अक्सर लोग कहते हैं कि व्यक्ति को अतीत को भूलते हुए पहले वर्तमान, फिर भविष्य पर फ़ोकस करना चाहिए. बात भी ठीक है. लेकिन कई बार अतीत में ऐसा बहुत कुछ हो चुका होता है, जिसे हम भुलाना तो चाहते हैं. लेकिन भुला नहीं पाते. कोविड की दूसरी लहर भी कुछ ऐसा ही मरहला है. भला कौन भूल पाएगा अप्रैल 2021के शुरुआती 15 दिनों को? पूरे देश में त्राहिमाम मच गया था. सड़कों पर सन्नाटा. उस सन्नाटे को चीरती एम्बुलेंस की आवाज. अस्पतालों में करहाते और दम तोड़ते मरीज. ऑक्सीजन सिलिंडर, जरूरी दवाओं, ऑक्सिमीटर जैसी चीजों के लिए दर दर की ठोकर खाते तीमारदार, जगह की कमी के चलते पब्लिक प्लेस पर जलती चिताएं, कब्रिस्तानों के बाहर मुर्दे दफ्न होने के लिए वेटिंग का टोकन पकड़े बैठी जनता... हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने कोविड की इस दूसरी लहर में किसी अपने को नहीं खोया. कोविड की दूसरी लहर ने जैसा कोहराम हिंदुस्तान में मचाया कहीं घरों में परिवार का मुखिया चल बसा तो कहीं घर का वो एकलौता शख्स जो कमाकर परिवार का भरण पोशण कर रहा था उसने दुनिया को अलविदा कह दिया. उन पलों को याद लीजिये साथ ही याद कीजिये उस समय की दहशत को.
सवाल है कि क्या सब कुछ नार्मल हो गया है? क्या अनलॉक ने हमारे जीवन को वापस पटरी पर ला दिया है? क्या अब हम खुलकर सांस ले सकते हैं? एक दूसरे से मिल जुल सकते हैं? यूं तो हां बोलकर अपने को खुश किया जा सकता है मगर जब हम पीएमओ आई एक रिपोर्ट को देखते हैं और उसका अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि आने वाले वक्त में स्थिति और गंभीर है. देश में इस साल अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर के आने की आशंका जताई जा रही है.
बताते चलें कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के तहत गठित...
अक्सर लोग कहते हैं कि व्यक्ति को अतीत को भूलते हुए पहले वर्तमान, फिर भविष्य पर फ़ोकस करना चाहिए. बात भी ठीक है. लेकिन कई बार अतीत में ऐसा बहुत कुछ हो चुका होता है, जिसे हम भुलाना तो चाहते हैं. लेकिन भुला नहीं पाते. कोविड की दूसरी लहर भी कुछ ऐसा ही मरहला है. भला कौन भूल पाएगा अप्रैल 2021के शुरुआती 15 दिनों को? पूरे देश में त्राहिमाम मच गया था. सड़कों पर सन्नाटा. उस सन्नाटे को चीरती एम्बुलेंस की आवाज. अस्पतालों में करहाते और दम तोड़ते मरीज. ऑक्सीजन सिलिंडर, जरूरी दवाओं, ऑक्सिमीटर जैसी चीजों के लिए दर दर की ठोकर खाते तीमारदार, जगह की कमी के चलते पब्लिक प्लेस पर जलती चिताएं, कब्रिस्तानों के बाहर मुर्दे दफ्न होने के लिए वेटिंग का टोकन पकड़े बैठी जनता... हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने कोविड की इस दूसरी लहर में किसी अपने को नहीं खोया. कोविड की दूसरी लहर ने जैसा कोहराम हिंदुस्तान में मचाया कहीं घरों में परिवार का मुखिया चल बसा तो कहीं घर का वो एकलौता शख्स जो कमाकर परिवार का भरण पोशण कर रहा था उसने दुनिया को अलविदा कह दिया. उन पलों को याद लीजिये साथ ही याद कीजिये उस समय की दहशत को.
सवाल है कि क्या सब कुछ नार्मल हो गया है? क्या अनलॉक ने हमारे जीवन को वापस पटरी पर ला दिया है? क्या अब हम खुलकर सांस ले सकते हैं? एक दूसरे से मिल जुल सकते हैं? यूं तो हां बोलकर अपने को खुश किया जा सकता है मगर जब हम पीएमओ आई एक रिपोर्ट को देखते हैं और उसका अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि आने वाले वक्त में स्थिति और गंभीर है. देश में इस साल अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर के आने की आशंका जताई जा रही है.
बताते चलें कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के तहत गठित एक्सपर्ट पैनल ने सरकार को तीसरी लहर की चेतावनी दे दी है. यूं तो रिपोर्ट में कमेटी ने तमाम चीजों का जिक्र किया है लेकिन बात होनी चाहिए वो हैं बच्चे. रिपोर्ट में कमेटी ने बच्चों के लिए मेडिकल तैयारी की जरूरत पर जोर दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड थर्ड वेव में बच्चों को कहीं ज्यादा खतरा है.
गौरतलब है कि देश में कोविड की तीसरी लहर के जायजे के लिए गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद एक समिति गठित हुई थी जिसने अपनी रिपोर्ट में बच्चों पर बल दिया है और कहा है कि 'बच्चों के लिए मेडिकल सुविधाएं - डॉक्टर, कर्मचारी, वेंटिलेटर, एम्बुलेंस इत्यादि जैसे उपकरण कहीं भी नहीं हैं. कमेटी मानती है कि कोविड की तीसरी लहर सबसे ज्यादा बच्चों को प्रभावित करेगी इसलिए बड़ी संख्या में बच्चों के संक्रमित होने की स्थिति में इनकी आवश्यकता हो सकती है.
फिलहाल रिपोर्ट पीएमओ के पास है जिसमें कई अहम बातों का जिक्र है. रिपोर्ट में गंभीर रूप से बीमार और विकलांग बच्चों को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीनेशन पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई है. कमेटी के अनुसार बच्चे तभी बच सकते हैं जब उन्होंने वैक्सीनशन करवाया हो.
ध्यान रहे स्थिति थोड़ी जटिल इसलिए भी है क्योंकि अभी देश में बच्चों का वैक्सिनेशन नहीं हुआ है. ऐसे में विचार विमर्श किया जा रहा है कि यदि उनके बीच संक्रमण फैल गया तो उसे कैसे कंट्रोल में लाया जाएगा. तमाम मेडीकल एक्सपर्ट्स ऐसे हैं जिनका मानना है कि बच्चों में गंभीर संक्रमण का खतरा भले ही ना हो लेकिन वे संक्रमण को अन्य लोगों तक फैला सकते हैं. वहीं कोविड थर्ड वेव के तहत अनुमान ये भी है कि कोविड की थर्ड वेव दूसरी लहर की तुलना में कम गंभीर होगी.
इन तमाम बातों के बीच यदि हम 'थर्ड वेव प्रिपेयर्डनेस : चिल्ड्रन वल्नरेबिलिटी एंड रिकवरी' रिपोर्ट को देखें और उसका अवलोकन करें तो मिलता है कि उसने कोरोना संक्रमित बच्चों और महामारी से निपटने के लिए कई जरूरी बातों पर बल दिया है जिसे देश और स्वयं पीएम मोदी को अमली जामा पहनाना चाहिए.
बहरहाल कोविड की तीसरी वेव, इसके खतरों, बच्चों पर इसके प्रभाव, इसकी रोकथाम पर बातें उस वक़्त हो रही हैं जब केरल ने पूरे देश की टेंशन बढ़ा दी है. केरल में 14 जिले अभी भी रेड जोन में हैं और साथ ही केरल में पॉजिटिविटी रेट 10% ही है. जैसे हालात केरल के हैं हर बीतते दिन के साथ स्थिति गंभीर हो रही है . देश में आज कोविड के जितने भी मामले हैं उनमें आधे से अधिक केरल से हैं.
बात चूंकि कोविड की तीसरी वेव की चल रही है ऐसे में हमारे लिए नीति आयोग की हिदायतों और आशंकाओं पर भी बात करना बहुत जरूरी है. नीति आयोग के सदस्य वी.के. पॉल ने पहले से तैयारी को लेकर चेतावनी दी है. पॉल ने सरकार को वायरस की गंभीरता बताते हुए कहा है कि तीसरी वेव में एक दिन में चार लाख तक मामले आ सकते हैं.
इसके लिए करीब 2 लाख आईसीयू बेड की व्यवस्था करनी होगी. इनमें वेंटिलेटर वाले 1.2 लाख आईसीयू बेड, 7 लाख नॉन-आईसीयू हॉस्पिटल बेड और 10 लाख कोविड आइसोलेशन केयर बेड होने जरूरी हैं. ये सुझाव नीति आयोग की तरफ से यूं ही नहीं दिए गए हैं आयोग की तरफ से अप्रैल-जून 2021 के समय को देखा गया है और कोविड संक्रमण के पूरे पैटर्न को समझा गया है.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि भले ही आईआईटी कानपुर ये दावा पेश कर रहा हो कि देश में कोरोना की तीसरी लहर आने की संभावना लगभग न के बराबर है मगर वो लोग जरूर चिंता में हैं जिनके बच्चे हैं या फिर जो आने वाले कुछ दिनों में माता पिता बनने वाले हैं. लोग चिंतित हैं और उनकी ये चिंता लाजमी इसलिए भी है कि देश ने तमाम लोगों को कोविड की दूसरी लहर में मरते देखा और साथ ही देखा था सरकार का हाथ पर हाथ रखकर बैठना और ढीला एटीट्यूड और मामले पर भद्दी राजनीति.
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