उत्तर प्रदेश में इन दिनों लाउडस्पीकर से दी जाने वाली अजान सुर्खियों में है. पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति ने डीएम को पत्र लिखकर मस्जिद के लाउडस्पीकर से आने वाली अजान की आवाज पर आपत्ति दर्ज कराई थी. अब वाराणसी में बीएचयू के एक छात्र ने भी प्रशासन से इसी बाबत शिकायत की है. प्रयागराज (इलाहाबाद का परिवर्तित नाम) में आईजी केपी सिंह ने प्रदूषण एक्ट और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सख्ती से पालन करने को लेकर पत्र लिखा है. रेंज के चारों जिलों के डीएम और एसएसपी को भेजे गए इस पत्र के मुताबिक, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या अन्य किसी पब्लिक अड्रेस सिस्टम के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी रहेगी. मेरा मानना है कि लाउडस्पीकर को लेकर जो निर्देश हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के हैं, उनका पूरे देश में सख्ती से पालन होना चाहिए.
भारत में लोगों को नियम-कायदे से चलने में हमेशा से ही दिक्कत होती रही है. लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर जो निर्देश हैं, उनका पालन आसानी से हो सकता है. लेकिन, हमारे यहां एक कहावत है कि 'कुछ गुड़ ढीला और कुछ दुकानदार'. सरल शब्दों में कहें, तो लोगों के मनमाने अंदाज पर लगाम लगाने के लिए ना सरकार कोशिश करती है और ना ही प्रशासन. लोगों को तो वैसे भी छूट मिलने का मौका चाहिए. इसे देशभर में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों के उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है. लोगों ने छूट मिलते ही कोरोना को लेकर जारी किए गए प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा रखी हैं. भारत में सख्ती भी तब बरती जाती है, जब चीज बिगड़ जाए. मतलब हमारे देश में इलाज के लिए जख्म के नासूर बनने तक का इंतजार किया जाता है.
मेरा मानना है कि केंद्र और राज्य की सरकारों को...
उत्तर प्रदेश में इन दिनों लाउडस्पीकर से दी जाने वाली अजान सुर्खियों में है. पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति ने डीएम को पत्र लिखकर मस्जिद के लाउडस्पीकर से आने वाली अजान की आवाज पर आपत्ति दर्ज कराई थी. अब वाराणसी में बीएचयू के एक छात्र ने भी प्रशासन से इसी बाबत शिकायत की है. प्रयागराज (इलाहाबाद का परिवर्तित नाम) में आईजी केपी सिंह ने प्रदूषण एक्ट और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सख्ती से पालन करने को लेकर पत्र लिखा है. रेंज के चारों जिलों के डीएम और एसएसपी को भेजे गए इस पत्र के मुताबिक, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या अन्य किसी पब्लिक अड्रेस सिस्टम के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी रहेगी. मेरा मानना है कि लाउडस्पीकर को लेकर जो निर्देश हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के हैं, उनका पूरे देश में सख्ती से पालन होना चाहिए.
भारत में लोगों को नियम-कायदे से चलने में हमेशा से ही दिक्कत होती रही है. लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर जो निर्देश हैं, उनका पालन आसानी से हो सकता है. लेकिन, हमारे यहां एक कहावत है कि 'कुछ गुड़ ढीला और कुछ दुकानदार'. सरल शब्दों में कहें, तो लोगों के मनमाने अंदाज पर लगाम लगाने के लिए ना सरकार कोशिश करती है और ना ही प्रशासन. लोगों को तो वैसे भी छूट मिलने का मौका चाहिए. इसे देशभर में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों के उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है. लोगों ने छूट मिलते ही कोरोना को लेकर जारी किए गए प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा रखी हैं. भारत में सख्ती भी तब बरती जाती है, जब चीज बिगड़ जाए. मतलब हमारे देश में इलाज के लिए जख्म के नासूर बनने तक का इंतजार किया जाता है.
मेरा मानना है कि केंद्र और राज्य की सरकारों को लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर नियम कड़े कर देने चाहिए. जैसे केंद्र सरकार ने नए मोटर व्हीकल एक्ट के तहत भारी जुर्माना लगाने का नियम बनाया था. वैसा ही ध्वनि प्रदूषण को लेकर भी किया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण पर काफी गंभीर हैं. अपने समकक्ष सभी राष्ट्राध्यक्षों से बातचीत में इसे लेकर चिंता भी जताते हैं. नरेंद्र मोदी ने पहले भी कई बड़े फैसले किए हैं, तो एक इसे लेकर भी कर दें. कम से कम लोगों को एक अच्छी आदत और लग जाएगी. भारत में लोग तब तक नहीं सुधरते हैं, जब तक उनके अंदर डर न पैदा किया जाए. नए मोटर व्हीकल एक्ट की वजह से लोग अब सड़क पर हेलमेट लगाए दिखने लगे हैं. इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अगर लाउडस्पीकर के मामले में भी कुछ ऐसे ही नियम बना दिए जाएं, तो लोगों में कुछ सुधार आ ही जाएगा. बाकी जिनकी जेब में पैसा है, वो जुर्माना भरते रहें.
धर्म को लेकर मैं थोड़ा सा व्यवहारिक और तर्क के हिसाब से बात करता हूं. धार्मिक कर्मकांडों में लाउडस्पीकर वगैरह के प्रयोग को मैं गलत मानता हूं. जब लाउडस्पीकर का ईजाद नहीं हुआ था, उस समय भी ये तमाम कर्मकांड अनवरत रूप से जारी रहते थे. तब के समय में आज की तरह लोग प्रदर्शन के मामले में श्रद्धा को ऊपर रखते थे. आज श्रद्धा को लोगों ने पीछे रख दिया है और प्रदर्शन को ज्यादा महत्व देते हैं. थोड़ा सा भी तार्किक होकर देखेंगे, तो इसे आसानी से समझ जाएंगे. हर धर्म में कुछ कुप्रथाएं होती है, जो समय के साथ खत्म होती रही हैं. बाल विवाह हो या तीन तलाक इसे सरकार ने कानून बना कर खत्म किया है. लाउडस्पीकर के इस्तेमाल में भी ऐसा ही कोई कड़ा कानून सरकार को बनाना चाहिए.
एक छोटी सी बात है कि कुछ नियम-कायदे हैं और लोगों को उसके हिसाब से चलना है. लेकिन, लोगों से यही नहीं हो पाता है. अगले महीने नवरात्र शुरू होने वाले हैं और लगभग सभी देवी मंदिरों में ऐसे ही लाउडस्पीकर का प्रयोग होगा. तब कोई शख्स आवाज उठाएगा, तो प्रशासन फिर अपना काम करेगा. लेकिन, तब कुछ लोग इसे धर्म पर हमला दिखाने की कोशिश करेंगे. संविधान से चलने वाले एक लोकतांत्रिक देश में नियमों का पालन सबसे जरूरी है. लोगों में इस समझ को पैदा करना होगा. उसके लिए अगर सरकार को कड़ाई करनी पड़े, तो भरपूर तरीके से करनी चाहिए. संत कबीर जैसे महान व्यक्तित्व के धनी भारत में हुए हैं. जिन्होंने धार्मिक कट्टरता पर कड़ा प्रहार किया है. बावजूद इसके लोग उनसे सीख न लेकर आडंबरों में फंसे रहते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.