पिछले कुछ समय से टीवी पर सिर्फ पुलिस (Police) वाले देख रही हूं. दिल्ली के अदालत परिसर में पिटते पुलिसवाले, कभी हैदराबाद रेप कांड (Hyderabad rape case) के आरोपियों को एनकाउंटर में ढेर करते पुलिसवाले, कुछ पुलिसवाले वो भी थे जो उन्नाव रेप कांड(nnao rape case) में सस्पेंड कर दिए गए. यानी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पुलिस वालों का रुतबा हम देखते ही रहते हैं.
फौज की बात करें तो सीमा पर फौजी कैसा होता है वो सिर्फ कल्पना ही होती है क्योंकि असल जीवन में फौजियों को बहुत कम देख पाते हैं. उनके बारे में हम सुनते हैं, महसूस करते हैं, उनकी इज्जत करते हैं लेकिन जिन्हें हम काफी करीब से और अक्सर देखते हैं वो होती है पुलिस. और हमारी पुलिस के प्रति हमारा रवैया आर्मी जैसा नहीं.
पुलिसवाले असल जीवन में कैसे भी रहें लेकिन फिल्मों में पुलिस वालों को जिस तरह से दिखाया जाता है वो एकदम हटकर होता है. सिंघम(Singham) का स्टाइल और अपराधियों के प्रति सिंघम के तेवर देखने लायक रहे. और उसके बाद हर कोई पुलिस वालों से सिंघम बनने की उम्मीद करता. फिल्मों (Bollywood) में तो पुलिस वाला चुलबुल पांडे का दबंग (Dabangg 3) भी हो, रिश्वतखोर भी हो तो भी वो दर्शकों को खूब भाता है. फिल्म दरबार (darbar) में बैड कॉप बने रजनीकांत(Rajinikanth) की तो लोग पूजा तक करते हैं. यानी फिल्मों का पुलिस वाला अगर बुरा भी हो तो भी हीरो ही लगता है. और अगर मर्दानी(Mardaani) जैसी पुलिसवाली हो तो फिर तो कहने ही क्या. पुलिसवालों को जितना इज्जत हम फिल्मों में देते हैं क्या कभी असल जिंदगी में दे सकते हैं? वैसे जवाब हम सभी को मालूम है.
पुलिस वालों का हमारे समाज में कितना प्रमुख और महत्वपूर्ण...
पिछले कुछ समय से टीवी पर सिर्फ पुलिस (Police) वाले देख रही हूं. दिल्ली के अदालत परिसर में पिटते पुलिसवाले, कभी हैदराबाद रेप कांड (Hyderabad rape case) के आरोपियों को एनकाउंटर में ढेर करते पुलिसवाले, कुछ पुलिसवाले वो भी थे जो उन्नाव रेप कांड(nnao rape case) में सस्पेंड कर दिए गए. यानी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पुलिस वालों का रुतबा हम देखते ही रहते हैं.
फौज की बात करें तो सीमा पर फौजी कैसा होता है वो सिर्फ कल्पना ही होती है क्योंकि असल जीवन में फौजियों को बहुत कम देख पाते हैं. उनके बारे में हम सुनते हैं, महसूस करते हैं, उनकी इज्जत करते हैं लेकिन जिन्हें हम काफी करीब से और अक्सर देखते हैं वो होती है पुलिस. और हमारी पुलिस के प्रति हमारा रवैया आर्मी जैसा नहीं.
पुलिसवाले असल जीवन में कैसे भी रहें लेकिन फिल्मों में पुलिस वालों को जिस तरह से दिखाया जाता है वो एकदम हटकर होता है. सिंघम(Singham) का स्टाइल और अपराधियों के प्रति सिंघम के तेवर देखने लायक रहे. और उसके बाद हर कोई पुलिस वालों से सिंघम बनने की उम्मीद करता. फिल्मों (Bollywood) में तो पुलिस वाला चुलबुल पांडे का दबंग (Dabangg 3) भी हो, रिश्वतखोर भी हो तो भी वो दर्शकों को खूब भाता है. फिल्म दरबार (darbar) में बैड कॉप बने रजनीकांत(Rajinikanth) की तो लोग पूजा तक करते हैं. यानी फिल्मों का पुलिस वाला अगर बुरा भी हो तो भी हीरो ही लगता है. और अगर मर्दानी(Mardaani) जैसी पुलिसवाली हो तो फिर तो कहने ही क्या. पुलिसवालों को जितना इज्जत हम फिल्मों में देते हैं क्या कभी असल जिंदगी में दे सकते हैं? वैसे जवाब हम सभी को मालूम है.
पुलिस वालों का हमारे समाज में कितना प्रमुख और महत्वपूर्ण रोल है हम सभी जानते हैं. पुलिस एक बड़ा नाम है जिसका समाज से लेकर फिल्मों तक डंडा चलता है. लेकिन रील लाइफ से जब हम रियल लाइफ में आते हैं तो ये पुलिस हमारी फिल्मों जैसी लगती ही नहीं.
अब हाल ही में हो रहे CAA protest की बात करें तो, पुलिस सीएए लेकर नहीं आई, और न ही इस मामले पर पुलिस किसी भी तरह की राजनीति कर रही है. कानून व्यवस्था को संभालना पुलिस का काम है और वो वही कर रही है. ऐसे प्रदर्शनों में कुछ भी अप्रिय होता है तो सारी जवाबदेही पुलिस की ही होती है. नहीं तो लोग उससे सवाल करेंगे कि पुलिस कहां थी, पुलिस ने रोका क्यों नहीं? वो कोशिश कर रही है कि आक्रोश थम जाए, लेकिन थम नहीं रहा, वो बलप्रयोग कर रही है तो विपक्ष उसे क्रूर कहता है. वो कुछ न करे तो उसे निकम्मा कहा जाता है. वहीं इस पूरे मामले पर प्रदर्शकारियों के गुस्से का शिकार भी पुलिस ही हो रही है.
यहां तो वो बड़ी बहस के बीच फंसी नजर आती है. एक तरफ देखा जा रहा है कि पुलिस जामिया युनिवर्सिटी(Jamia niversity) में घुस गई है, तो दूसरी तरफ देखा जाता है कि पुलिस गाड़ियां तोड़ रही है. एक तरफ पुलिसवाले को पीटा जा रहा है, चौकियां जलाई जा रही हैं, एक तरफ CAA protest में पुलिसवालों पर जोरदार पत्थरबाजी की जा रही है, वो लहुलुहान हो रहे हैं खुद को पत्थरों से बचा रहे हैं.
असल में पुलिस तो दो राहे में फंसी हुई है और इस लिहाज से देखा जाए तो इन पुलिस वालों की चांदी तो सिर्फ फिल्मों में ही है. अगर पुलिस वाले हीरो हैं तो सिर्फ फिल्मों में. रील लाइफ के पुलिस वालों के हीरोइज्म से एकदम दूर...रजनीतकांत तो बिल्कुल ही नहीं बन पा रही है हमारी पुलिस.
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