कोरोना काल (coronavirus) में लोग जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कोई अनाथ हो जा रहा तो कोई बेसहारा. किसी के घर का चिराग खत्म हो रहा तो किसी के बुढ़ापे का सहारा. किसी-किसी का तो पूरा परिवार तबाह हो जा रहा है. आखिर हम किसी के दर्द को (Karnataka news) भला लफ्जों में कैसे बयां करें.
इसी बीच एक 9 साल की बच्ची की चिट्ठी वायरल (hrithiksha mother mobile) हो रही है. जिसमें उसने लोगों से कोरोना के कारण दुनिया छोड़कर जाने वाली मां का मोबाइल लौटाने की गुहार (emotional letter) लगाई है. बच्ची की मां अब इस जहां (corona death) में नहीं है लेकिन उस मोबाइल में उसकी तस्वीरें हैं, उसकी वीडियो हैं. उस बच्ची को वह मोबाइल बात करने के लिए नहीं चाहिए बल्कि मां के साथ बिताए हुए यादों के लिए चाहिए. जो तब गुम हो गया था जब मां अस्पताल (covid hospital) में भर्ती हुई थी.
जब कोई अपना दुनिया छोड़कर चला जाता है तो हम तस्वीरों के जरिए ही तो उसे देख पाते हैं, वरना दुनिया से जाने वाले ना जाने कहां चले जाते हैं. दूर जाने वाली मां को यह छोटी बच्ची मोबाइल के जरिए ही सही लेकिन रोज देखना चाहती है.
इस बच्ची का चेहरा देखते ही हमें उन तमाम बच्चों के बारे में सोचकर घबराहट होती है जिन्होंने कोरोना की वजह से अपने माता-पिता को खो दिया है. कल तक जो अपने माता-पिता के दिल के टुकड़े थे, आज वे अनाथ हैं. हम भी चाहते हैं कि सकारात्मक खबरें आएं और ऐसा हो भी रहा है. कुछ दिनों से कोरोना संक्रमण में कमी आई, रिकवरी रेट भी बढ़ा, लोग बीमार होकर ठीक भी हो रहे हैं लेकिन हमारे देश में लड़ाई सिर्फ कोरोना से थोड़ी है. इस खबर को सुनकर मन में एक ख्याल आता है कि क्या इलाज के लिए घर से दूर अस्पताल आकर लोग अनाथ हो...
कोरोना काल (coronavirus) में लोग जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कोई अनाथ हो जा रहा तो कोई बेसहारा. किसी के घर का चिराग खत्म हो रहा तो किसी के बुढ़ापे का सहारा. किसी-किसी का तो पूरा परिवार तबाह हो जा रहा है. आखिर हम किसी के दर्द को (Karnataka news) भला लफ्जों में कैसे बयां करें.
इसी बीच एक 9 साल की बच्ची की चिट्ठी वायरल (hrithiksha mother mobile) हो रही है. जिसमें उसने लोगों से कोरोना के कारण दुनिया छोड़कर जाने वाली मां का मोबाइल लौटाने की गुहार (emotional letter) लगाई है. बच्ची की मां अब इस जहां (corona death) में नहीं है लेकिन उस मोबाइल में उसकी तस्वीरें हैं, उसकी वीडियो हैं. उस बच्ची को वह मोबाइल बात करने के लिए नहीं चाहिए बल्कि मां के साथ बिताए हुए यादों के लिए चाहिए. जो तब गुम हो गया था जब मां अस्पताल (covid hospital) में भर्ती हुई थी.
जब कोई अपना दुनिया छोड़कर चला जाता है तो हम तस्वीरों के जरिए ही तो उसे देख पाते हैं, वरना दुनिया से जाने वाले ना जाने कहां चले जाते हैं. दूर जाने वाली मां को यह छोटी बच्ची मोबाइल के जरिए ही सही लेकिन रोज देखना चाहती है.
इस बच्ची का चेहरा देखते ही हमें उन तमाम बच्चों के बारे में सोचकर घबराहट होती है जिन्होंने कोरोना की वजह से अपने माता-पिता को खो दिया है. कल तक जो अपने माता-पिता के दिल के टुकड़े थे, आज वे अनाथ हैं. हम भी चाहते हैं कि सकारात्मक खबरें आएं और ऐसा हो भी रहा है. कुछ दिनों से कोरोना संक्रमण में कमी आई, रिकवरी रेट भी बढ़ा, लोग बीमार होकर ठीक भी हो रहे हैं लेकिन हमारे देश में लड़ाई सिर्फ कोरोना से थोड़ी है. इस खबर को सुनकर मन में एक ख्याल आता है कि क्या इलाज के लिए घर से दूर अस्पताल आकर लोग अनाथ हो जाते हैं.
अस्पतालों की क्या कहानी यह तो आपको पता ही है. हम ऑक्सीजन, बेड, दवाइयों और वेंटिलेटर की परेशानी से तो जूझ ही रहे हैं, इसके साथ हम आपदा में अवसर ढूंढने वाले लोगों से भी परेशान है. जिनके बारे में सुनकर लगता है इंसानियत मर गई है. इस समय में भला जब एक चोर चुराई हुई दवा और वैक्सीन यह बोलकर लौटा देता है कि सॉरी मालूम नहीं था कि कोविड की दवा है. ऐसे समय में वे कौन लोग हैं जो मरे हुए इंसान का सामान चुरा सकते हैं. क्या सच में घोर कलयुग आ गया है.
चलिए आपको पूरी बात बताते हैं
तस्वीर में दिख रही ये बच्ची कर्नाटक के कोडागू जिले की कुशलनगर की रहने वाली है जिसका नाम हृतीक्षा है. जो अपने माता-पिता के साथ खुशी-खुशी जिंदगी बिता रही थी. मां का नाम प्रभा है जो दिहाड़ी मजदूरी का काम करती थीं. वह और उनके पति बेटी को अच्छी परवरिश देना चाहते थे इसलिए मजदूरी करते थे. सब कुछ सही चल रहा था कि एक दिन तृतीक्षा की मां की तबीयत बिगड़ी और सब तबाह हो गया. अब हृतीक्षा, मां का फोन खोज रही है जो अस्पताल से चोरी हो गया था. सोचिए जहां लोग इलाज कराने जा रहे वहां की क्या व्यवस्था है. बच्ची ने खत लिखते हुए लोगों से यह अपील की है, ‘किसी ने मां का फोन ले लिया, उसमें मां की कई यादें हैं. मैं अनुरोध करती हूं जिसने भी फोन लिया है या जो ढूंढ सके वो मुझे वो फोन दे दें’.
उस फोन की कीमत हमारे आपके लिए भले कुछ ना हो, लेकिन एक बेटी के लिए है जिसमें वह मां को देख सकती है, मां की आवाज सुन सकती है, मां के साथ बिताए हुए कैद पलों को देख सकती है. इसके लिए उसने तहसीलदार, डिप्टी कमिश्नर, लोकल विधायक और जिला अस्पताल को भी चिट्टी लिखी है. चिट्ठी में बच्ची ने दिल खोल कर रख दिया है.
वह लिखती है ‘लगभग 15 दिन पहले मेरे मम्मी, पापा और मैं कोरोना पॉजिटिव हो गए. मेरी मां को मदिकेरी के कोविड 19 अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मैं और मेरे पिता घर से बाहर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि हम क्वारंटाइन थे. मेरे पिता एक दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं. जब हम बीमारी थे तब हमारे पड़ोसियों ने हमारी बहुत मदद की थी. कोरोना की वजह से मेरी मां का 16 मई को निधन हो गया. उनका फोन तब से गायब है. उस फोन में मेरी मां की ढेर सारी यादें हैं. अगर किसी को यह मिला हो तो कृपया वापस कर दें.’
वहीं हृतीक्षा के पिता नवीन कुमार ने बताया है कि मेरी पत्नी के गुजर जाने के बाद अस्पताल से बाकी चीजें तो मिल गईं, लेकिन उनका फोन नहीं मिला. मेरी बेटी उस मोबाइल के लिए परेशान है, क्योंकि उसमें मां के साथ उसकी बहुत सी यादें हैं. जिसे हमने प्यार से संजोया था. मैंने कई बार फोन किया वह स्विच ऑफ आ रहा है. मुझे बेटी चिंता है, फोन न मिलने की वजह से मैं बहुत लाचार महसूस कर रहा हूं.
हृतीक्षा बार-बार फोन उस फोन को पाने के लिए जिद कर रही है. रोकर उसका बुरा हाल है, वह कहती है उसमें मां की बहुत तस्वाीरें हैं जो मुझे चाहिए. हमने प्रभा को 15 मई को फोन किया तो फोन बंद आया, अगली सुबह अस्पताल से कॉल आया कि वह नहीं रही. हमने जब फोन का पूछा तो बताया गया कि वह खो गया है. सोशल मीडिया के एक ट्वीट से पता चला है कि कक्षा 4 में पढ़ने वाली हृतीक्षा को एक मोबाइल दिया गया है, लेकिन वह उस खोए हुए फोन के इंतजार में हैं जिसमें उसकी मां की के साथ तस्वीरें हैं. इस बच्ची के लिए भला दुनिया का कोई भी महंगा से महंगा फोन भी मां के मोबाइल की जगह ले सकता है?
क्या इलाज के लिए अस्पताल जाकर लोग अनाथ हो जाते हैं
इस खबर पर लोग पूछ रहे अस्पताल में फोन कैसे चोरी हो गया. इस बच्ची के अलावा भी ना जाने कितने लोगों के साथ ऐसी घटनाएं हुई होंगी. क्या आपको पता है जब लोग कोरोना के इलाज के लिए अस्पताल जा रहे हैं तो उनके साथ क्या हो रहा है. बड़ी मुश्किल से तो मरीज को बेड मिलता है. परिजन बेचारे अस्पताल के बाहर चक्कर लगाते रहते हैं. अगर आप नॉर्मल दिनों में किसी अस्पताल गए होंगे तो आपको दिखा होगा कि कैसे बीएचयू और एम्स के बाहर मरीज और परिजन मेला लगाए रहते हैं. वहीं बनाते हैं वहीं खाते हैं और वहीं सो जाते हैं. तो सोचिए इस कोरोना काल में लोगों का क्या हाल हो रहा होगा. कई बार ऐसी खबरें आई हैं कि पिती की मौत हो चुकी है और बेटा दवाइयां और जूस अस्पताल में अंदर भेजता रहा.
अभी एक वीडियो वायरल हुई थी जिसमें व्हील चेयर पर बैठी मां रो-रोकर कह रही थी कि बेटा मेरा पहलवान था, कल रात तो एकदम सही था. अस्पताल वालों ने ख्याल नहीं रखा और उसकी मौत हो गई. एक महिला ने अस्पताल में छेड़खानी का आरोप लगाया था. कई बार अस्पतालों पर लापरवाही की बात सामने आई है. जिसमें से एक लापरवाही इस फोन के चोरी होने का भी है. एक बार तो परिजन को अंतिम संस्कार के लिए गलत शव ही दे दिया था.
आपदा को अवसर समझने वालों में ऐसे भी सामने आए जो नकली दवाइयां बेच रहे थे, कोरोना की फेक रिपोर्ट बना रहे थे. जो शवों से कफन चुराकर बेच रहे थे, जो कोरोना जांच में इस्तेमाल हुई स्टिक को दोबारा जांच के लिए इस्तेमाल कर रहे थे. एक बार जब मरीज अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हो जा रहा है तो उसे पूछने वाला कौन हैं. कभी ऑक्सीजन की कमी से जानें गईं तो कभी लापरवाही से.
हम यह नहीं कहते हैं कि सभी अस्पताल ऐसे हैं, सभी डॉक्टर ऐसे हैं लेकिन जो हैं उनका क्या किया जा सकता है. कई बच्चों के माता-पिता की कोरोना से मौत हो गई, अब वे बच्चे कहां जाएंगे. कोई गोद ले ले तो ठीक है वरना शेल्टर होम. कोई उनकी देखभाल की जिम्मेदारी लेगा तो उसे सरकार की तरफ से हर महीने 2 हजार रुपए 18 साल तक मिलेंगे.
कोरोना की वजह से हो रही मौतों का आंकड़ा रोकने के लिए तो कोशिश जारी है, लेकिन आपदा में अवसर तलाश कर ऐसे हालात पैदा करने वालों के लिए राहत इंदौरी की ये लाइन सटीक बैठती है. 'लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है'.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.