8 जुलाई को दिल्ली (Delhi) के रघुबीर नगर (Raghubir Nagar) में परचून की दुकान पर खड़े एक आदमी को तीन 'नाबालिगों' ने चाकुओं से गोदगोदकर मार डाला. लोग निकलते बढ़ते देखते रहे, पर किसी ने भी रोकने की न हिम्मत की, न ही मौके पर पुलिस को बुलाया. लड़के तीनों पकड़े गए फिर जब उन्होंने वजह बताई तो पुलिस वालों के भी कान सुन्न हो गए. मुख्य आरोपी ने बताया कि मरने वाले ने उसे बाइक स्टंट करने पर डांटा था. उसको टोका था कि ऐसे तेज़ मत चलाओ किसी के चोट लग जायेगी. इस बात को 17 साल का वो बच्चा ईगो (Ego) पर ले गया, अपने दो दोस्त इकट्ठे किए और उसे चाकुओं से गोदकर मार डाला. ईगो ऐसी चीज़ है जो अब उम्र देखकर नहीं आ रही, एक वक़्त ऊंची जाति के लोग, फौज से रिटायर हुए बुड्ढे, बहुत रहीस आदमी ही ईगो दिखाते नज़र आते थे. अब ईगो इतना सस्ता हो गया है कि बच्चे भी बात-बात पे चाकू तमंचा निकाल लेते हैं.
लेकिन मैं फिर भी कहता हूं कि ईगो बुरा नहीं है. जब भी कोई ग़लती पर टोके, कोई लड़की चाहत के अनुसारवबात करने से मना कर दे, मां-बाप नंबर कम आने या दोस्तों के साथ आवारागर्दी करने पर लाताड़ें या जब पड़ोसी पहली बार सिगरेट पीने के लिए टोक दें तब ईगो पर लेना अच्छा है. बल्कि कोई भी फन्ने खां बना नीचा दिखाने की कोशिश करे तो ईगो पे लेना जरूरी है.
लेकिन ईगो पर लेने के बाद, तुम्हारे अहम पर लगी ये जो चोट है, इसे तुम कैसे भरोगे ये समझना ज़रूरी है. मैं चाहता हूं कि तुम बॉस की बेतुकी बात सुनने के बाद, नौकरी छोड़ ख़ुद की पहचान बनाने में जुट जाओ, लेकिन उसे दिखाने के लिए नहीं, ख़ुद को जताने के लिए ताकि आइन्दा किसी की टोकने की हिम्मत न पड़े.
मैं चाहता हूं कि जब घरवाले तुम्हें लताड़ें तब तुम अपने...
8 जुलाई को दिल्ली (Delhi) के रघुबीर नगर (Raghubir Nagar) में परचून की दुकान पर खड़े एक आदमी को तीन 'नाबालिगों' ने चाकुओं से गोदगोदकर मार डाला. लोग निकलते बढ़ते देखते रहे, पर किसी ने भी रोकने की न हिम्मत की, न ही मौके पर पुलिस को बुलाया. लड़के तीनों पकड़े गए फिर जब उन्होंने वजह बताई तो पुलिस वालों के भी कान सुन्न हो गए. मुख्य आरोपी ने बताया कि मरने वाले ने उसे बाइक स्टंट करने पर डांटा था. उसको टोका था कि ऐसे तेज़ मत चलाओ किसी के चोट लग जायेगी. इस बात को 17 साल का वो बच्चा ईगो (Ego) पर ले गया, अपने दो दोस्त इकट्ठे किए और उसे चाकुओं से गोदकर मार डाला. ईगो ऐसी चीज़ है जो अब उम्र देखकर नहीं आ रही, एक वक़्त ऊंची जाति के लोग, फौज से रिटायर हुए बुड्ढे, बहुत रहीस आदमी ही ईगो दिखाते नज़र आते थे. अब ईगो इतना सस्ता हो गया है कि बच्चे भी बात-बात पे चाकू तमंचा निकाल लेते हैं.
लेकिन मैं फिर भी कहता हूं कि ईगो बुरा नहीं है. जब भी कोई ग़लती पर टोके, कोई लड़की चाहत के अनुसारवबात करने से मना कर दे, मां-बाप नंबर कम आने या दोस्तों के साथ आवारागर्दी करने पर लाताड़ें या जब पड़ोसी पहली बार सिगरेट पीने के लिए टोक दें तब ईगो पर लेना अच्छा है. बल्कि कोई भी फन्ने खां बना नीचा दिखाने की कोशिश करे तो ईगो पे लेना जरूरी है.
लेकिन ईगो पर लेने के बाद, तुम्हारे अहम पर लगी ये जो चोट है, इसे तुम कैसे भरोगे ये समझना ज़रूरी है. मैं चाहता हूं कि तुम बॉस की बेतुकी बात सुनने के बाद, नौकरी छोड़ ख़ुद की पहचान बनाने में जुट जाओ, लेकिन उसे दिखाने के लिए नहीं, ख़ुद को जताने के लिए ताकि आइन्दा किसी की टोकने की हिम्मत न पड़े.
मैं चाहता हूं कि जब घरवाले तुम्हें लताड़ें तब तुम अपने अहम की चोट को उस कृत्य को कभी न करने की क़सम खाने से भरो. प्रण कर लो कि अब आवारागर्दी नहीं करोगे. हड़ जाओ कि तुम्हें पढ़ना है, तुम्हें मां -बाप की बात जो कहती है कि तुम ‘आवारा बदमाश बनोगे’ ग़लत साबित करना है.
जब कोई लड़की तुम्हें बात करने, मुंह दिखाने से मना करे, तब ले जाओ ईगो पर और ख़ुद को लायक बनाने में जुट जाओ प्यारे, तुम कर सकते थे हमेशा से, तुम कर सकते हो आज भी, तुम्हें बहाना दे रही है वो कुछ कर दिखाने का, पर उसे नहीं, ख़ुद को दिखाने का कि तुमसे लोग बात करने को तरसें, तुम्हें दुत्कारने की ज़ुर्रत न करें.
पड़ोसी के सिगरेट के लिए टोकने पर मत पियो सिगरेट, ढीट हो जाओ. डेढ़ महीने बाद आंख में आंख डालकर बोलो उससे, अंकल आपके कहने के बाद से आज तक नहीं पी, अच्छा हुआ आपने टोका, फिर देखो उसके चेहरे का गर्व, फिर देखो वो ख़ुद कैसे तुम्हें दस के सामने बताता है कि ‘लड़का बहुत अच्छा है, एक बार में बात सुनता है.’
इस देश के हर नागरिक को अपने ईगो का, अपने अहम का पॉजिटिव इस्तेमाल करना सीखने की ज़रूरत है. ये समझना जरूरी है कि अहम की ताकत क्या है, ये अहम कुछ तोड़ने की बजाए बहुत कुछ बना सकता है. ये सोचना कि ईगो हर्ट करने वाले साले को चाकू से गोदकर मार दें, लड़की के मुंह पर तेजाब डाल दें, छुपके कहीं नकाब लगा के, मालिक का सिर फोड़ दें, मां-बाप से दूर भाग जाएं लेकिन इसकी हकीक़त नहीं बदलेगी.
समस्या बुरी आदत है तुम्हारी-हमारी उनका टोकना नहीं. एक का सिर फोड़ के बच भी जाओगे तो कल कोई दूसरा बोल देगा, कबतक सिर फोड़ोगे? कबतक बचोगे? 70 चाकू मारने वाला कल को वापस आ भी जायेगा, फिर स्टंट करेगा, फिर कोई टोकेगा. क्या पता इस बार टोकने वाला उससे ज़्यादा टेढ़ा हो. कितनों को चाकू मारेगा वो? कबतक मारेगा?
एक मज़े की बात बताता हूं, खिड़की का कांच तोड़ना भी गर्व भरी बात हो सकती है अगर तोड़ने वाला आगे भारत के लिए क्रिकेट खेलने लगे. तब वही पड़ोसी जो उसपर चिल्लाता था, जिसे बच्चे जान से मारने के सपने देखते थे, वो उस क्रिकेटर के कृत्य को कृष्ण की लीला की भांति सुनायेगा.
बस ज़रूरी है अपने अहम को सही दिशा देने की. आत्मसम्मान जितना ज़रूरी है उतना अहम भी ज़रूरी है, बस उस अहम को 'शादी में ज़रूर आना' के सत्तू की तरह आईएस बनने में लगाएं न कि 'मॉम' फिल्म के लड़के की तरह क्राइम करने में. अपने प्यार के ठुकराए जाने पर तेज़ाब फेंकने की बजाए इस क़ाबिल बनने की ज़रूरत है कि एक रोज़ जब उसके जिला में घुसें तो लोग फूल फेंके.
ये सब समझने समझाने का काम यूं तो शिक्षकों का होना चाहिए, देश में ऐसे ऑन स्पॉट क्राइम को रोकने के लिए पुलिस भी कुछ नहीं कर सकती, कर सकते हैं मां बाप, मोहल्ला समाज और शिक्षा व्यवस्था. बादबाकी मारे गए युवक मनीष के तीन बच्चे हैं, जाने उनपर इन घटना का क्या असर पड़ेगा, वो ईगो पर लेंगे या आइंदा उम्र भर डर डर के जियेंगे. चिंतन करियेगा.
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