ऐसे लोगों को लगता है कि नकवी साहब अपने मतलब के लिए देश के मुसलमानों (Indian Muslims) की जो हक़ीक़त है, वो जिस हाल में जी रहें हैं. उनसे नज़रें चुरा रहें हैं.
ये सुनने में थोड़ा अटपटा है लेकिन देश के मुसलमानों का एक वर्ग वो भी है जिनको ये लगता है कि वो यहां सुरक्षित नहीं हैं. उनको तबलीगी जमात और उसके नेता मौलाना साद जैसे लोग ही सही लगते हैं. उनको ये लगता है कि इस देश में उनके भले के लिए कोई नहीं सोच रहा है. वो अपने देश में ही पराए हो गए हैं. ये वर्ग ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उनको जितनी धार्मिक और राजनीतिक आज़ादी भारत में है शायद उतनी आज़ादी किसी इस्लामिक नेशन में नहीं मिलेगी.
कह सकते हैं कि ऐसे लोग शायद ये तक नहीं मानते कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. यहां वो जो चाहें कर सकते हैं. जैसे चाहें रह सकते हैं. ऐसे लोग नकवी जैसे सेक्युलर नेता की बात नहीं बल्कि उन नेताओं और फ़िल्म स्टारों की बात को अधिक तवज़्ज़ों देते हैं, जो डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी अपना कर अपना उल्लू सीधा करने की ताक में रहते हैं. मगर ये छोटी सी बात उनको समझ नहीं आती है.
'भारत मुसलमानों के लिए स्वर्ग है, यहां उनके सभी धार्मिक और मौलिक अधिकार सुरक्षित हैं.'
ये मुख़्तार अब्बास नकवी(Mukhtar Abbas Naqvi) का कथन है. इसे सुनकर इस्लाम (Islam) को मानने वाला एक समुदाय उन्हें दक्षिणपंथी बताता है तो वहीं कुछ लोग उन्हें भाजपा (BJP) का नुमाइंदा घोषित कर उनकी कही बातों को सिरे से ख़ारिज करने की भरसक कोशिश करते हैं. ऐसे लोगों को लगता है कि नकवी साहब अपने मतलब के लिए देश के मुसलमानों (Indian Muslims) की जो हक़ीक़त है, वो जिस हाल में जी रहें हैं. उनसे नज़रें चुरा रहें हैं.
ये सुनने में थोड़ा अटपटा है लेकिन देश के मुसलमानों का एक वर्ग वो भी है जिनको ये लगता है कि वो यहां सुरक्षित नहीं हैं. उनको तबलीगी जमात और उसके नेता मौलाना साद जैसे लोग ही सही लगते हैं. उनको ये लगता है कि इस देश में उनके भले के लिए कोई नहीं सोच रहा है. वो अपने देश में ही पराए हो गए हैं. ये वर्ग ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उनको जितनी धार्मिक और राजनीतिक आज़ादी भारत में है शायद उतनी आज़ादी किसी इस्लामिक नेशन में नहीं मिलेगी.
कह सकते हैं कि ऐसे लोग शायद ये तक नहीं मानते कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. यहां वो जो चाहें कर सकते हैं. जैसे चाहें रह सकते हैं. ऐसे लोग नकवी जैसे सेक्युलर नेता की बात नहीं बल्कि उन नेताओं और फ़िल्म स्टारों की बात को अधिक तवज़्ज़ों देते हैं, जो डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी अपना कर अपना उल्लू सीधा करने की ताक में रहते हैं. मगर ये छोटी सी बात उनको समझ नहीं आती है.
70 बरस बाद अब उन्हें एहसास होने लगा है कि वो बतौर मुसलमान भारत में नहीं रह सकते,' जब नसीरुद्दीन शाह ऐसी बातें कहते हैं तब देश के मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग उनके समर्थन में आ खड़ा होता है. उनसे कोई सवाल तक नहीं करता कि आख़िर वो ऐसी बातें किस बेसिस पर कर रहें हैं? वो बजाय लॉजिक के सोचने के आंखें मूंदकर उनको फ़ॉलो करने लगते हैं लेकिन नकवी के साम्प्रदायिक सहिष्णुता की बात को झुठलाने में जुट जाते हैं.
जब आमिर ख़ान कहते हैं कि 'मैं कई घटनाओं से चिंतित हुआ हूं. मैं जब घर पर किरण के साथ बात करता हूं, वह कहती हैं कि ‘क्या हमें भारत से बाहर चले जाना चाहिए?’ किरण का यह बयान देना एक दुखद एवं बड़ा बयान है.
उन्हें अपने बच्चे की चिंता है. उन्हें भय है कि हमारे आसपास कैसा माहौल होगा. उन्हें प्रतिदिन समाचारपत्र खोलने में डर लगता है. यह बेचैनी बढ़ने की भावना का संकेत है. चिंता के अलावा निराशा बढ़ रही है. आप महसूस करते हैं कि यह क्यों हो रहा है? आप कमजोर महसूस करते हैं. मेरे भीतर यही भावना बढ़ रही है,'
तब ये उनकी बातों पर सहमति ज़ाहिर करते हैं लेकिन जब अदनान सामी कहते हैं कि,'एक मुसलमान होने के नाते, मैं भारत में सुरक्षित महसूस करता हूं. यह भारत में असुरक्षित महसूस करने वाले हर व्यक्ति के प्रश्न का जवाब है. तब वो इसे झूठ कह कर ख़ुद को बरगलाने की कोशिश करते हैं.
सोचने वाली बात है कि आख़िर एक ही देश में मुसलमानों का एक वर्ग इतना असुरक्षित और दूसरा इतना सुरक्षित कैसे महसूस कर सकता है. तो इसका सीधा जवाब यही है कि जो असुरक्षित महसूस कर रहें हैं वो धर्म और जाति के नाम पर कभी अपने नेता तो कभी अपने धर्मगुरुओं द्वारा बहकाए जाते हैं.
आस-पास की चीज़ों को रौशनी में देखने के बजाए सुनी-सुनाई बातों पर यक़ीन करना ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं. इसका उदाहरण दिल्ली में CAA और NRC का विरोध और उसके बाद के दंगे हैं. आख़िर कहां किस भारतीय मुसलमान की नागरिकता छीनी जा रही है. प्रधानमंत्री के सौ बार कहने के बाद भी इन लोगों ने उनकी बात नहीं सुन कर इन सो-कॉल्ड नेशनलिस्ट और मतलबी लोगों की बात मानी. नतीजा सामने है.
अब भी वक़्त है कि किसी भी कट्टरपंथी की बात सुन कर और आंखें मूंदकर उस बात को मानने से बेहतर है कि अपनी सूझ-बूझ का इस्तेमाल हो. मुख़्तार अब्बास नकवी जैसे लोगों को भी एक बार के लिए सुना जाए. देश तभी आगे बढ़ेगा जब हम साथ में चलेंगे न कि देश को बांट कर.
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