भारत में कोरोना की दूसरी लहर में तेजी के साथ कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े हैं. वहीं, टीकाकरण की गति में लगातार गिरावट देखी जा रही है. कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण किया जाए. फिलहाल टीकाकरण के लिए कोवैक्सीन (Covaxin) और कोविशील्ड (Covishield) का ही इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी बीच केंद्र सरकार ने कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच गैप को 8 हफ्ते से बढ़ाकर 12 से 16 सप्ताह कर दिया है. कई लोगों का मानना है कि सरकार ने वैक्सीन की कमी पर पर्दा डालने के लिए ऐसा किया है. लेकिन, यह पूरी तरह से गलत (इसे आगे के लेख में बता दिया जाएगा) है. कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच टाइम गैप बढ़ाने से हर किसी के मन में कई सवाल उठ रहे होंगे. आइए जानते है कि कोवैक्सिन और कोविशील्ड वैक्सीन के डोज के बीच में टाइम गैप में अंतर क्यों ज्यादा है?
सारा खेल एंटीबॉडीज का
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज यानी इम्यूनिटी का होना बहुत जरूरी है. ये इम्यूनिटी टीकाकरण के जरिये ही शरीर में आती हैं. इसी वजह से वैक्सीनेशन को सभी डॉक्टर जरूरी बताते हैं. आईसीएमआर के हेड डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि कोविशील्ड वैक्सीन का पहला डोज लेने के साथ ही लोगों में एंटीबॉडीज बनने लगती हैं. कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज में टाइम गैप की वजह से लोगों में एंटीबॉडीज बड़ी मात्रा में बनती हैं. कोवैक्सीन के पहले डोज के बाद इम्यूनिटी उतनी नहीं बढ़ती और एंटीबॉडीज भी बहुत ज्यादा नहीं बनती हैं. इसी वजह से कोवैक्सीन की दूसरी डोज के बीच में ज्यादा अंतर नहीं रखा गया है.
तो क्या कोवैक्सीन कम असरदार है?
कौवैक्सीन की पहली डोज के बाद एंटीबॉडीज कम संख्या में बनती हैं. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि कोवैक्सीन कम असरदार है. कोवैक्सीन की दूसरी डोज लेने के साथ ही लोगों में कोरोना वायरस से निपटने के लिए जरूरी पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज बनने लगती हैं. पहली डोज के बाद कम एंटीबॉडीज बनने की वजह से ही कोवैक्सीन की दो...
भारत में कोरोना की दूसरी लहर में तेजी के साथ कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े हैं. वहीं, टीकाकरण की गति में लगातार गिरावट देखी जा रही है. कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण किया जाए. फिलहाल टीकाकरण के लिए कोवैक्सीन (Covaxin) और कोविशील्ड (Covishield) का ही इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी बीच केंद्र सरकार ने कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच गैप को 8 हफ्ते से बढ़ाकर 12 से 16 सप्ताह कर दिया है. कई लोगों का मानना है कि सरकार ने वैक्सीन की कमी पर पर्दा डालने के लिए ऐसा किया है. लेकिन, यह पूरी तरह से गलत (इसे आगे के लेख में बता दिया जाएगा) है. कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच टाइम गैप बढ़ाने से हर किसी के मन में कई सवाल उठ रहे होंगे. आइए जानते है कि कोवैक्सिन और कोविशील्ड वैक्सीन के डोज के बीच में टाइम गैप में अंतर क्यों ज्यादा है?
सारा खेल एंटीबॉडीज का
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज यानी इम्यूनिटी का होना बहुत जरूरी है. ये इम्यूनिटी टीकाकरण के जरिये ही शरीर में आती हैं. इसी वजह से वैक्सीनेशन को सभी डॉक्टर जरूरी बताते हैं. आईसीएमआर के हेड डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि कोविशील्ड वैक्सीन का पहला डोज लेने के साथ ही लोगों में एंटीबॉडीज बनने लगती हैं. कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज में टाइम गैप की वजह से लोगों में एंटीबॉडीज बड़ी मात्रा में बनती हैं. कोवैक्सीन के पहले डोज के बाद इम्यूनिटी उतनी नहीं बढ़ती और एंटीबॉडीज भी बहुत ज्यादा नहीं बनती हैं. इसी वजह से कोवैक्सीन की दूसरी डोज के बीच में ज्यादा अंतर नहीं रखा गया है.
तो क्या कोवैक्सीन कम असरदार है?
कौवैक्सीन की पहली डोज के बाद एंटीबॉडीज कम संख्या में बनती हैं. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि कोवैक्सीन कम असरदार है. कोवैक्सीन की दूसरी डोज लेने के साथ ही लोगों में कोरोना वायरस से निपटने के लिए जरूरी पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज बनने लगती हैं. पहली डोज के बाद कम एंटीबॉडीज बनने की वजह से ही कोवैक्सीन की दो डोज के बीच टाइम गैप को कम रखा गया है. कोवैक्सीन को आईसीएमआर और भारत बायोटेक ने मिलकर बनाया है. इस हिसाब से डॉ. बलराम भार्गव के बयान को विश्वसनीय माना जा सकता है.
टाइम गैप क्यों बढ़ाया?
कोविशील्ड की दो डोज के बीच टाइम गैप को बढ़ाने को लेकर लोगों के मन में कई गलतफहमियां हैं. कोविशील्ड की दो डोज के बीच टाइम गैप बढ़ाने का कारण वैक्सीन की कमी कहीं से भी नहीं हो सकता है, तो इसकी पूरी गणित समझ लेते हैं. सबसे पहले एंटी कोविड वैक्सीन (कोविशील्ड और कोवैक्सीन) की पहली और दूसरी डोज के बीच 4 से 6 हफ्ते का टाइम गैप था. मार्च में कोविशील्ड की दो डोज के बीच गैप को बढ़ाकर 4 से 8 हफ्ते कर दिया गया और अब इसे 12 से 16 हफ्ते कर दिया गया है. इस लिहाज से अगर कोविशील्ड वैक्सीन की डोज में एक महीना बढ़ा दिया जाए, तो बहुत ज्यादा 6 करोड़ वैक्सीन डोज की बचत की जा सकती है. लेकिन, इससे सरकार को कोई खास फायदा नहीं है. इसकी पीछे की असली वजह है अंतरारष्ट्रीय रिसर्च डेटा.
अमेरिका में की गई रिसर्च में पाया गया है कि कोविशील्ड (ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका) की दो डोज के बीच में गैप बढ़ने के साथ ही कोरोना वायरस के खिलाफ इसका असर बढ़ जाता है. कोविशील्ड की दो खुराक के बीच में अंतर से यह 79 फीसदी तक ज्यादा असर करती है. वहीं, ब्राजील और ब्रिटेन में की गई रिसर्च में सामने आया है कि कोविशील्ड (ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका) की दूसरी डोज के बीच में 6 से 8 सप्ताह के टाइम गैप से यह 59.9 फीसदी ज्यादा असर करती है. 9 से 11 हफ्तों के बीच इसका असर 63.7 फीसदी तक बढ़ जाता है. वहीं, 12वें से 16वें हफ्ते के दौरान कोविशील्ड की दूसरी डोज लेने से इसका असर 82.4 फीसदी तक बढ़ जाता है.
दोनों वैक्सीन हैं कारगर
भारत में टीकाकरण के लिए इस्तेमाल की जा रहीं कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों ही कारगर हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने दावा किया है कि साल के अंत तक भारत में सभी लोगों का टीकाकरण कर लिया जाएगा. केंद्र सरकार ने वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर अपना रोडमैप भी जारी कर दिया है. माना जा सकता है कि अगस्त से दिसंबर के बीच लोगों के पास कोविशील्ड और कोवैक्सीन के अलावा भी एंटी कोविड वैक्सीन के 6 अन्य विकल्प हो सकते हैं. फिलहाल जब तक ये वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो रही हैं, उससे पहले आपको मौका मिले, तो कोविशील्ड या कोवैक्सीन दोनों में से ही कोई भी वैक्सीन लगवा सकते हैं. टीकाकरण से ही आपकी और आपके परिवार की सुरक्षा होगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.