दीवाली की तैयारियों के लिए जब बाजार का रुख किया था तो एक चीज की कमी खल रही थी. वो थी पटाखों की दुकानें, जो इस बार बाजार से नदारद दिखाई दीं. दुकानदार से पटाखों के लिए पूछा तो जवाब आया बैन हैं. मन बड़ा खुश हुआ कि चलो इस बार तो दीवाली पर सांस लेने योग्य हवा मिल पाएगी. लेकिन 8 बजे के बाद सांस के हर मरीज की ये उम्मीदें टूटती नजर आईं.
बाजार में पटाखे नहीं थे फिर भी दीवाली पर इतने पटाखे छोड़े गए कि समझ नहीं आया कि ये सब कैसे हुआ. और अगले दिन सोशल मीडिया का रुख किया तो ट्रेंड हो रहा था #CrackersWaliDiwali यानी पटाखों वाली दीवाली. जाहिर है इस हैशटैग का इस्तेमाल लोगों ने ये बताने के लिए किया कि पटाखों के जरिए ही असली दीवाली मनाई जाती है. तो बहुत से लोग ऐसे भी थे जो इस हैशटैग के जरिए ये बताने के कोशिशें कर रहे थे कि दीवाली के प्रदूषण से लोगों पर किस तरह असर होता है. साथ ही दीवाली की अगली सुबह तमाम महानगरों की हवा का क्वालिटी चेक भी इसी हैशटैग में दिखाई दे रहा था. लोग परेशान थे, क्योंकि दीवाली के बाद दिल्ली की हवा जहरीली हो गई थी.
जैसा की खबरों की हेडलाइनों में बताया जा रहा है कि दिल्ली की हवा में जहर घुल चुका है, सांस लेना मुश्किल हो रहा है और हवा की क्वालिटी 'बहुत खराब' तक पहुंच गई है. सब सच है. लेकिन हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था. और पिछले कुछ समय से प्रदूषण के हालात देखते हुए बहुत से लोग भी सिर्फ दीयों वाली दीपावली मनाने का प्रण लिए हुए थे. दिल्ली में ग्रीन दिवाली के आह्वान भी किया गया और केवल 2 घंटे (8-10 बजे) के लिए ही पटाखे फोड़ने की अनुमति थी. इसी मिले जुले प्रयास से कम से कम ये तो कहा जा...
दीवाली की तैयारियों के लिए जब बाजार का रुख किया था तो एक चीज की कमी खल रही थी. वो थी पटाखों की दुकानें, जो इस बार बाजार से नदारद दिखाई दीं. दुकानदार से पटाखों के लिए पूछा तो जवाब आया बैन हैं. मन बड़ा खुश हुआ कि चलो इस बार तो दीवाली पर सांस लेने योग्य हवा मिल पाएगी. लेकिन 8 बजे के बाद सांस के हर मरीज की ये उम्मीदें टूटती नजर आईं.
बाजार में पटाखे नहीं थे फिर भी दीवाली पर इतने पटाखे छोड़े गए कि समझ नहीं आया कि ये सब कैसे हुआ. और अगले दिन सोशल मीडिया का रुख किया तो ट्रेंड हो रहा था #CrackersWaliDiwali यानी पटाखों वाली दीवाली. जाहिर है इस हैशटैग का इस्तेमाल लोगों ने ये बताने के लिए किया कि पटाखों के जरिए ही असली दीवाली मनाई जाती है. तो बहुत से लोग ऐसे भी थे जो इस हैशटैग के जरिए ये बताने के कोशिशें कर रहे थे कि दीवाली के प्रदूषण से लोगों पर किस तरह असर होता है. साथ ही दीवाली की अगली सुबह तमाम महानगरों की हवा का क्वालिटी चेक भी इसी हैशटैग में दिखाई दे रहा था. लोग परेशान थे, क्योंकि दीवाली के बाद दिल्ली की हवा जहरीली हो गई थी.
जैसा की खबरों की हेडलाइनों में बताया जा रहा है कि दिल्ली की हवा में जहर घुल चुका है, सांस लेना मुश्किल हो रहा है और हवा की क्वालिटी 'बहुत खराब' तक पहुंच गई है. सब सच है. लेकिन हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था. और पिछले कुछ समय से प्रदूषण के हालात देखते हुए बहुत से लोग भी सिर्फ दीयों वाली दीपावली मनाने का प्रण लिए हुए थे. दिल्ली में ग्रीन दिवाली के आह्वान भी किया गया और केवल 2 घंटे (8-10 बजे) के लिए ही पटाखे फोड़ने की अनुमति थी. इसी मिले जुले प्रयास से कम से कम ये तो कहा जा सकता है कि दिल्ली की हवा भले ही बहुत खराब हो, लेकिन वो पिछले कुछ सालों से बेहतर हुई है. गनीमत इसी में समझिए.
दिल्ली में क्या है प्रदूषण का स्तर
दिवाली पर दिल्ली-एनसीआर में जलाए गए पटाखों का असर देर रात को साफ नजर आ रहा था. दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में पीएम10 और पीएम 2.5 लेवल 950 तक पहुंच गया था. रात 11 बजे दिल्ली का Air Quality Index (AQI) 327 था. लेकिन अगली सुबह AQI 306 रहा. और 306 भी 'बहुत खराब' की कैटगरी में ही आता है. लेकिन अगर पिछले 5 साल के आंकड़े देखें तो 2019 की दिवाली सबसे कम प्रदूषित रही.
- 2018 में दिल्ली का AQI 600 के पार चला गया था.
- 2017 में AQI 367 था.
- 2016 में दिल्ली का AQI 425 था.
- 2015 में दिल्ली का AQI 327 था.
- 2014 में तो WHO ने दिल्ली को प्रदूषण के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक शहर बताया था.
और 2019 में ये 306 है. यानी पिछले 5 साल के आंकड़े देखें तो आप ताजा हवा की सांस भले ही न ले पा रहे हों लेकिन राहत की सांस तो ले ही सकते हैं कि धीरे-धीरे ही सही, सुधार हो रहा है.
एक नजर AQI स्तर पर
0-50 - good यानी अच्छा
51-100- satisfactory यानी संतोषजनक
101-200- moderate यानी मध्यम
201-300- poor यानी खराब
301-400- very poor यानी बहुत खराब
401-500- severe यानी गंभीर
500 से ज्यादा- severe-plus emergency यानी बेहद खतरनाक
देखिए किस तरह मनाया गया प्रदूषण
इस बार दोष पटाखों पर क्योंकि ग्रीन पटाखे फुस्स हो गए
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था. केवल ग्रीन पटाखे यानी जिससे प्रदूषण 30 प्रतिशत कम होता है वही पटाखे मान्य थे. लेकिन आदेशों के बावजूद भी दिल्ली एनसीआर में पटाखे बदस्तूर बिक रहे थे. साथ में ग्रीन पटाखे भी थे. ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में दोगुने महंगे हैं, और ग्रीन पटाखों में सिर्फ अनार और फुलझड़ी ही मान्य हैं. बाकी रॉकेट, बम और अन्य शोर करने वाले पटाखे ग्रीन नहीं हैं, इसलिए लोगों ने सस्ता रास्ता ही चुना. बहुत सारी illegal फैक्टरियों में पटाखे बन रहे हैं और पटाखे भी बिक रहे हैं, सामने भले ही डिस्प्ले नहीं हो रहे लेकिन उपलब्ध सभी हैं.
वैसे भी आप लोगों से सिर्फ अपील कर सकते हैं कि ग्रीन दिवाली मनाइए, उन्हें पटाखे फोड़ने से रोक नहीं सकते. वरना सभी यही तर्क देते हैं कि नए साल में पूरी दुनिया पटाखे फोड़ती है तो प्रदूषण पर बात नहीं होती, लेकिन दिवाली पर एक दिन पटाखे फोड़ने से प्रदूषण हो जाता है. बिना पटाखों के दिवाली मनाना भारत में काफी मुश्किल है इसलिए इतने प्रयासों के बीच सरकार को ग्रीन पटाखों की कीमत पर और विचार करना होगा. क्योंकि हवा का खराब होना या न होना हर किसी के लिए मायने नहीं रखता जबतक कि घर में कोई सांस का मरीज न हो. इसलिए अपनी-अपनी दिवाली हर किसी को मुबारक.
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