कुछ दोस्तियां (Frienship) हिंदू-मुस्लिम, धर्म-जाति से परे सिर्फ़ दोस्ती होती हैं. इंसानी रिश्तों का सबसे ख़ूबसूरत चेहरा होती हैं ऐसी दोस्ती. उदास मौसम में एक बुरी ख़बर लेकिन उस ख़बर में सकून सा है. मौत बुरी है मगर दोस्त की बाहों में थामें रहे और तब मौत आए तो जाना आसान होता होगा शायद. अमृत रंजन जिस पल बुख़ार से तप रहा था और मज़दूरों से भरा ट्रक उन्हें सड़क पर उतार कर जाने लगा तब बाक़ी के मज़दूरों ने उनके दोस्त याकूब मोहम्मद को भी अपने साथ चलने को कहा. ट्रक में मौजूद लोगों को लगा कि अमृत रंजन को कोरोना (Coronavirus) है तो उसे छोड़ दें और याकूब अपनी जान बचाने के लिए चल दे उनके साथ अपने गांव, अपने घर की तरफ. लेकिन याकूब ने ट्रक को जाने दिया. वो रुके रहे. अपने दोस्त के माथे को गोद में रखे, उसके चेहरे पर पानी की बूंदें छिड़कते रहें. उससे बातें करते रहें. उसे कुछ यक़ीन दिलाते रहे कि अभी एम्बुलेंस आएगी और वो हॉस्पिटल जाएंगे. वहां से ठीक हो कर अपने घर अपने गांव लौटेंगे. एम्बुलेंस आयी लेकिन आते-आते काफ़ी देर हो गयी.
अमृत रंजन अपने दोस्त और इस बेरहम दुनिया को छोड़ दूसरी दुनिया में जा चुका था. शायद एक ऐसी दुनिया जहां इंसानी जान की क़ीमत होगी. जहां मौत आने से पहले फ़रिश्ते आ जाएं. अमृत के आख़िरी पल सकून वाले रहें होंगे क्योंकि उनको गोद नसीब हुई थी अपने दोस्त की. उनके तपते सिर पर याकूब की अंगुलियां साया कर रही थी प्यार का. ऐसी सच्ची दोस्ती क़िस्मत वालों को ही नसीब होती है.
ये किसी फ़िल्म की कहानी नहीं है बल्कि मुंबई-आगरा हाईवे पर घटी घटना है. याकूब और अमृतरंजन दोनों...
कुछ दोस्तियां (Frienship) हिंदू-मुस्लिम, धर्म-जाति से परे सिर्फ़ दोस्ती होती हैं. इंसानी रिश्तों का सबसे ख़ूबसूरत चेहरा होती हैं ऐसी दोस्ती. उदास मौसम में एक बुरी ख़बर लेकिन उस ख़बर में सकून सा है. मौत बुरी है मगर दोस्त की बाहों में थामें रहे और तब मौत आए तो जाना आसान होता होगा शायद. अमृत रंजन जिस पल बुख़ार से तप रहा था और मज़दूरों से भरा ट्रक उन्हें सड़क पर उतार कर जाने लगा तब बाक़ी के मज़दूरों ने उनके दोस्त याकूब मोहम्मद को भी अपने साथ चलने को कहा. ट्रक में मौजूद लोगों को लगा कि अमृत रंजन को कोरोना (Coronavirus) है तो उसे छोड़ दें और याकूब अपनी जान बचाने के लिए चल दे उनके साथ अपने गांव, अपने घर की तरफ. लेकिन याकूब ने ट्रक को जाने दिया. वो रुके रहे. अपने दोस्त के माथे को गोद में रखे, उसके चेहरे पर पानी की बूंदें छिड़कते रहें. उससे बातें करते रहें. उसे कुछ यक़ीन दिलाते रहे कि अभी एम्बुलेंस आएगी और वो हॉस्पिटल जाएंगे. वहां से ठीक हो कर अपने घर अपने गांव लौटेंगे. एम्बुलेंस आयी लेकिन आते-आते काफ़ी देर हो गयी.
अमृत रंजन अपने दोस्त और इस बेरहम दुनिया को छोड़ दूसरी दुनिया में जा चुका था. शायद एक ऐसी दुनिया जहां इंसानी जान की क़ीमत होगी. जहां मौत आने से पहले फ़रिश्ते आ जाएं. अमृत के आख़िरी पल सकून वाले रहें होंगे क्योंकि उनको गोद नसीब हुई थी अपने दोस्त की. उनके तपते सिर पर याकूब की अंगुलियां साया कर रही थी प्यार का. ऐसी सच्ची दोस्ती क़िस्मत वालों को ही नसीब होती है.
ये किसी फ़िल्म की कहानी नहीं है बल्कि मुंबई-आगरा हाईवे पर घटी घटना है. याकूब और अमृतरंजन दोनों गुजरात की किसी फ़ैक्ट्री में काम करते थे. 22 मार्च का टिकिट भी कटवा कर रखा था घर लौटने के लिए लेकिन इसी बीच लॉक डाउन हो गया और वो फंस गए. बाद में जैसे-तैसे करके दोनों एक ट्रक से घर जाने के लिए निकले. रास्ते में अमृत की तबियत ख़राब हो गयी और ट्रक वाले ने उन्हें उतार दिया. सब उन्हें छोड़ कर चले गये लेकिन याकूब ठहरा रहा. आख़िरी पलों में अमृत के सिर पर साया रहा, दोस्ती का सरमाया रहा.
ऐसी कहानियां सुन कर दिल बैठने लगता है लेकिन फिर दोस्ती की ऐसी प्यारी मिसाल देख कर दुनिया पर यक़ीन करने का भी मन होता है. दुनिया में दोस्तियां बाक़ी है. इंसान ज़िंदा है.
याकूब मोहम्मद आप जैसे लोगों के बारे में सुन कर लोगों पर यक़ीन कर लेने का मन होता है. जो दोस्त हैं उन्हें शुकराना भेजने को दिल कहता है. आप ख़ुश रहें और आपके दोस्त को एक ख़ूबसूरत दुनिया मिले. जाने क्यों इस दारुण तस्वीर में मुझे इंसानी रिश्तों की सबसे ख़ूबसूरत छवि दिख रही. इंसान में इंसान बचे रहने की तस्वीर है ये.
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