जिनको बेड चाहिए या जो भले लोग दूसरों के लिए बेड ढूंढ रहे हैं, वो एक प्रोसेस समझिए काम करने का. आपको और हमें, दोनों को आसानी होगी. दिल्ली से बाहर हैं तो अपने आसपास के सारे हॉस्पिटल्स गूगल पर ढूंढिए और उनकी लिस्ट बनाइए. Nearest to longest डिस्टेंस के बढ़ते क्रम में, मोबाइल में या कागज़ पर लिखिए. अब इनके नंबर मिलाइए, ज़ाहिर हैं ज़्यादातर नम्बर या तो बिज़ी होंगे या कोई उठायेगा ही नहीं. कोई बात नहीं, घबराना नहीं है. अब अगर आप पेशेंट के अटेंडेंट हैं तो उनकी केस file लीजिए, संग आधार कार्ड पकड़िए और हॉस्पिटल-हॉस्पिटल ख़ाक छानने निकल पड़िए. शहर ज़्यादा बड़ा नहीं है तो यकीनन आपको हॉस्पिटल में बेड मिल जायेगा. अब इसके बाद, वहां आधार कार्ड और केस हिस्ट्री दिखाकर बेड बुक कीजिए और तब पेशेंट को वहां लाने की व्यवस्था कीजिए.
यूं आप फोन करके बेड बुक करवा भी नहीं सकते थे. वो पिज़्ज़ा वाले की दुकान नहीं है, आपके फोन करते वक़्त रिसेप्शनिस्ट मान लीजिए कह भी देगी कि बेड है, आप दो घण्टे में पहुंचेंगे, उस बीच कोई साक्षात पेशेंट को लेकर आ गया तो क्या हॉस्पिटल मना कर देगा? कहेगा सॉरी, अरोड़ा जी ने फोन पर बुकिंग की हुई है!
जो थोड़ी भाग दौड़ कर रहे हैं उन्हें बेड मिल रहा है. यकीनन मिल रहा है.
अब वो लोग जो दिल्ली में हैं. भाईसाहब सीएम केजरीवाल की मेहरबानी से Delhi Corona करके app है, उसमें हर दो घण्टे पर कितने IC bed हैं और कितने नॉर्मल, किस हॉस्पिटल में हैं, क्या नंबर एड्रेस और गूगल लोकेशन है, सब आ रहा है. मैं मानता हूं वो कोई अस्क्यूरेट डेटा नहीं, पर एक लीड तो है. फेसबुक वॉल पर लगाकर बैठे इंतज़ार करने से तो बेहतर है.
यहां भी वही प्रोसेस है, पहले अटेंडेंट जाए, फिज़िकली...
जिनको बेड चाहिए या जो भले लोग दूसरों के लिए बेड ढूंढ रहे हैं, वो एक प्रोसेस समझिए काम करने का. आपको और हमें, दोनों को आसानी होगी. दिल्ली से बाहर हैं तो अपने आसपास के सारे हॉस्पिटल्स गूगल पर ढूंढिए और उनकी लिस्ट बनाइए. Nearest to longest डिस्टेंस के बढ़ते क्रम में, मोबाइल में या कागज़ पर लिखिए. अब इनके नंबर मिलाइए, ज़ाहिर हैं ज़्यादातर नम्बर या तो बिज़ी होंगे या कोई उठायेगा ही नहीं. कोई बात नहीं, घबराना नहीं है. अब अगर आप पेशेंट के अटेंडेंट हैं तो उनकी केस file लीजिए, संग आधार कार्ड पकड़िए और हॉस्पिटल-हॉस्पिटल ख़ाक छानने निकल पड़िए. शहर ज़्यादा बड़ा नहीं है तो यकीनन आपको हॉस्पिटल में बेड मिल जायेगा. अब इसके बाद, वहां आधार कार्ड और केस हिस्ट्री दिखाकर बेड बुक कीजिए और तब पेशेंट को वहां लाने की व्यवस्था कीजिए.
यूं आप फोन करके बेड बुक करवा भी नहीं सकते थे. वो पिज़्ज़ा वाले की दुकान नहीं है, आपके फोन करते वक़्त रिसेप्शनिस्ट मान लीजिए कह भी देगी कि बेड है, आप दो घण्टे में पहुंचेंगे, उस बीच कोई साक्षात पेशेंट को लेकर आ गया तो क्या हॉस्पिटल मना कर देगा? कहेगा सॉरी, अरोड़ा जी ने फोन पर बुकिंग की हुई है!
जो थोड़ी भाग दौड़ कर रहे हैं उन्हें बेड मिल रहा है. यकीनन मिल रहा है.
अब वो लोग जो दिल्ली में हैं. भाईसाहब सीएम केजरीवाल की मेहरबानी से Delhi Corona करके app है, उसमें हर दो घण्टे पर कितने IC bed हैं और कितने नॉर्मल, किस हॉस्पिटल में हैं, क्या नंबर एड्रेस और गूगल लोकेशन है, सब आ रहा है. मैं मानता हूं वो कोई अस्क्यूरेट डेटा नहीं, पर एक लीड तो है. फेसबुक वॉल पर लगाकर बैठे इंतज़ार करने से तो बेहतर है.
यहां भी वही प्रोसेस है, पहले अटेंडेंट जाए, फिज़िकली कन्फर्म करे, आईडी देकर बुक करे और फिर पेशेंट आए. काम करने का तरीका ठीक करेंगे तो काम जल्दी भी होगा और बिना किसी को तंग किए होगा. फेसबुक और ट्विटर को प्लाज़्मा मांगने के लिए रखिए, क्योंकि यहां कांटेक्ट की ज़रूरत पहले है, फिज़िकली हाज़री उसी पर निर्भर है. इसी तरह ऑक्सीजन के लिए भी सर्च कीजिए. कोई पोस्ट ऑनलाइन करने से पहले ख़ुद हाथ पैर मारिए, गूगल की मदद लीजिए, कोरोना से पहले भी तो सब गूगल से ही पूछते थे न, अब क्या हुआ फिर?
यूं हर केस को पोस्ट कर आप केओस बढ़ा रहे हैं. इसकी पहले ही कोई कमी नहीं है. मेरे पास तकरीबन 5 हज़ार मित्र हैं यहाँ, फिर भी मुझे कितनी पोस्ट लगाते देखा आपने? क्योंकि सही मायने में ज़रूरत नहीं पड़ती. जो चीज़ मिल सकती है वो आँख कान खुले रखने पर यूँ भी मिल ही जाती है. हाँ प्लाज़्मा की दिक्कत है, वो हम आप ख़रीद नहीं सकते, सरकार या अम्बानी भी बना नहीं सकते, उसके लिए दरख्वास्त कर सकते हैं, वो मैं करता हूँ. पर बेड ढूंढने के लिए ज़रा सी मेहनत आप सब भी कीजिए. ट्रिक से कीजिए. काम जल्दी होगा.
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