भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर अब थमती हुई दिखाई दे रही है. एक ओर जहां नए संक्रमित मरीज़ों की संख्या में तेज़ी के साथ गिरावट देखी जा रही है. वहीं दूसरी ओर वैक्सीनेशन भी तेज़ रफ्तार के साथ किया जा रहा है. हालांकि वैक्सीनेशन की रफ्तार पर लगातार विपक्षी दल सरकार को घेरने में जुटे हुए हैं लेकिन सत्यता ये है कि भारत ने विश्व के अन्य देशों के मुकाबले सबसे अधिक संख्या में वैक्सीन लगाने का कार्य किया है. भारत की एक बड़ी जनसंख्या की वजह से देश में वैक्सीनेशन में लंबा वक्त ज़रूर लग सकता है. कोरोना वायरस के खतरे को कम करने के लिए सबसे कारगर उपाय अब तक यही है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को वैक्सीन लगा दिया जाए ताकि भविष्य में आने वाली लहर में वायरस अपना भयानक रूप न दिखा सके. वैज्ञानिकों का यही मानना है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना से मौत का खतरा लगभग कम या फिर खत्म हो जाता है इसीलिए जब वैक्सीनेशन शुरू किया गया तो सबसे पहले स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों को वैक्सीन की डोज़ दी गई ताकि स्वास्थ विभाग का पूरा अमला इस वायरस के खतरे से बच जाए और बेहतर तरीके से बिना डर और खौफ़ के संक्रमित मरीजों की सेवा कर सके. लेकिन क्या सही मायने में ऐसा हो पाया है ये एक बड़ा सवाल है जोकि चर्चा का विषय है, इसपर मंथन ज़रूर होना चाहिए.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए ने 22 मई को एक बयान जारी किया और कहा कि देशभर में कोरोना वायरस की दूसरी लहर से अबतक कुल 420 डाक्टरों की जान गई है जबकि पहली लहर में ये आकंड़ा 382 का था. कोरोना की पहली लहर के समय देश में स्वास्थ्य महकमें के पास न तो सुरक्षा के उपकरण थे और न ही वैक्सीन या फिर कोरोना वायरस के बारे में कुछ...
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर अब थमती हुई दिखाई दे रही है. एक ओर जहां नए संक्रमित मरीज़ों की संख्या में तेज़ी के साथ गिरावट देखी जा रही है. वहीं दूसरी ओर वैक्सीनेशन भी तेज़ रफ्तार के साथ किया जा रहा है. हालांकि वैक्सीनेशन की रफ्तार पर लगातार विपक्षी दल सरकार को घेरने में जुटे हुए हैं लेकिन सत्यता ये है कि भारत ने विश्व के अन्य देशों के मुकाबले सबसे अधिक संख्या में वैक्सीन लगाने का कार्य किया है. भारत की एक बड़ी जनसंख्या की वजह से देश में वैक्सीनेशन में लंबा वक्त ज़रूर लग सकता है. कोरोना वायरस के खतरे को कम करने के लिए सबसे कारगर उपाय अब तक यही है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को वैक्सीन लगा दिया जाए ताकि भविष्य में आने वाली लहर में वायरस अपना भयानक रूप न दिखा सके. वैज्ञानिकों का यही मानना है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना से मौत का खतरा लगभग कम या फिर खत्म हो जाता है इसीलिए जब वैक्सीनेशन शुरू किया गया तो सबसे पहले स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों को वैक्सीन की डोज़ दी गई ताकि स्वास्थ विभाग का पूरा अमला इस वायरस के खतरे से बच जाए और बेहतर तरीके से बिना डर और खौफ़ के संक्रमित मरीजों की सेवा कर सके. लेकिन क्या सही मायने में ऐसा हो पाया है ये एक बड़ा सवाल है जोकि चर्चा का विषय है, इसपर मंथन ज़रूर होना चाहिए.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए ने 22 मई को एक बयान जारी किया और कहा कि देशभर में कोरोना वायरस की दूसरी लहर से अबतक कुल 420 डाक्टरों की जान गई है जबकि पहली लहर में ये आकंड़ा 382 का था. कोरोना की पहली लहर के समय देश में स्वास्थ्य महकमें के पास न तो सुरक्षा के उपकरण थे और न ही वैक्सीन या फिर कोरोना वायरस के बारे में कुछ अता पता था. उस वक्त एक तरफ कोरोना से ये स्वास्थ्य विभाग युद्ध लड़ रहा था तो दूसरी ओर वैज्ञानिकों का पूरा अमला रिसर्च में जुटा हुआ था और जानने की कोशिश में जुटा हुआ था कि आखिर कोरोना वायरस कौन कौन सा रंगरूप अख्तियार करता है.
इसी रिसर्च के सहारे वह वैक्सीन बनाने में जुटे हुए थे जबकि स्वास्थ्य विभाग का अमला डर और भय के बावजूद संक्रमित मरीजों की सेवा में जुटा रहा. इस मुश्किल समय में भी देश भर में कोरोना वायरस से महज 382 डाक्टरों की जान गई थी जबकि दूसरी लहर के समय सभी डाक्टरों को वैक्सीन लगाई जा चुकी थी और साथ ही कोरोना वायरस से संबंधित काफी सारी जानकारियां भी उपलब्ध हो चुकी थी फिर भी पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर में अधिक डाक्टरों की जान चली गई.
ये चिंता की बात है. देशभर में अबतक कुल 802 डाक्टरों की जान कोरोना वायरस के चलते जा चुकी है. ये आंकड़े चौंकाते भी हैं और चिंता भी बढाने का कार्य करते हैं. देश की राजधानी दिल्ली में पहली लहर के समय मात्र 23 डाक्टरों की जान गई थी जबकि दूसरी लहर में अबतक 100 डाक्टरों की जान जा चुकी है. कोरोना वायरस से डाक्टरों की जान जाने के मामले केवल दिल्ली से सामने नहीं आए हैं बल्कि हर राज्य में ऐसी तस्वीर देखने को मिली है, इसमें बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, असम, गोवा और पंजाब जैसे सारे ही प्रदेश शामिल हैं.
भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था तो वैसे ही लचर और चरमराई हुई है, ये आंकड़े डरावने हैं खासतौर पर तब जब यह मालूम हो कि स्वास्थ्य विभाग में तो वैसे ही डाक्टरों की भारी मात्रा में कमी है. ऐसे समय में डाक्टरों की मौत होना हमारे लिए गहरा नुकसान साबित होता है, और इन डाक्टरों के परिवार वालों पर तो ये एक बड़ी त्रासदी है. सवाल यह है कि आखिर जब स्वास्थ्य महकमे को कोविड का टीका या फिर कहिए कि कोरोना की वैक्सीन लग चुकी थी तो इतनी भारी तादाद में डाक्टरों की मौत क्यों हो रही है.
ये तमाम डाक्टर देश के नागरिकों की सेवा करते हुए ही मौत की आगोश में पहुंचे हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि इन डाक्टरों को भी शहीद का दर्जा दिया जाए और साथ ही उन तमाम स्वास्थ्यकर्मियों को भी शहीद का दर्जा दिया जाए जोकि अपनी जान पर खेलकर संक्रमित मरीजों की सेवा करते रहे और आखिर में खुद ही इस आपदा के शिकार हो गए. सेना के जवान बार्डर पर रहकर बाहरी दुश्मन से हमारी रक्षा करने का कार्य करते हैं. जबकि इन लोगों ने बार्डर के अंदर रहकर देश के नागरिकों की रक्षा की है और एक अदृश्य दुश्मन से युद्ध लड़ा है.
आईएमए की इस आवाज को मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का साथ मिल चुका है अंतिम फैसला केंद्र सरकार को करना है जिसपर मंथन का कार्य ज़रूर चल रहा होगा. केंद्र सरकार के पास आईएमए की मांग को खारिज करने के हज़ार दलील हज़ार विकल्प हो सकते हैं मगर देश के उन डाक्टरों की शहादत को खारिज करना इतना आसान भी नहीं होगा. फिलहाल इस मुद्दे पर बहसा-बहसी का वक्त नहीं है इसीलिए केंद्र सरकार इस पर कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं लेना चाहती है.
मगर डाक्टरों की मौतों को लेकर केंद्र सरकार को चिंतित ज़रूर हो जाना चाहिए कि आखिर वैक्सीनेशन के बाद भी इतनी संख्या में डाक्टरों की जान क्यों जा रही है.
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