धर्म के नाम पर भारत में पिछले कुछ समय से काफी बहस हो रही है. पहला मामला Zaira wasim का है और दूसरा नुसरत जहां का. मामले भले ही अलग-अलग हों लेकन केंद्र में धर्म ही है.
जायरा वसीम को हम दंगल गर्ल के रूप में जानते हैं जिन्हें दुनिया ने हरियाण जैसे राज्य की पिछड़ी सोच को पटखनी देते हुए देखा था. उस फिल्म के बाद समाज के हर वर्ग से ये आवाज आई थी कि 'म्हारी छोरियां छोरों से कम है के'. बात बड़ी सामान्य है कि दंगल के जरिए जायरा वसीम ने समाज को कहीं न कहीं बदलने की कोशिश की थी. लेकिन अचानक जायरा ने सोशल मीडिया के जरिए ये कहा कि वो इस्लाम के बताए रास्ते पर चलने के लिए फिल्म इंडस्ट्री छोड़ रही हैं. जायरा का बॉलीवुड छोड़ना बड़ी खबर इसलिए बन गया क्योंकि उन्होंने इसकी वजह अपना धर्म बताया था.
अब बात नुसरत जहां की. नुसरत जहां बंगाली फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर हिरोइन हैं. नुसरत ने इस बार के आम चुनावों में बशीरहाट लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतीं. संसद में शपथ लेने से पहले ही नुसरत ने एक हिंदू बिजनेसमैन निखिल जैन से शादी की. शादी के बाद वो संसद में हिंदू बहू के रूप में पहुंचीं. मेहंदी, चूड़ियां, साड़ी और सिंदूर ही काफी थे बहस के लिए उसपर उन्होंने वंदे मातरम भी कह दिया. तभी से उनपर विवाद हो रहा है. यहां तक कि उनके खिलाफ एक हिंदू से शादी करने और वंदे मातरम बोलने के खिलाफ फतवा तक जारी कर दिया गया.
ये दोनों ही मामले आजकल चर्चित हैं और अलग होते हुए भी दोनों एक ही तरह से लयबद्ध हैं. और जिन कारणों से ये आपस में जुड़े हुए हैं वो बताते हैं कि इनपर बहस आसानी से खत्म होने वाली नहीं है.
धर्म
मामला चाहे जायरा वसीम का हो...
धर्म के नाम पर भारत में पिछले कुछ समय से काफी बहस हो रही है. पहला मामला Zaira wasim का है और दूसरा नुसरत जहां का. मामले भले ही अलग-अलग हों लेकन केंद्र में धर्म ही है.
जायरा वसीम को हम दंगल गर्ल के रूप में जानते हैं जिन्हें दुनिया ने हरियाण जैसे राज्य की पिछड़ी सोच को पटखनी देते हुए देखा था. उस फिल्म के बाद समाज के हर वर्ग से ये आवाज आई थी कि 'म्हारी छोरियां छोरों से कम है के'. बात बड़ी सामान्य है कि दंगल के जरिए जायरा वसीम ने समाज को कहीं न कहीं बदलने की कोशिश की थी. लेकिन अचानक जायरा ने सोशल मीडिया के जरिए ये कहा कि वो इस्लाम के बताए रास्ते पर चलने के लिए फिल्म इंडस्ट्री छोड़ रही हैं. जायरा का बॉलीवुड छोड़ना बड़ी खबर इसलिए बन गया क्योंकि उन्होंने इसकी वजह अपना धर्म बताया था.
अब बात नुसरत जहां की. नुसरत जहां बंगाली फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर हिरोइन हैं. नुसरत ने इस बार के आम चुनावों में बशीरहाट लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतीं. संसद में शपथ लेने से पहले ही नुसरत ने एक हिंदू बिजनेसमैन निखिल जैन से शादी की. शादी के बाद वो संसद में हिंदू बहू के रूप में पहुंचीं. मेहंदी, चूड़ियां, साड़ी और सिंदूर ही काफी थे बहस के लिए उसपर उन्होंने वंदे मातरम भी कह दिया. तभी से उनपर विवाद हो रहा है. यहां तक कि उनके खिलाफ एक हिंदू से शादी करने और वंदे मातरम बोलने के खिलाफ फतवा तक जारी कर दिया गया.
ये दोनों ही मामले आजकल चर्चित हैं और अलग होते हुए भी दोनों एक ही तरह से लयबद्ध हैं. और जिन कारणों से ये आपस में जुड़े हुए हैं वो बताते हैं कि इनपर बहस आसानी से खत्म होने वाली नहीं है.
धर्म
मामला चाहे जायरा वसीम का हो या नुसरत जहां का, दोनों मामलों में धर्म प्रमुख है. एक तरफ जायरा वसीम हैं जो अपने धर्म के चलते अपने बॉलीवुड के शानदार करियर की कुर्बानी दे रही हैं. वहीं नुसरत जहां हैं जिनके आगे उनका धर्म सिर्फ आस्था तक सीमित है.
जायरा कहती हैं को वो फिल्म इंडस्ट्री में काम करते वक्त अपने ईमान से भटक गई थीं और अब धर्म के साथ ही चलेंगी. यानी उनका धर्म उनके लिए इतनी अहमियत रखता है जिसके आगे उनका भविष्य और अब तक की सारी मेहनत बेकार हो गई. उनके इस फैसले पर हर तरफ बहस हो रही है. कोई जायरा के इस फैसले को निजी बता रहा है तो कोई इसे बहुत रूढ़ीवादी. वहीं नुसरत जहां वो सब कर रही हैं जिससे उनके धर्म के ठेकेदार बेहद नाराज हैं. साड़ी पहनना, सिंदूर लगाना, पूजा पाठ करना, यहां तक कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में भी शिरकत की.
उनपर आने वाले फतवों और आलोचनाओं का उन्होंने एक ही जवाब दिया- 'जो चीजें आधारहीन होती हैं, मैं उन पर ध्यान नहीं देती. मैं अपना धर्म जानती हूं. मैं जन्म से मुस्लिम हूं और आज भी मुस्लिम हूं. यह आस्था का मामला है. इसे आपको अपने अंदर से महसूस करना होता है न कि अपने दिमाग से'.
कट्टरपंथ
इन दोनों ही मामलों में कट्टरपंथ और कट्टरपंथी भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. जायरा और नुसरत दोनों के मामलों पर लोग अपनी अपनी दलीलें दे रहे हैं. जायरा के बॉलीवुड छोड़ने पर लोग इस्लाम की रूढ़ीवादी सोच पर बोल रहे हैं कि इस्लाम में लोग यही चाहते हैं कि महिलाएं बुर्के में ही रहें. और जायरा को भी धर्म के नाम पर प्रभावित किया जा रहा है. तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि भटकी हुई बच्ची सही रास्ते पर लौट आई.
नुसरत जहां जब पैंट पहनकर संसद में पहुंची थी तो उनके कपड़ों को लेकर ट्रोल करने वाले लोग उनके साड़ी पहनने से बड़े प्रभावित दिखे. वहीं चुनाव जीतकर संसद पहुंचने वाली नुसरत की जीत पर खुश होने वालों ने जब उन्हें लाल सिंदूर लगाए 'वंदे मातरम' बोलते देखा तो उनके चेहरों का रंग उड़ गए.
ये मामले अगर चिंगारी थे तो उसमें घी डालने का काम इन कट्टरपंथियों ने किया है. इसपर होने वाली बहस का श्रेय इन्हीं लोगों को जाता है जो हर जगह इसकी बुराई और अच्छाई पर बात कर रहे हैं.
सेलिब्रिटी महिला
वो मामले हमेशा सुर्खियों में रहते हैं जिनके मुख्य किरदार महिलाएं होती हैं. लेकिन ये महिला होने के साथ-साथ सेलिब्रिटी भी हैं. और जैसा कि रिवाज है सिलिब्रिटी की जिंदगी को हर कोई अखाड़ा समझता है जिसपर जब चाहे बहस की जा सकती है. उनकी निजी जिंदगी को कोई निजी नहीं रहने देता. सोशल प्लैटफॉर्म पर इनके निजी मामलों पर भी राष्ट्रीय समस्या की तरह बहस की जाती है. बात लोगों की दिलचस्पी की है- महिला और सेलिब्रिटी दोनों ही बातें लोगों को इंटरटेन करती हैं.
चर्चित राज्य
दोनों ही मामलों को हवा दी जा रही है उसके पीछे राज्य भी कम भूमिका नहीं निभाते. ये दोनों राज्य भारत के सबसे ज्यादा चर्चित और विवादित राज्य हैं. जायरा वसीम कश्मीर की रहने वाली हैं तो ये मामला सीध-सीधे कश्मीर को प्रभावित करता है. और नुसरत जहां पश्चिम बंगाल से आती हैं जो पिछले काफी समय से सुलग ही रहा है. इन दोनों ही राज्यों से जुड़ी छोटी-छोटी खबरें भी सियासी गलियारों में लंबे समय तक शोर करती हैं. इसलिए बहस है कि थम नहीं रही.
गलाकाट सियासत
इन मामलों को अगर इन महिलाओं का निजी मामला कहा जाए तो ये गलत होगा. और ये कहा जाए कि इसमें कोई राजनीति नहीं है तो और भी ज्यादा गलत. फर्क सिर्फ इतना है कि जायरा वसीम के मामले पर राजनीति हो रही है. और नुसरत जहां का मामला साफ तौर पर राजनीति से ही जुड़ा हुआ है. नुसरत जहां को फिल्मी दुनिया का चकाचौंध से खींचकर राजनीति की गंभीरता में उतारने वाली हैं तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी. जिन्होंने वोटों की खातिर वहां की बहुचर्चित अभिनेत्री को टिकट दिया. नुसरत जीती भीं और संसद पहुंचीं भी. ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों को धोने के लिए उन्हें नुसरत जहां से बेहतर भला कौन मिल सकता था. इसलिए वो उनका भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं. उनकी गैर मजहब में की गई शादी को भी सपोर्ट किया और अब पूजा आदि कर्म कांड में नुसरत के नए अवतार को भुना भी रही हैं. इससे निश्चित तौर पर वो अपने राजनीतिक हित ही तो साध रही हैं.
तो जिन मामलों में ऊपर लिखे फैक्टर घी का काम करें वो मामले यूं ही शांत नहीं होते. उनपर जमकर बहस होती है, राजनीति होती है और वो इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं. जायरा वसीम और नुसरत जहां को इन्हीं वजहों से कभी कोई भुला नहीं पाएगा.
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