भारत में कोविड 19 की दूसरी लहर आने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की कलई खुल गई है. कहीं मरीज सिर्फ इसलिए मर जा रहे हैं क्योंकि ऑक्सीजन का आभाव है. तो कहीं खांसी, बुखार और सांस लेने की तकलीफों से दो चार होते मरीज को अस्पताल में बेड नहीं उपलब्ध हो पा रही है. प्लाज्मा से लेकर जरूरी दवाइयों की कमी तक, कोविड के चलते मृत्यु को गले लगाने के कारण तमाम हैं. अस्पतालों का जैसा हाल है, अव्यवस्था का लेवल कुछ यूं है कि मरीज जो इलाज के लिए आया है कुछ ही देर में लाश बनकर बाहर निकल रहा है. आगे कुछ और कहने या बताने से पहले हमें इस बात को भी ध्यान में रखना है कि ये तमाम चीजें उस वक़्त में हो रही हैं जब कोरोना की दूसरी वेव का पीक आना बाकी है. खुद सोचिये जब आज स्थिति इतनी विकराल और इस हद तक जटिल है तो तब क्या होगा? जब हमारी नजरों के सामने मौत का तांडव होगा. ये बातें कोरी लफ्फाजी या हवा हवाई नहीं हैं है. हाल फिलहाल में तमाम हेल्थ एक्सपर्ट्स सामने आए हैं जिन्होंने कोरोना के इस बिगड़ते स्वरूप पर अपनी चिंता जाहिर की है और 'होम आइसोलेशन' की वकालत की है.
पूर्व में हुए कई ऐसे शोध भी हमारे सामने आ चुके हैं, जिनमें इस बात का दावा किया गया है कि, यदि मरीज को 'होम आइसोलेशन' या ये कहें कि घर पर ही रहकर सही उपचार मिल जाए तो उसके बचने की संभावना उन मरीजों के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है. जो अस्पतालों और कोविड सेंटर्स में रहकर अपना इलाज करवा रहे हैं. और जो हर पल बस इसी बात को सोचा करते हैं कि वो कभी वापस घर जा भी पाएंगे या नहीं.
जिक्र घर पर रहकर इलाज का हुआ है. तो ये उतना भी आसान नहीं है जितना ये सुनने या बताने में लगता है. 'होम आइसोलेशन' के दौरान न केवल मरीज को बल्कि उस परिवार को भी...
भारत में कोविड 19 की दूसरी लहर आने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की कलई खुल गई है. कहीं मरीज सिर्फ इसलिए मर जा रहे हैं क्योंकि ऑक्सीजन का आभाव है. तो कहीं खांसी, बुखार और सांस लेने की तकलीफों से दो चार होते मरीज को अस्पताल में बेड नहीं उपलब्ध हो पा रही है. प्लाज्मा से लेकर जरूरी दवाइयों की कमी तक, कोविड के चलते मृत्यु को गले लगाने के कारण तमाम हैं. अस्पतालों का जैसा हाल है, अव्यवस्था का लेवल कुछ यूं है कि मरीज जो इलाज के लिए आया है कुछ ही देर में लाश बनकर बाहर निकल रहा है. आगे कुछ और कहने या बताने से पहले हमें इस बात को भी ध्यान में रखना है कि ये तमाम चीजें उस वक़्त में हो रही हैं जब कोरोना की दूसरी वेव का पीक आना बाकी है. खुद सोचिये जब आज स्थिति इतनी विकराल और इस हद तक जटिल है तो तब क्या होगा? जब हमारी नजरों के सामने मौत का तांडव होगा. ये बातें कोरी लफ्फाजी या हवा हवाई नहीं हैं है. हाल फिलहाल में तमाम हेल्थ एक्सपर्ट्स सामने आए हैं जिन्होंने कोरोना के इस बिगड़ते स्वरूप पर अपनी चिंता जाहिर की है और 'होम आइसोलेशन' की वकालत की है.
पूर्व में हुए कई ऐसे शोध भी हमारे सामने आ चुके हैं, जिनमें इस बात का दावा किया गया है कि, यदि मरीज को 'होम आइसोलेशन' या ये कहें कि घर पर ही रहकर सही उपचार मिल जाए तो उसके बचने की संभावना उन मरीजों के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है. जो अस्पतालों और कोविड सेंटर्स में रहकर अपना इलाज करवा रहे हैं. और जो हर पल बस इसी बात को सोचा करते हैं कि वो कभी वापस घर जा भी पाएंगे या नहीं.
जिक्र घर पर रहकर इलाज का हुआ है. तो ये उतना भी आसान नहीं है जितना ये सुनने या बताने में लगता है. 'होम आइसोलेशन' के दौरान न केवल मरीज को बल्कि उस परिवार को भी खासी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है, जिसके घर के सदस्य का इलाज होम आइसोलेशन के नाम पर घर पर हो रहा है.
तो इसी क्रम में आइये जानें कि जब कोरोना की दूसरी लहर का पीक आना अभी बाकी हो और मरीजों को अस्पताल में बेड नहीं मिल पा रही हो होम आइसोलेशन के दौरान किन 5 बातों का ख्याल रखने से मरीज की जान बच सकती है.
घर में ऑक्सीजन की प्रचुरता
कोविड में खासी बुखार और नाक बहना आम लक्षण है जैसे जैसे दिन आगे बढ़ते है शरीर में मौजूद वायरस पूर्व की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत हो जाता है और एक स्थिति वो आती है जब व्यक्ति का SPO2 बुरी तरह प्रभावित होता है और व्यक्ति को सांस लेने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसी स्थिति से निपटने का एकमात्र माध्यम ऑक्सीजन है.
भले ही आज देश ऑक्सीजन की भारी किल्लत का सामना कर रहा हो मगर हमें इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि घर में इलाज करा रहे व्यक्ति को प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन मिले इसलिए वो तमाम लोग जो घर में अपना उपचार कर रहे हैं वो किसी भी सूरत में ऑक्सीजन की कमी न होने दें.
जिक्र ऑक्सीजन का हुआ है तो जैसे हाल हैं व्यक्ति को घर पर प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन तभी मिल सकती है जब उसके पास एक से अधिक ऑक्सीजन सिलिंडर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मशीन हो. व्यक्ति जैसे ही बीमार पड़े उसे अपने लिए ऑक्सीजन का इंतेज़ाम कर लेना चाहिए.
डॉक्टर्स की उपलब्धता
व्यक्ति 'होम आइसोलेशन' के नाम पर घर पर रहकर ही उपचार करा रहा है. साफ है कि अस्पताल जाने पर उसे बेड उपलब्ध नहीं हो पाई है. स्थिति जब ऐसी हो और सामने चुनौतियों का पहाड़ हो उसे सबसे पहले अपने लिए डॉक्टर का इंतेज़ाम करना चाहिए.
पूर्व में कई मामले ऐसे भी हमारे सामने आए हैं जिसमें होम आइसोलेशन में घर में अपना इलाज करा रहा व्यक्ति केवल इसलिए मृत्यु को प्राप्त हुआ क्यों कि समय रहते उसे डॉक्टर नहीं मिल पाए.
बात सीधी और साफ है. एक ऐसे वक्त में जब डिजिटल इंडिया की बात की जा रही हो हर दूसरी चीज ऑनलाइन उपलब्ध हो. बीमार व्यक्ति को अपने लिए डॉक्टर का प्रबंध कर लेना चाहिए. ध्यान रहे चाहे मरीज हों या तीमारदार दोनों ही केवल एक डॉक्टर के भरोसे न बैठे.
नेबुलाइजर, ऑक्सिमीटर, मास्क, ग्लव्स, ऑक्सीजन मास्क, सेनेटाइजर, दवाइयां बहुत जरूरी.
कोविड का मोटो बड़ा सिंपल है. कोविड को लेकर कहा यही गया है कि सावधानी ही बचाव है इसलिए जब बात कोरोना से बीमार होने और होम आइसोलेशन की आती है तो नेबुलाइजर, ऑक्सिमीटर, मास्क, ग्लव्स, ऑक्सीजन मास्क, सेनेटाइजर को नकारा नहीं जा सकता. इनकी बदौलत व्यक्ति को अपना सेचुरेशन चेक करने में आसानी होगी.
ऊपर हमने जिक्र दवाइयों का भी किया है तो होम आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति के पास जो किट हो उसमें पैरासिटामॉल, एजिथ्रोमाइसिन, एकोस्पिरिन,ट्रीप्टोमर, पेंटॉक्स, मेडॉक्स जैसी दवाइयां जरूर हों.
घर में रहकर इलाज करा रहे व्यक्ति को इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि उसे डॉक्टर खुद नहीं बनना है. दवाई उसे डॉक्टर से पूछ कर लेनी है और कोई भी दवा उसे बेवजह नहीं खानी है.
अपनी डाइट के साथ समझौता न करें तो बेहतर है.
चाहे शरीर पर कोविड का हमला हो या कोई और बीमारी. जैसे ही स्वस्थ शरीर बीमारी की भेंट चढ़ता है भूख मर जाती है. अच्छा चूंकि स्वाद जाना कोविड का प्राथमिक लक्षण है आदमी चाहे वो अस्पताल में हो या होम आइसोलेशन में वो यूं ही खाना पीना त्याग देता है.इन सबका नतीजा ये निकलता है कि वो शरीर जो कोविड की चपेट में आने से पहले ही टूट चुका होता है उसके अंदर संभालने के लिए कुछ बचता नहीं है और वो हो जाता है जिसकी कल्पना मात्र ही शरीर में सिरहन पैदा कर देती है.
ऐसे में वो तमाम लोग जो घरों पर रह कर अपना इलाज कर रहे हैं अपने खान पान का विशेष ध्यान रखें. व्यक्ति भले ही दिन भर में कई बार छोटी मील ले लेकिन उसे खाना बिल्कुल भी नहीं छोड़ना है.
पोस्ट कोविड कमजोरी से लोग उभर नहीं पाते इसलिए हमें इस बात का पूरा ख्याल रखना है कि हम जो कुछ भी खा रहे हों उससे हमें पोषण मिल रहा हो जिससे हमारे शरीर की इम्युनिटी बढ़े बाक़ी यूं भी बड़े बुजुर्ग कह गए हैं खाली पेट में दवा नहीं खाई जाती.
नकारात्मक का दामन छोड़ सकारात्मकता को अपनाना
कोविड की इस दूसरी लहर में जिन तमाम लोगों की मौत हुई है अगर उसकी कम्पेरेटिव स्टडी की जाए तो मिलता है कि लोगों के मरने की एक बड़ी वजह घबराहट है. बात कारणों की हो तो सबसे प्रभावी कारण है उस व्यक्ति को समाज द्वारा अछूत मान लेना जो कोविड कि चपेट में आया है.
हमें इस बात को समझना होगा कि यदि देश की बड़ी आबादी इस बीमारी की चपेट में आकर दम तोड़ रही है तो वहीं ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या है जो इस बीमारी या ये कहें कि कोरोना वायरस को हराकर अपने अपने घरों को लौटे हैं. ये संभव हो पाया है सकारात्मकता से.
इसलिए जो लोग भी कोविड की चपेट में आए हैं उन्हें इस बात को समझना होगा कि हम इस बीमारी से निजात तभी पा सकते हैं जब हम अपने मन मस्तिक्ष में सकारात्मक विचारों को जगह दें. चूंकि यहां जिक्र होम आइसोलेशन का हुआ है तो वो तमाम लोग जो घरों में रहकर अपना उपचार कर रहे हैं वो मोबाइल, न्यूज़ समेत उन तमाम चीजों से दूरी बनाकर चलें जिनसे मनुष्य में नकारात्मकता का संचार होता है. यूं भी बहुत पहले ही संत रविदास ने कह दिया था 'मन चंगा तो कठौती में गंगा.'
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