बचपन में घंटों बैठकर खुद को शीशे में निहारने वाली लड़की अब 5 मिनट में तैयार होने लगी है. शायद ये मजबूरी भी है और समय की जरूरत भी. जिंदगी बहुत तेज भाग रही है बिल्कुल वैसे ही जैसे रात को ट्रेन भागती है. किताबों की दुनिया उसके ख्वाबों में तो है लेकिन जिंदगी में नहीं. हां, शायद किसी को पता नहीं कि उसे पढ़ने का कितना शौक है लेकिन दूसरों से थोड़ा अलग. वह पढ़ती है पुराने जमाने के लिखे शायरों की शायरी, कविता, कहानियां और गजल.
कॉलेज के दिनों में उसने अपने लिए लिखना भी शुरु किया था लेकिन नौकरी लगने के साथ ही वह उन कविता, नज्मों और शायरी को कहीं भूल गई. वो अभी भी लिखती है लेकिन अपने ख्यालों में, हकीकत में नहीं. जिसे गाने का शौक था वो अब गुनगुनाना भी भूल गई है, जिसे कभी खुलकर नाचना था उसके पैर अब थिरकते भी नहीं. वह सुबह न्यूजपेपर तो बालकनी से उठकार टेबल पर रख देती है लेकिन शायद ही कभी पलटती है. हां क्या पता घर से सबके जाने के बाद या फिर रात को सोने से पहले एक बार देख लेती हो.
उसे सुबह कानों में ईयरफोंस लगाकर टहलना पसंद था पर अब वह उठते से ही रसोई में भाग जाती हैं. सुबह उठते ही उसे याद आती है बच्चे की स्कूल बस की, पति के लंच बॉक्स की और ऐसे उन सभी 10 कामों की जिनमें उसके नाम की लिस्ट एक भी नहीं. कॉलेज के दिनों में उसके टिप-टॉप और करीने से सजे बालों की चर्चा होती थी. उसे सजने सवरने का इतना शौक था कि शायद ही कोई फैशन ट्रेंड छूटा हो. लेकिन अब वह पार्लर तभी जाती है जब घर में किसी की शादी हो. घरेलू नुस्खें वह दूसरों को तो बता देती है लेकिन अपने पर लागू करना उसे समय की बर्बादी लगती है.
कॉलेज के दिनों में वो टॉपर तो नहीं थी लेकिन होनहार इतनी...
बचपन में घंटों बैठकर खुद को शीशे में निहारने वाली लड़की अब 5 मिनट में तैयार होने लगी है. शायद ये मजबूरी भी है और समय की जरूरत भी. जिंदगी बहुत तेज भाग रही है बिल्कुल वैसे ही जैसे रात को ट्रेन भागती है. किताबों की दुनिया उसके ख्वाबों में तो है लेकिन जिंदगी में नहीं. हां, शायद किसी को पता नहीं कि उसे पढ़ने का कितना शौक है लेकिन दूसरों से थोड़ा अलग. वह पढ़ती है पुराने जमाने के लिखे शायरों की शायरी, कविता, कहानियां और गजल.
कॉलेज के दिनों में उसने अपने लिए लिखना भी शुरु किया था लेकिन नौकरी लगने के साथ ही वह उन कविता, नज्मों और शायरी को कहीं भूल गई. वो अभी भी लिखती है लेकिन अपने ख्यालों में, हकीकत में नहीं. जिसे गाने का शौक था वो अब गुनगुनाना भी भूल गई है, जिसे कभी खुलकर नाचना था उसके पैर अब थिरकते भी नहीं. वह सुबह न्यूजपेपर तो बालकनी से उठकार टेबल पर रख देती है लेकिन शायद ही कभी पलटती है. हां क्या पता घर से सबके जाने के बाद या फिर रात को सोने से पहले एक बार देख लेती हो.
उसे सुबह कानों में ईयरफोंस लगाकर टहलना पसंद था पर अब वह उठते से ही रसोई में भाग जाती हैं. सुबह उठते ही उसे याद आती है बच्चे की स्कूल बस की, पति के लंच बॉक्स की और ऐसे उन सभी 10 कामों की जिनमें उसके नाम की लिस्ट एक भी नहीं. कॉलेज के दिनों में उसके टिप-टॉप और करीने से सजे बालों की चर्चा होती थी. उसे सजने सवरने का इतना शौक था कि शायद ही कोई फैशन ट्रेंड छूटा हो. लेकिन अब वह पार्लर तभी जाती है जब घर में किसी की शादी हो. घरेलू नुस्खें वह दूसरों को तो बता देती है लेकिन अपने पर लागू करना उसे समय की बर्बादी लगती है.
कॉलेज के दिनों में वो टॉपर तो नहीं थी लेकिन होनहार इतनी थी कि कुछ तो कर ही लेती, उसे प्रोफेसर बनना था लेकिन शादी होते ही जैसे उसकी दुनिया बदल सी गई है. ऐसा भी नहीं है कि उसे वहां किसी बात की दिक्कत हो या फिर कमी हो लेकिन वो अब उसे भूल सी गई है जो कभी हुआ करती थी. कभी-कभी याद आती है उसे खुद की, उसने अपना पार्लर खेलने का सोचा था पर खुद से बहाने बना लेती है कि अब कहां संभव है? क्योंकि याद आती हैं उसे वो बातें जो उसके कानों में शादी के समय से ही गूंजने लगी थीं. उसे तो बूटीक खोलना था लेकिन वो सो कॉल्ड लोग क्या सोचेंगे कि उनकी फलाना ढिमकाना 10 हजार के लिए नौकरी करती है, हमारे घर में कौन सी कमी है भला. अगर घर की बहू डांस करेगी, गाना गाएगी, जींस टॉप पहनेगी तो हमारी इज्जत का क्या होगा. बाहर जाएगी 10 लोगों से मिलेगी दोस्ती करेगी सो अलग...
तो अब लड़कियों, हां तुम सबसे पहले एक लड़की हो शादी हुई हो या नहीं. ये दुनिया तुम्हारी है और तुम वो सब कर सकती हो जो कभी करना चाहती थी. कुछ भी अगले जन्म को लिए बचा कर मत रखो या फिर अपने सपने को अपनी बेटी पर थोपने का मत सोचो...तुम थी, तुम हो और तुम रहोगी. तुमसे ही यह दुनिया है. तुम्हारी हंसी से सूरज की चमक बढ़ती है. तुम बारिश की बूंद भी हो और समुंदर भी. ख्याली पुलाव बहुत बना लिया अब सच में उसे चखो, देखना स्वाद लाजवाब ही होगा...तुम्हें देवी बनने की जरूरत नहीं हो तुम लड़ाकू बने, ज़िद्दी और अड़ियल भी ताकि दुनिया को तुम्हारे होने का एहसास हो...
पति की वो बात याद करो जब उसने कहा था कि तुम करती क्या हो...हिसाब तो तुम्हें भी याद होगा जो उसने कभी ना कभी गिनवाया होगा 1000 की साड़ी तो 8000 झुमके या 1500 रेस्ट्रों का बिल और मूवी के टिकट के पैसे. हां पता है तुम पति के लिए क्या करती हो ये तुम उसे कभी बता नहीं पाओंगी...तो उठो अपने लिए और अपनी जैसी उन तमाम लड़कियों के लिए जो तुम्हें जानती हैं.
तुम अपना श्रृगांर करो किसी और के लिए नहीं बल्कि अपने लिए, क्योंकि तुम सुंदर हो, हां तुम हर तरफ से खूबसूरत हो...तुम आत्मनिर्भर बनो, शौक पूरे करो, शॉपिंग करो, पार्लर जाओ या फिर सोलो ट्रैवेल. ओह अब उन लोगों को छोड़ भी दो जिनका काम ही होता है दूसरों को जज करना...तुम किसी और सी नहीं बल्कि जैसी हो वैसी ही बनो. ये दुनिया तुम्हारी है और ये जिंदगी भी. चलो अब लौट के आ जाओ, क्योंकि इस बार लेट नाइट तुम किसी और का नहीं बल्कि अपना इंतजार कर रही हो...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.