मैं राजीव चौक मेट्रो (Rajiv Chowk Metro) से निकलकर कॉरिडोर पार करके ऊपर धरती की तरफ जा ही रहा था कि तीन-चार लड़कियों के बीच एक कूल डूड बलखाता जा रहा था. हंस-हंस के, इधर-उधर डगरते हुए, पेप्सी पीते-पीते नशे की एक्टिंग करते कुछ ऐसे किस्से सुना रहा था कि लड़कियां ठठा कर हंस रही थीं. कॉरिडोर की एग्जिट से पहले एक बोरियों से बने कवर के पीछे CISF जवान उसकी या पेप्सी की ओर देख रहा था. लड़कियां जो हंस रही थीं, उनकी हंसी में और इज़ाफ़ा करने के लिए कूल डूड ने कार्नर में खड़े CISF जवान की एके 47 राइफल की नली पकड़ ली और बोला 'असली तो है न?' लड़कियां पेट पकड़ हंस पड़ीं. मेरे काटो ख़ून नहीं. मैं उस तरफ बढ़ा. जवान ने तुरंत हड़काया, 'पीछे हट, खेलने की चीज़ है ये? क्या समझ रखा है?'
कूल डूड ने कहा 'चिल ब्रो, मैं तो बस मज़ाक कर रहा था.' जवान ने मज़ाक करने वाले को पकड़कर अपनी तरफ करना चाहा तो वो छिटक के लड़कियों के पास चला गया. लड़कियां एक स्वर में शुरू हो गयीं 'अरे! अरे आप ऐसे नहीं पकड़ सकते, मज़ाक... अरे नहीं नहीं मज़ाक कर रहा, अच्छा we are sorry, अच्छा रहने दीजिए. नहीं. नहीं आप ऐसे चिल्ला नहीं सकते, ह्यूमन राइट्स भी कोई चीज़ होती है you know that'
लड़कियों का इंटरेक्ट होना और एक साथ रोने-चिल्लाने लगना जवान को ज़रा असहज कर गया. वो चुप हो गया. सिविलियन्स से उसका वैसे भी कम ही पाला पड़ता है, सारा दिन एक पोजीशन में खड़े रहना ही तो ड्यूटी है उनकी. डूड अब दिखा-दिखा के पेप्सी खींचने में लगा था. जवान चुप उसे देख रहा था.
मुझे अचानक म्यांमार याद आया. 2015 की बात थी। लेफ्टिनेंट कर्नल ऑस्कर डेल्टा के जवान 40 किलोमीटर से पैदल चढ़ रहे थे. हर एक की पीठ पर 40 किलो...
मैं राजीव चौक मेट्रो (Rajiv Chowk Metro) से निकलकर कॉरिडोर पार करके ऊपर धरती की तरफ जा ही रहा था कि तीन-चार लड़कियों के बीच एक कूल डूड बलखाता जा रहा था. हंस-हंस के, इधर-उधर डगरते हुए, पेप्सी पीते-पीते नशे की एक्टिंग करते कुछ ऐसे किस्से सुना रहा था कि लड़कियां ठठा कर हंस रही थीं. कॉरिडोर की एग्जिट से पहले एक बोरियों से बने कवर के पीछे CISF जवान उसकी या पेप्सी की ओर देख रहा था. लड़कियां जो हंस रही थीं, उनकी हंसी में और इज़ाफ़ा करने के लिए कूल डूड ने कार्नर में खड़े CISF जवान की एके 47 राइफल की नली पकड़ ली और बोला 'असली तो है न?' लड़कियां पेट पकड़ हंस पड़ीं. मेरे काटो ख़ून नहीं. मैं उस तरफ बढ़ा. जवान ने तुरंत हड़काया, 'पीछे हट, खेलने की चीज़ है ये? क्या समझ रखा है?'
कूल डूड ने कहा 'चिल ब्रो, मैं तो बस मज़ाक कर रहा था.' जवान ने मज़ाक करने वाले को पकड़कर अपनी तरफ करना चाहा तो वो छिटक के लड़कियों के पास चला गया. लड़कियां एक स्वर में शुरू हो गयीं 'अरे! अरे आप ऐसे नहीं पकड़ सकते, मज़ाक... अरे नहीं नहीं मज़ाक कर रहा, अच्छा we are sorry, अच्छा रहने दीजिए. नहीं. नहीं आप ऐसे चिल्ला नहीं सकते, ह्यूमन राइट्स भी कोई चीज़ होती है you know that'
लड़कियों का इंटरेक्ट होना और एक साथ रोने-चिल्लाने लगना जवान को ज़रा असहज कर गया. वो चुप हो गया. सिविलियन्स से उसका वैसे भी कम ही पाला पड़ता है, सारा दिन एक पोजीशन में खड़े रहना ही तो ड्यूटी है उनकी. डूड अब दिखा-दिखा के पेप्सी खींचने में लगा था. जवान चुप उसे देख रहा था.
मुझे अचानक म्यांमार याद आया. 2015 की बात थी। लेफ्टिनेंट कर्नल ऑस्कर डेल्टा के जवान 40 किलोमीटर से पैदल चढ़ रहे थे. हर एक की पीठ पर 40 किलो वजन था और क्योंकि वो पैरा स्पेशल के जवान थे, तो उन्होंने बंदूक को कंधे पर डालकर चलना नहीं सीखा था. दो रातों से वो सोए नहीं थे. नाम मात्र का पानी बचा था जो इमरजेंसी के लिए रखा था. लेफ्टिनेंट कर्नल डेल्टा ने मज़ाक किया 'जल्दी-जल्दी मिशन ख़त्म करो तो उन्हीं के घर से पानी पिएं.'
पर इस मज़ाक के पीछे का सच भी लेफ्टिनेंट कर्नल जानते थे कि जवान को फाइनल कॉम्बैट से पहले इतना थक गए तो मिशन गड़बड़ हो जायेगा. लगातार दूसरा दिन था जो ये सब सोए नहीं थे. रात पोजीशन ली तो सामने से अंधाधुन गोलियां भी चलने लगीं तो भी वो 64 (शायद) कमांडो हिले नहीं. सारी रात जड़ रहने के बाद सुबह होने से ज़रा पहले, जब सौ से ऊपर अलगाववादी नाश्ता कर रहे थे, 40 SF कमांडोज मौत बनकर उनपर टूट पड़े. वहीं 24 जवान एक बैकअप की तरह स्नाइपर राइफल लिए तने रहे.
सोचिए, अपने मुल्क से कई किलोमीटर दूर, पराए देश में, रात अंधेरे में, सौ सवा-सौ अलगाववादियों के तीन लॉन्चपैड्स पर धावा बोलने आए एस-एफ कमांडोज़, जो 72 घण्टे से सोए नहीं, 12 घण्टे से प्यासे हैं और रात में पूड़ी और चटनी खाकर गुज़ारा किया है. पर उनके अंदर डर का एक कतरा भी नहीं है. सुबह होने से ज़रा पहले एक रॉकेट चला जिसने 6 पहरेदारों के परखच्चे उड़ा दिए. इसके बाद मौत का वो तांडव हुआ कि 25 मिनट तक अलगाववादी समझ ही न सके करना क्या है, फिर जब उनकी तरफ से भी फायरिंग हुई तब हमारे स्नाइपर्स ने उन्हें अच्छा सबक सिखा दिया.
चारों तरफ आग, राख और लाशें छोड़कर लेफ्टिनेंट कर्नल ने बिना समय नष्ट किए तुरंत सबको लौटने का हुक्म दिया. अगली दोपहर 3 बजे तक वो जवान पैदल चलते भूखे, प्यासे, थके हुए मणिपुर पहुँचे पर जीत की ख़ुशी से उनके चेहरे पर अलग ही रौनक थी.
कमांडर डेल्टा ने एक दुकान से अपने कमांडोज़ के लिए बीयर ख़रीदी. जब उन्होंने बीयर का लेबल पढ़ा तो सबकी हंसी छूट गयी. बीयर म्यामांर की थी. मुझे अच्छी तरह पता है कि CISF और Para SF में बहुत फ़र्क़ है. पर क्या इस बात से इनके जवानों का मज़ाक बनाना जायज़ हो जाता है?
मेट्रो पे खड़ा जवान तो जाने कितने सालों से एक टांग पर ड्यूटी कर रहा है और इसे हर वक़्त चौकन्ना रहना है, क्योंकि ख़ुदा न खास्ता कभी कोई हमला 7 नंबर गेट से हुआ तो जवाब देने का पहला जिम्मा इस जवान का होगा. मैं उस अकेले चुप खड़े जवान के पास गया और कहा, 'आप बिलकुल सही हैं. इनको ऐसे न जाने दीजिए, सबकी आईडी जांच कीजिए.' जवान को बात सही लगी.
वो चारों-पांचों बाहर निकलने को थे कि उस जवान ने आवाज़ लगाकर उन्हें रोका. फिर wireless पर बात की, इस बीच लड़कियां आई हल्ला मचाने कि 'आप ऐसा नहीं कर सकते, हमारे पास टाइम नहीं है, हम आईडी नहीं दिखायेंगे' पर मैं भी वहीं खड़ा रहा, उनसे नहीं पर जवान से कहता रहा कि 'बिना जांचे जाने न दीजिए, क्या पता कौन हो.'
2 ही मिनट में कुछ और जवान आए और उनसे आईडी की फोटो ली. वो लड़का मुझे घूरता रहा, चिल्लाता रहा कि मेरा समय बर्बाद कर दिया.
सब जानते थे कि वो आम सिविलियन हैं, पर ये हरक़त इसलिए ज़रूरी थी कि उन्हें याद रहे कि किसी भी सुरक्षा कर्मी से मज़ाक नहीं करना है, उसके हथियार नहीं छूने हैं और उन्हें चिढ़ा के पेप्सी तो नहीं ही पीनी है. अब जब मुझे आज तक याद है, तो वो भला क्या भूले होंगे. किसी कारण आप रिस्पेक्ट करने से छोटे होते हैं तो डिसरिस्पेक्ट करके बड़े कूल बनने की कोशिश भी न कीजिए.
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