शादियों का सीजन शुरू हो गया है और हिंदुस्तान इन दिनों हाई-प्रोफाइल शादियों की चकाचौंध से सराबोर है. एक तरफ सोनम कपूर-आनंद आहूजा, प्रियंका-निक, दीपिका रणवीर, ईशा अंबानी- आनंद पीरामल की शादी का हैंगओवर अभी उतरा नहीं है और दूसरी तरफ दिल्ली से एक ऐसी खबर आने लगी है जो शायद देश के अल्ट्रा-रिच लोगों को पसंद न आए.
हिंदुस्तान में वैसे भी बड़ी और शाही शादियों का ट्रेंड है. लोग कर्ज लेकर भी शादी में खर्च करने से बाज़ नहीं आते, लेकिन अब केजरीवाल सरकार एक ऐसा फैसला लेने के बारे में सोच रही है जो ऐसी शादियों और उनपर होने वाली बेहिसाब बर्बादी को रोका जा सके. दिल्ली सरकार एक ऐसे प्रस्ताव पर काम कर रही है जिससे शादियों में कितने मेहमान बुलाए जाने हैं उसका फैसला लिया जा सके.
यानी कितने मेहमान शादी में बुलाने हैं ये भी सरकार बताएगी-
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली चीफ सेक्रेटरी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सरकार एक ऐसी पॉलिसी पर काम कर रही है जो शादियों में आने वाले मेहमानों की संख्या तय कर सकेगी. ये फैसला इसलिए लिया जा रहा है ताकि शादियों में होने वाली खाने और पानी की बर्बादी को रोका जा सके और साथ ही साथ दिल्ली की ट्रैफिक की समस्या को भी रोका जा सके.
सरकार का तर्क है कि एक तरफ दिल्ली में लोग ट्रैफिक से परेशान हैं, एक तरफ पानी की समस्या हो रही है, एक तरफ भुखमरी से मौतें हो रही हैं और दूसरी तरफ अगर शादियों में होने वाली बर्बादी को देखें तो ये बेहद निराशाजनक है.
दिल्ली चीफ सेक्रेटरी विजय देव के अनुसार शहर में रहने वाले अमीर और गरीब दोनों के बीच बैलेंस बनाकर रखना जरूरी है. सिर्फ इतना ही नहीं पॉलिसी के अनुसार ये भी तय होगा कि शादियों में...
शादियों का सीजन शुरू हो गया है और हिंदुस्तान इन दिनों हाई-प्रोफाइल शादियों की चकाचौंध से सराबोर है. एक तरफ सोनम कपूर-आनंद आहूजा, प्रियंका-निक, दीपिका रणवीर, ईशा अंबानी- आनंद पीरामल की शादी का हैंगओवर अभी उतरा नहीं है और दूसरी तरफ दिल्ली से एक ऐसी खबर आने लगी है जो शायद देश के अल्ट्रा-रिच लोगों को पसंद न आए.
हिंदुस्तान में वैसे भी बड़ी और शाही शादियों का ट्रेंड है. लोग कर्ज लेकर भी शादी में खर्च करने से बाज़ नहीं आते, लेकिन अब केजरीवाल सरकार एक ऐसा फैसला लेने के बारे में सोच रही है जो ऐसी शादियों और उनपर होने वाली बेहिसाब बर्बादी को रोका जा सके. दिल्ली सरकार एक ऐसे प्रस्ताव पर काम कर रही है जिससे शादियों में कितने मेहमान बुलाए जाने हैं उसका फैसला लिया जा सके.
यानी कितने मेहमान शादी में बुलाने हैं ये भी सरकार बताएगी-
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली चीफ सेक्रेटरी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सरकार एक ऐसी पॉलिसी पर काम कर रही है जो शादियों में आने वाले मेहमानों की संख्या तय कर सकेगी. ये फैसला इसलिए लिया जा रहा है ताकि शादियों में होने वाली खाने और पानी की बर्बादी को रोका जा सके और साथ ही साथ दिल्ली की ट्रैफिक की समस्या को भी रोका जा सके.
सरकार का तर्क है कि एक तरफ दिल्ली में लोग ट्रैफिक से परेशान हैं, एक तरफ पानी की समस्या हो रही है, एक तरफ भुखमरी से मौतें हो रही हैं और दूसरी तरफ अगर शादियों में होने वाली बर्बादी को देखें तो ये बेहद निराशाजनक है.
दिल्ली चीफ सेक्रेटरी विजय देव के अनुसार शहर में रहने वाले अमीर और गरीब दोनों के बीच बैलेंस बनाकर रखना जरूरी है. सिर्फ इतना ही नहीं पॉलिसी के अनुसार ये भी तय होगा कि शादियों में कितना खाना मेहमानों को खिलाया जाए ताकि बर्बादी न हो, इसी के साथ NGO के साथ मिलकर ये भी बात की जाएगी कि अगर खाना बचता है तो उसका इस्तेमाल गरीबों को देकर किया जा सके.
ये पॉलिसी अगले 6 हफ्तों में बनाई जा सकती है और शहर के मोटल, फार्म हाउस, होटल आदि के रिव्यू के बाद इसे कोर्ट तक पेश किया जा सकेगा. इस पॉलिसी को बनाने की डेडलाइन 31 जनवरी तक तय की गई है.
अचानक ये फैसला क्यों?
ये फैसला अचानक नहीं लिया गया है. ये पिछले कुछ समय से चल रही समस्याओं को देखते हुए लिया गया है. ये पॉलिसी बनाने का फैसला भी कोर्ट के कारण बताओ नोटिस के बाद लिया गया है. कोर्ट ने दिल्ली सरकार से 6 दिसंबर को पूछा था कि आखिर कैसे दिल्ली के फार्महाउस 1 लाख लीटर पानी स्टोर कर सकते हैं, लेकिन दिल्ली के नागरिकों को पीने के लिए पानी भी उपलब्ध नहीं होता. साथ ही खाने की बर्बादी पर भी कोर्ट ने ही सवाल खड़े किए थे.
क्या-क्या होगा पॉलिसी में?
पॉलिसी की कुछ डिटेल्स कोर्ट के सामने पेश की गई हैं. इसमें केटरर जो ऐसे शादियों के फंक्शन में खाने का ऑर्डर लेते हैं उन्हें अलग-अलग NGO से बात करनी होगी और बचा हुआ खाना गरीबों में बांटने की व्यवस्था बनानी होगी. साथ ही ऐसी शादियों का निरीक्षण करना होगा ताकि खाने की बर्बादी न हो. इसी के साथ, पॉलिसी में गेस्ट कंट्रोल ऑर्डर भी दिया जाएगा. इसी के साथ, सरकार इस बारे में भी विचार कर रही है कि पॉलिसी का हिस्सा कुछ नए नियम भी हों जो फार्महाउस, मोटल, होटल के मालिकों पर लागू होते हों.
दिल्ली सरकार का ये फैसला जहां एक तरफ शादी के माहौल में रुकावट की तरह दिखता है वहीं दूसरी तरफ दिल्ली सरकार की ये सोच शायद हिंदुस्तान के ट्रेंड में थोड़ा बदलाव लाए. इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि यकीनन भारत में शादियों का मार्केट एक बहुत बड़ा मार्केट है और यहां आम लोग भी अपनी हैसियत से ज्यादा बढ़-चढ़कर शोबाज़ी करने की कोशिश करते हैं. ये कई लोगों की इच्छा से ज्यादा उनकी मजबूरी बन जाती है क्योंकि लोगों को अपने आस-पास के माहौल के हिसाब से अपने बेटे या बेटी की शादी करनी होती है. इसे शो-ऑफ वाली शादियां कहेंगे क्योंकि अगर कोई 10 लाख खर्च कर सकते हैं, उन्हें मजबूरी में 20 लाख की शादी करनी होती है क्योंकि लोग क्या कहेंगे वाली मानसिकता यहां भी घर कर जाती है.
ऐसे में अगर सरकार ही ऐसी शादियों पर रोक लगाएगी तो काफी हद तक इस तरह के कल्चर को रोका जा सकेगा. बर्बादी रोकने का ये तरीका शायद एक अच्छी पहल की तरह सामने आए जिसमें लोगों को वाकई ये समझ आए कि बेटी की शादी के लिए अंबानी की तरह पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है. हम साधारण तरीके से भी शादी कर सकते हैं. जो पैसा है वो उसके भविष्य के लिए लगाए जा सकते हैं.
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