तकरीबन एक साल से कोरोना से जूझ रहे दुनिया समेत भारत को आशा की किरण तब दिखाई देनी शुरू हो गई, जब कोवैक्सीन (covaxin) और कोवीशील्ड (covishield) नाम से कोरोना को जड़ से खत्म करने की दो वैक्सीन (covid-19 vaccine) आने की ख़बर सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक नाम की कंपनी ने दिया. बीते 15 दिन में ड्राय रन से लेकर वैक्सीन के रख रखाव को लेकर सभी पहलू पर ध्यान दिया गया. 16 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मोदी के हाथों इसका शुभारंभ भी हुआ. एक तरफ कोरोना को जड़ से खत्म करने के लिए सबसे बड़े टीकाकरण की शुरुआत हो चुकी है. जिसके तहत केंद्र सरकार ने सबसे पहले डॉक्टर्स, नर्सों और सफाई कर्मियों को वैक्सीन दी गई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में पहले लगभग दिन एक लाख 91 हजार से अधिक लोगों को टीका लगाया जा चुका है.
स्वास्थ्यकर्मी फ्रंटलाइन वर्कर से लेकर देश के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने पहले दिन टिका भी लगवा लिया. वैक्सीन पर सवाल उठाने वालों के मुंह पर इस तस्वीर को तमाचे के तौर पर लिया गया. लेकिन इतना होने के बाद भी ऐसे लोगों की तादाद बड़ी है जो वैक्सीन से दूरी बनना चाहते हैं और उनमें भरोसे की भारी कमी देखने को मिल रही है, तो क्या ये माना जाना चाहिए कि सरकार को और वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी को सबसे पहले लोगों को जागरूक करना चाहिए.
क्योंकि अगर इसी देश में पोलियों और चेचक के टीके से लोगों ने दूरी नहीं बनाई और उसपर यकीन किया और ये बीमारी भी भारत में जड़ से खत्म हो गई तो इसके लिए सारा श्रेय उसके प्रचार प्रसार को जाता है. जो लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहा. अब कोरोना वैक्सीन को लेकर क्यों अफवाहें हावी हैं. लोग क्यों...
तकरीबन एक साल से कोरोना से जूझ रहे दुनिया समेत भारत को आशा की किरण तब दिखाई देनी शुरू हो गई, जब कोवैक्सीन (covaxin) और कोवीशील्ड (covishield) नाम से कोरोना को जड़ से खत्म करने की दो वैक्सीन (covid-19 vaccine) आने की ख़बर सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक नाम की कंपनी ने दिया. बीते 15 दिन में ड्राय रन से लेकर वैक्सीन के रख रखाव को लेकर सभी पहलू पर ध्यान दिया गया. 16 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मोदी के हाथों इसका शुभारंभ भी हुआ. एक तरफ कोरोना को जड़ से खत्म करने के लिए सबसे बड़े टीकाकरण की शुरुआत हो चुकी है. जिसके तहत केंद्र सरकार ने सबसे पहले डॉक्टर्स, नर्सों और सफाई कर्मियों को वैक्सीन दी गई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में पहले लगभग दिन एक लाख 91 हजार से अधिक लोगों को टीका लगाया जा चुका है.
स्वास्थ्यकर्मी फ्रंटलाइन वर्कर से लेकर देश के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने पहले दिन टिका भी लगवा लिया. वैक्सीन पर सवाल उठाने वालों के मुंह पर इस तस्वीर को तमाचे के तौर पर लिया गया. लेकिन इतना होने के बाद भी ऐसे लोगों की तादाद बड़ी है जो वैक्सीन से दूरी बनना चाहते हैं और उनमें भरोसे की भारी कमी देखने को मिल रही है, तो क्या ये माना जाना चाहिए कि सरकार को और वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी को सबसे पहले लोगों को जागरूक करना चाहिए.
क्योंकि अगर इसी देश में पोलियों और चेचक के टीके से लोगों ने दूरी नहीं बनाई और उसपर यकीन किया और ये बीमारी भी भारत में जड़ से खत्म हो गई तो इसके लिए सारा श्रेय उसके प्रचार प्रसार को जाता है. जो लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहा. अब कोरोना वैक्सीन को लेकर क्यों अफवाहें हावी हैं. लोग क्यों अभी खुलकर राज़ी नहीं हो रहे.
इस बारे में हमने कुछ महिलाओं से बात की. हम यहां आपसे उनके द्वारा बताई गई कुछ बातें शेयर कर रहे हैं. कुछ महिलाओं की राय ऐसी है जिससे सरकार को भी काफी हद कर मदद मिल सकती है. जिससे भ्रांतिया दूर हो सकें.
गाज़ियाबाद में रहने वाली रीतिका का कहना है कि मैं अपनी बेटी क्या अपने घर की किसी भी फैमिली मेंबर को वैक्सीन लगवाने के लिए राजी नहीं हूं, क्योंकि हर रोज कुछ अलग खबर देखने को मिल रही है. साथ ही कई तरह की अफवाहें भी फैल रही हैं. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या सही है और क्या गलत.
वहीं रंजना की मॉमी ममता का कहना है कि मैं अपने बेटी को वैक्सीन लगवाने में कोई जल्दबाजी नहीं करने वाली. अभी जरूरत भी नहीं है. इससे बेहतर है कि मैं उसके खान-पान और लाइफस्टाइल पर ध्यान देती हूं, ताकि उसकी इम्यूनिटी मजबूत बनी रही. मैं उसे मास्क और लोगों से दूरी बनाने के लिए बोला है. वैक्सीनेन को लेकर मेरा बस यही कहना है कि फिलहाल मैं उसकी जिंदगी के साथ कोई रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं हूं.
जब हमने सीमा से पूछा कि कोरोना वैक्सीन लगवाने के बारे में वो क्या सोचती हैं और क्या अपनी बेटी को यह वैक्सीनेशन लगवाना चाहेंगी. तो उन्होंने जवाब दिया नहीं. हमने पूछा कि आखिर ऐसा क्यों तो सीमा ने जवाब दिया कि सबकुछ इतना जल्दी हो रहा है एक हड़बड़ी सी महसूस हो रही है.
हमें इस बारे में अभी पूरी जानकारी भी नहीं मिली है कि हम इस बात को लेकर निश्चिंत हो पाएं कि इसका कोई शरीर पर निगेटिव असर पड़ेगा. हम पढ़े-लिखे समझदार लोग हैं. किसी वैक्सीन को बनने में समय लगता है, फिर जांच और तसल्ली के बाद ही हम इस नॉर्मल लाइफ में उपयोग किया है. उपर से यह भी साफ नहीं हो रहा कि वैक्सीन लगवाने के बाद हम कोरोना से संक्रमित होने से बच जाएंगे तो फिर फायदा क्या.
कुछ लोगों का मानना था कि पहले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोरोना वैक्सीन लगवानी चाहिए. वहीं कुछ का कहना है कि अगर पहले पीएम मोदी ने वैक्सीन लगवा ली होती तो सब यह बोलेते कि गरीब, मजदूरों पर ध्यान नहीं दिया और वीआईपी लोगों को ही वैक्सीन लगाई जा रही है. वहीं कुछ का मानना है कि अगर यह जानलेवा होती तो फिर जिनको वैक्सीन लगी है उन हजारों लोगों के साथ रिस्क क्यों ली जाती.
लोगों से बात करके इतना तो समझ आ गया है कि भले ही सरकार ने यह साफ कर दिया कि, टीका लगवाना उनके उपर है. इसके लिए कोई जबरदस्ती नहीं है. एक तरह से भले ही वैक्सीनेशन का काम शुरू कर दिया हो, लेकिन क्या लोगों तक अभी भी जानकारी की कमी है. क्या सरकार कहीं ना कहीं लोगों को यह समझा पाने में विफल रही है. क्या वैक्सीन का प्रचार सही से नहीं हो पाया है. क्या इसलिए लोगों में अभी भी भरोसे की कमी है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.