आप अपने आसपास के आम इंसानों और चर्चित ख़ास लोगों के नाम और उनके व्यक्तित्व पर ग़ौर कीजिए. आपको कई बार महसूस होगा कि कई लोगों का व्यक्तित्व उनके नाम के अनुरूप होता है. इमदाद का अर्थ है मदद. इमदाद नाम का एक युवक करीब सवा साल पहले बेहद मामूली था, लेकिन आज ग़ैर मामूली है. ये युवक यूपी की राजधानी लखनऊ के मकबरा गोलागंज मोहल्ले मे रहता है. प्रिंटिंग इत्यादि के छोटे-मोटे काम से बमुश्किल पंद्रह-बीस हजार कमा कर घर का मामलू खर्च चलाता है. ये मामूली इंसान अब ग़ैर मामूली हो चुका है. इमदाद नाम का ये शख्स सवा साल से लोगों की मदद कर रहा है. कोरोना की फर्स्ट वेव से लेकर सेकेंड वेव में ये इंसान फरिशता बन कर कोरोना की लाशें उठाता रहा.
ख़ास कर वो दुर्भाग्यशाली मृतक जिनको अपना अंतिम सफर तय करने के लिए चार कंधे नसीब नहीं हो रहे थे उनके जनाजों को इमदाद ने पूरे रस्म-ओ-रिवाज के साथ उनकी अंतिम मंज़िल तक पंहुचाया. अब जब मौतों का सिलसिला थमा तो इमदाद ने इमदाद (मदद)का रुख बदला और अब ये लखनऊ के गरीबों और अस्पताल में भर्ती लावारिस मरीजों को खाने के पैकेट बांटते हुए नज़र आ रहे हैं.
बक़ौल मशहूर इतिहासकार मरहूम डॉ योगेश प्रवीन लखनऊ फरिश्तों का शहर है. और इस लखनऊ शहर के इस फरिश्ते ने सभी धर्मों के मृतकों की अंतेष्टि/दफ्न-ओ-कफन करके अपनी ज़िन्दगी को दांव पर लगा दिया था. इस नेक और जोखिम भरी काम की शुरुआत इन्होंने कोरोना महामारी की पहली वेव से कर दी थी.
इस मज़मून के साथ क़रीब एक बरस पुरानी लखनऊ की ये तस्वीर पेश है. कोरोना की मुसीबतों के अंधेरों में इंसानियत की ऐसी शमा ने पूरे भारत में इस तरह की मदद की रोशनी फैलाई. और फिर नेक काम से प्रभावित पूरे भारत के सैकड़ों इंसानियत पसंद...
आप अपने आसपास के आम इंसानों और चर्चित ख़ास लोगों के नाम और उनके व्यक्तित्व पर ग़ौर कीजिए. आपको कई बार महसूस होगा कि कई लोगों का व्यक्तित्व उनके नाम के अनुरूप होता है. इमदाद का अर्थ है मदद. इमदाद नाम का एक युवक करीब सवा साल पहले बेहद मामूली था, लेकिन आज ग़ैर मामूली है. ये युवक यूपी की राजधानी लखनऊ के मकबरा गोलागंज मोहल्ले मे रहता है. प्रिंटिंग इत्यादि के छोटे-मोटे काम से बमुश्किल पंद्रह-बीस हजार कमा कर घर का मामलू खर्च चलाता है. ये मामूली इंसान अब ग़ैर मामूली हो चुका है. इमदाद नाम का ये शख्स सवा साल से लोगों की मदद कर रहा है. कोरोना की फर्स्ट वेव से लेकर सेकेंड वेव में ये इंसान फरिशता बन कर कोरोना की लाशें उठाता रहा.
ख़ास कर वो दुर्भाग्यशाली मृतक जिनको अपना अंतिम सफर तय करने के लिए चार कंधे नसीब नहीं हो रहे थे उनके जनाजों को इमदाद ने पूरे रस्म-ओ-रिवाज के साथ उनकी अंतिम मंज़िल तक पंहुचाया. अब जब मौतों का सिलसिला थमा तो इमदाद ने इमदाद (मदद)का रुख बदला और अब ये लखनऊ के गरीबों और अस्पताल में भर्ती लावारिस मरीजों को खाने के पैकेट बांटते हुए नज़र आ रहे हैं.
बक़ौल मशहूर इतिहासकार मरहूम डॉ योगेश प्रवीन लखनऊ फरिश्तों का शहर है. और इस लखनऊ शहर के इस फरिश्ते ने सभी धर्मों के मृतकों की अंतेष्टि/दफ्न-ओ-कफन करके अपनी ज़िन्दगी को दांव पर लगा दिया था. इस नेक और जोखिम भरी काम की शुरुआत इन्होंने कोरोना महामारी की पहली वेव से कर दी थी.
इस मज़मून के साथ क़रीब एक बरस पुरानी लखनऊ की ये तस्वीर पेश है. कोरोना की मुसीबतों के अंधेरों में इंसानियत की ऐसी शमा ने पूरे भारत में इस तरह की मदद की रोशनी फैलाई. और फिर नेक काम से प्रभावित पूरे भारत के सैकड़ों इंसानियत पसंद लोगों ने कोरोना से मरे लोगों के दफ्नों कफन/अंतेष्टि की दुश्वारियों को ख़त्म किया.
कोरोना काल में मारे गए लोगों की लाशे उठाकर इंसानियत पसंद काम की शुरुआत करने वाले इमददाद की सराहना न सिर्फ भारत के तमाम मीडिया प्लेटफार्म पर हुई बल्कि अमेरिका और दुनिया के कई देशों में इस युवक की मानव सेवा की चर्चा हुई. और इस तरह गांधी, बुद्ध, साईं और मदर टेरेसा के भारत की इंसानियत की भावना को विश्वभर ने सराहा.
इंसानियत की इमदाद करने वाले इमदाद का जिक्र यहां इसलिए ज्यादा किया गया क्योंकि ये एक आम शख्स है और इसके पास संसाधन, दौलत नहीं बल्कि सिर्फ इस बुरे वक्त में कुछ अच्छा करने का जज्बा और हिम्मत थी. हांलाकि कोरोना की मुसीबतों में सैकड़ों फरिश्ते लोगों की मदद करते रहे, और कर रहे हैं.
एक्टर सोनू सूद ने गरीबों-जरुरतमंदों की मदद के लिए जो हिम्मत और हौसला दिखाया वो किसी से छिपा नहीं है. बिहार के पूर्व सांसद पप्पू यादव से लेकर मौजूदा वक्त में कवि कुमार विशवास और इस तरह हजारों आम और ख़ास लोगों ने मानवता की लाज को बचा लिया. जिससे जो हो सका वो उसने किया. मुसीबत में काम आने वाले धरती के इन भगवानों को कोई नहीं भूल सकता.
तो फिर हम क्यों नहीं इन लोगों को अपना/जनता का/आम इंसानों का हमदर्द और बुरे वक्त का साथी मानेंगे. उन बड़े बड़े नेताओं, सांसदों, विधायकों, मंत्रियों पर से हमारा भरोसा क्यों नहीं उठेगा जो इस मुश्किल घड़ी में मदद के बजाय अपने घरों में घुसे रहे.
यही मौका है कि जनता भ्रष्टाचारियों, धनपशुओं, बुरे वक्त में काम न आने वाल़ों, अपराधी और नफरत के सौदागरों को देश की राजनीति से खदेड़े. यही सबसे अच्छा मौका है जब देश की जनता राजनीति दलों पर दबाव डाले कि मुश्किल घड़ी मे काम आने वालों को ही चुनाव लड़ने का टिकट दिए जाए. ताकि सड़क पर मदद करने वाले ही संसद/विधान सभाओं में जाएं.
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