दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक महिला को ऐसी सजा दी है कि वह जिंदगी भर नहीं भूलेगी. वह सबक भी सीख जाएगी और इसी बहाने वह थोड़ा नेकी का काम भी कर लेगी. असल में इस महिला पर रंगदारी और जबरन वसूली करने का आरोप था. मगर दोनों पक्षों ने कोर्ट के बाहर की आपसी समझौता कर लिया. वे आपसी विवाद को खत्म करना चाहते थे. ऐसे में उस महिला के ऊपर मुकदमा चलाने का कोई मतलब नहीं था.
कोर्ट ने मामले को देखते हुए आरोपी महिला के ऊपर चल रहे मुकदमे को इस शर्त के साथ खत्म कर दिया कि, वह दो महीने तक कक्षा 6 से 12वीं तक ही कम से कम 100 स्कूली छात्राओं को मुफ्त में सेनेटरी पैड बांटेगी. वहीं कोर्ट ने शिकायतकर्ता वकील को डीएचसीएलएससी के कार्यालय में रिपोर्ट करने और तीन महीने तक अपनी क्षमता के अनुसार जनहित में मुफ्त में काम करने का आदेश दिया.
जी हां कोर्ट में जब यह बात गई तो न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा, ‘‘हालांकि, मेरा विचार है कि पुलिस और न्यायपालिका का काफी समय बर्बाद हो चुका है. दोनों पक्षों की वजह से इस मामले में पुलिस तंत्र का काफी समयखराब हुआ है, इस समय का इस्तेमाल महत्वपूर्ण मामलों में किया जा सकता था."
इस तरह कोर्ट ने दोनों को सजा भी दे दी और समाज में जागरूकता फैलाने का भी काम कर दिया कि छात्राओं के लिए पैड कितना जरूरी है. ऐसा करने से आरोपी और शिकायकर्ता का दिमाग भी ठिकाने आ जाएगा और छात्राओं को मुफ्त में पैड भी मिल जाएगा. कोर्ट के इस फैसले की तारीफ तो बनती है. महिला ने आदेश का पालन किया है या नहीं इसके लिए जांच अधिकारी को अप्रैल 2023 में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया है. आरोपी और शिकायतकर्ता को चार सप्ताह के भीतर कोर्ट के इस आदेश का पालन करना...
दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक महिला को ऐसी सजा दी है कि वह जिंदगी भर नहीं भूलेगी. वह सबक भी सीख जाएगी और इसी बहाने वह थोड़ा नेकी का काम भी कर लेगी. असल में इस महिला पर रंगदारी और जबरन वसूली करने का आरोप था. मगर दोनों पक्षों ने कोर्ट के बाहर की आपसी समझौता कर लिया. वे आपसी विवाद को खत्म करना चाहते थे. ऐसे में उस महिला के ऊपर मुकदमा चलाने का कोई मतलब नहीं था.
कोर्ट ने मामले को देखते हुए आरोपी महिला के ऊपर चल रहे मुकदमे को इस शर्त के साथ खत्म कर दिया कि, वह दो महीने तक कक्षा 6 से 12वीं तक ही कम से कम 100 स्कूली छात्राओं को मुफ्त में सेनेटरी पैड बांटेगी. वहीं कोर्ट ने शिकायतकर्ता वकील को डीएचसीएलएससी के कार्यालय में रिपोर्ट करने और तीन महीने तक अपनी क्षमता के अनुसार जनहित में मुफ्त में काम करने का आदेश दिया.
जी हां कोर्ट में जब यह बात गई तो न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा, ‘‘हालांकि, मेरा विचार है कि पुलिस और न्यायपालिका का काफी समय बर्बाद हो चुका है. दोनों पक्षों की वजह से इस मामले में पुलिस तंत्र का काफी समयखराब हुआ है, इस समय का इस्तेमाल महत्वपूर्ण मामलों में किया जा सकता था."
इस तरह कोर्ट ने दोनों को सजा भी दे दी और समाज में जागरूकता फैलाने का भी काम कर दिया कि छात्राओं के लिए पैड कितना जरूरी है. ऐसा करने से आरोपी और शिकायकर्ता का दिमाग भी ठिकाने आ जाएगा और छात्राओं को मुफ्त में पैड भी मिल जाएगा. कोर्ट के इस फैसले की तारीफ तो बनती है. महिला ने आदेश का पालन किया है या नहीं इसके लिए जांच अधिकारी को अप्रैल 2023 में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया है. आरोपी और शिकायतकर्ता को चार सप्ताह के भीतर कोर्ट के इस आदेश का पालन करना है.
अक्सर देखने में आता है कि कोर्ट में केस चलने के दौरान शिकायत कर्ता और पीड़ित पक्ष आपस में समझौता कर लेते हैं. ऐसे लोगों के लिए कोर्ट ने एक बड़ा सबक दिया है. अब जब समझौता ही करना है तो कोर्ट का समय क्यों खराब करना?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.