''यही हालात इबादत से रहे, लोग हमसे खफा खफा से रहे,
बेवफा तुम कभी न थे लेकिन, ये भी सच है कि बेवफा से रहे...''
''काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं, और हम कुछ नहीं करते हैं ग़ज़ब करते हैं
एक एक पल को किताबों की तरह पढ़ने लगे, उम्र भर जो न किया हमने वो अब करते हैं''
''अब न मैं हूं, न बाकी है जमाने मेरे, फिरभी मशहूर हैं शहरों में फसाने मेरे
जिंदगी है तो नए जख्म भी लग जाएंगे, अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे''
''हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है,
हम तो मुसाफिर ऐसे जो मंजिल से आए हैं...''
सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर,
चीख भी लेता हूं और आवाज भी नहीं होती...
''आज मैंने फिर जज्बात भेजे,
आज तुमने फिर अल्फाज ही समझे''
अच्छे लगे न ? ये बस चुनिंदा शेर हैं, साहित्य के सागर से चुने चंद मोती... सच कहूं तो ये बस ट्रेलर है...
हिंदी साहित्य को परिभाषित करना काफी मुशकिल है. कविता, कहानी, नाटक, निबंध, जीवनी, रेखाचित्र, यात्रा-वृतांत, समालोचना... ऐसे अनेकों सांचे हैं जिनमें साहित्य ढला हुआ है, लेकिन सरल शब्दों में कहा जाए तो साहित्य समाज का दर्पण है.
मुंशी प्रेमचंद का कहना था कि जिस साहित्य में हमारी रुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हम में गति और शांति पैदा न हो, हमारा सौन्दर्य प्रेम जागृत न हो, जो हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय पाने की सच्ची दृढ़ता उत्पन्न न करे, वो हमारे लिए बेकार है. वो साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है.
''यही हालात इबादत से रहे, लोग हमसे खफा खफा से रहे, बेवफा तुम कभी न थे लेकिन, ये भी सच है कि बेवफा से रहे...''
''काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं, और हम कुछ नहीं करते हैं ग़ज़ब करते हैं एक एक पल को किताबों की तरह पढ़ने लगे, उम्र भर जो न किया हमने वो अब करते हैं''
''अब न मैं हूं, न बाकी है जमाने मेरे, फिरभी मशहूर हैं शहरों में फसाने मेरे जिंदगी है तो नए जख्म भी लग जाएंगे, अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे'' ''हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है, हम तो मुसाफिर ऐसे जो मंजिल से आए हैं...'' सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर, चीख भी लेता हूं और आवाज भी नहीं होती... ''आज मैंने फिर जज्बात भेजे, आज तुमने फिर अल्फाज ही समझे'' अच्छे लगे न ? ये बस चुनिंदा शेर हैं, साहित्य के सागर से चुने चंद मोती... सच कहूं तो ये बस ट्रेलर है... हिंदी साहित्य को परिभाषित करना काफी मुशकिल है. कविता, कहानी, नाटक, निबंध, जीवनी, रेखाचित्र, यात्रा-वृतांत, समालोचना... ऐसे अनेकों सांचे हैं जिनमें साहित्य ढला हुआ है, लेकिन सरल शब्दों में कहा जाए तो साहित्य समाज का दर्पण है. मुंशी प्रेमचंद का कहना था कि जिस साहित्य में हमारी रुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हम में गति और शांति पैदा न हो, हमारा सौन्दर्य प्रेम जागृत न हो, जो हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय पाने की सच्ची दृढ़ता उत्पन्न न करे, वो हमारे लिए बेकार है. वो साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है.
बदलते दौर के साथ साहित्य भी अपना रूप रंग बदलता रहता है. दौर कोई भी हो, हर दौर के रचनाकारों ने साहित्य धरोहर को सहेजा और उसे इतना निखारा कि लोग इससे जुड़े रहे और साहित्य प्रेमी कहलाए... तो जरा गौर करें, कि साहित्य सृजन करते साहित्यकार अगर एक ही मंच पर उपलब्ध हों तो भला इससे अच्छा अवसर क्या होगा, खुद को मानसिक रूप से तृप्त करने का. इंतजार अब खत्म हो चुका है क्योंकि आगाज होने वाला है 'साहित्य आजतक' का.
साहित्य आजतक दो दिन साक्षी रहेगा उन तमाम रचनाकारों का जिनके शब्द जब भी सुने तो जहन में ही बसकर रह गए. शनिवार (12 नवंबर) और रविवार(13 नवंबर) इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स में. देश के जानेमाने कवि, लेखक, संगीतज्ञ, अभिनेता और कलाकार सभी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे. अब तक जिन्हें सिर्फ पढ़ा, उन्हें सुनना, उन्हें जानना, उनसे रूबरू होने का मौका है. जावेद अख्तर, अनुपम खेर, कुमार विश्वास, प्रसून जोशी, पीयूष पांडे, अनुराग कश्यप, अशुतोष राणा, चेतन भगत, कपिल सिब्बल, राहत इंदौरी, अशोक चक्रधर.. ये तो बस कुछ नाम हैं. इनक अलावा बहुत से जानेमाने साहित्यकार वहां होंगे, बहत से अनुभवी होंगे तो कुछ शौकीन भी. क्यों डरें जिंदगी में क्या होगा, कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा.. तो तजुर्बा ही सही, जिएं इन खास पलों को कुछ सितारों के साथ, जानें साहित्य को, समझें साहित्य को सिर्फ साहित्य आजतक में 12 और 13 नवंबर को. यहां सभी का स्वागत है, लेकिन कार्यक्रम में आने के लिए खुद को यहां रजिस्टर करना न भूलें. अधिक जानकारी यहां पर- http://aajtak.intoday.in/sahitya/index.php इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |