क्या सचमुच हिंदू ही इस बात के गुनहगार हैं कि उन्होंने सदियों तक कुछ जातियों को अछूत बनाकर रखा? उनके साथ अमानवीयता से पेश आए. उनकी बेइज्जती की. दमन किया. आमतौर पर माना यही जाता है. दलित या वनवासी समुदाय का एक पढ़ा-लिखा तबका इस बात को इन दिनों बहुत जोर से फैला रहा है कि इन कंबख्त ऊंची जातियों के हिंदुओं ने हमें सदियों तक दबाया. जुल्म किया. ये कभी क्षमा के योग्य नहीं हैं. ये लोग बुरी तरह घृणा फैलाने में लगे हैं. कुछ वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें वे ऋषि-मुनियों को बस गाली ही नहीं दे रहे और जाने कहां-कहां से ऐसे तथ्य ला-लाकर बता रहे हैं जैसे ऊंची जातियों के हिंदुओं और ऋषियों को जीवन भर और पीढ़ियों तक सिर्फ एक ही काम था और वो ये कि तथाकथित निचली जातियों को दबाकर रखो. एक तरह से उनका फुल टाइम जॉब.
क्या ऐसा संभव है? क्या यही पूरा सच है? हम भरोसा करते हैं अपने नेताओं पर. वे राजनीतिक भी हो सकते हैं. सामाजिक भी. हम उनकी गढ़ी थ्योरी पर यकीन करते हैं. चूंकि हम खुद कभी तथ्यों में नहीं जाते इसलिए उन्हें परम विद्वान भी मान लेते हैं.
अमृतलाल नगर हिंदी के प्रसिद्ध लेखक हैं. उनकी कई किताबें हैं और ज्यादातर हिंदी के बड़े पाठक वर्ग द्वारा पढ़ी गई हैं. इनमें से एक किताब है-नाच्यो बहुत गोपाल. यह अछूतों पर शोध के आधार पर उपन्यास की शक्ल में लिखा गया बेशकीमती दस्तावेज है. वे यही सवाल लेकर अछूत बस्तियों में गए कि ये आए कहां से हैं? मैला ढोने जैसे अमानवीय काम को कैसे पीढ़ियों तक करते रहे? क्या मजबूरी थी कि वे पीढ़ियों तक इस नर्क में ढकेले जाते रहे. धीरे-धीरे अछूतों की एक जाति ही बन गई. 1975 में अमृतलाल नागर ने भंगी और मेहतर जातियों की बस्तियों में महीनों बिताए. हर उम्र के...
क्या सचमुच हिंदू ही इस बात के गुनहगार हैं कि उन्होंने सदियों तक कुछ जातियों को अछूत बनाकर रखा? उनके साथ अमानवीयता से पेश आए. उनकी बेइज्जती की. दमन किया. आमतौर पर माना यही जाता है. दलित या वनवासी समुदाय का एक पढ़ा-लिखा तबका इस बात को इन दिनों बहुत जोर से फैला रहा है कि इन कंबख्त ऊंची जातियों के हिंदुओं ने हमें सदियों तक दबाया. जुल्म किया. ये कभी क्षमा के योग्य नहीं हैं. ये लोग बुरी तरह घृणा फैलाने में लगे हैं. कुछ वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें वे ऋषि-मुनियों को बस गाली ही नहीं दे रहे और जाने कहां-कहां से ऐसे तथ्य ला-लाकर बता रहे हैं जैसे ऊंची जातियों के हिंदुओं और ऋषियों को जीवन भर और पीढ़ियों तक सिर्फ एक ही काम था और वो ये कि तथाकथित निचली जातियों को दबाकर रखो. एक तरह से उनका फुल टाइम जॉब.
क्या ऐसा संभव है? क्या यही पूरा सच है? हम भरोसा करते हैं अपने नेताओं पर. वे राजनीतिक भी हो सकते हैं. सामाजिक भी. हम उनकी गढ़ी थ्योरी पर यकीन करते हैं. चूंकि हम खुद कभी तथ्यों में नहीं जाते इसलिए उन्हें परम विद्वान भी मान लेते हैं.
अमृतलाल नगर हिंदी के प्रसिद्ध लेखक हैं. उनकी कई किताबें हैं और ज्यादातर हिंदी के बड़े पाठक वर्ग द्वारा पढ़ी गई हैं. इनमें से एक किताब है-नाच्यो बहुत गोपाल. यह अछूतों पर शोध के आधार पर उपन्यास की शक्ल में लिखा गया बेशकीमती दस्तावेज है. वे यही सवाल लेकर अछूत बस्तियों में गए कि ये आए कहां से हैं? मैला ढोने जैसे अमानवीय काम को कैसे पीढ़ियों तक करते रहे? क्या मजबूरी थी कि वे पीढ़ियों तक इस नर्क में ढकेले जाते रहे. धीरे-धीरे अछूतों की एक जाति ही बन गई. 1975 में अमृतलाल नागर ने भंगी और मेहतर जातियों की बस्तियों में महीनों बिताए. हर उम्र के लोगों के बीच गए. उनके इंटरव्यू किए. उन्होंने वेद और उपनिषदों की पड़ताल की मगर कहीं भी ऐसी किसी जाति का जिक्र नहीं, जो पूरी अछूत घोषित हो.
यह किताब चौंकाने वाले तथ्य सामने लाती है. यह जानकर आपको हैरत होगी कि ये जातियां क्षत्रिय मूल की हैं. गौर कीजिए-
मेहतर और भंगियों की किस्में : चंदेल, चौहान, कछवाहा, वैस, वैसवार, बड़गुर्जर, भदौरिया, बिसेन, बुंदेलिया, यदुबंशी, किनवार-ठाकुर, भोजपुरी राउत, गाजीपुरी राउत, गेहलोता.
मेहतरों की किस्में: गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक (तक्षक), गेहलोत, चंदेल, टिपणी. इन अछूत जातियों के ये सारे भेद, मूलत: क्षत्रिय कहे जाने वाले ऊंची जाति के हिंदुओं के ही भेद हैं-गेहलोत, कछवाहा, चौहान, भदौरियाब, किनवार, चंदेल, सिकरवार, बैस, बिसेन, यदुवंशी, बुंदेला, बड़गूजर, राउत, पन्ना, दजोहा.
गाजीपुर के पंडित देवदत्त शर्मा की 1925 में लिखी एक किताब पतित प्रभाकर अर्थात मेहतर जाति का इतिहास के हवाले से नागर कहते हैं कि जब भंगी या मेहतरों के जातिगत भेद राजपूतों से इतने मिलते-जुलते हैं तो इनके क्षत्रिय मूल का होने में कोई संदेह होना नहीं चाहिए. स्टेनले राइस नाम के एक अंग्रेज की किताब हिंदू कस्टम्स एंड देयर ओरिजंस में भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे जातियां भी हैं, जो विजेताओं से हारीं, अपमानित हुईं और जिनसे विजेताओं ने मनमाने काम कराए.
दस्तावेजी संदर्भों के साथ अमृतलाल नागर अछूतों की बस्तियों में दाखिल होते हैं. वे एक ऐसी महिला से रूबरू होते हैं, जिसने मेहतर समाज में शिक्षा के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण काम किए. उसका पति मोहना डाकू चालीस साल पहले पुलिस मुठभेड़ में मारा जा चुका है. 69 साल की निर्गुनियादेवी नाम की यह महिला अपने दो बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलाती है. बेटा पीआईबी में अफसर बनता है. कहानी यह है कि एक ब्राह्मण परिवार की निर्गुनिया मेहतर जाति के मोहन से शादी करती हैं. एक मेहतरानी के रूप में उसकी मुश्किल भरी जिंदगी शुरू होती है. वह अमृतलाल नागर के सामने अपना पूरा अतीत खोल देती है. इन किरदारों के जरिए हम पहली बार देख पाते हैं कि गांव-बस्ती के बाहर अछूतों के मोहल्लों और उनके घरों की दुनिया कैसी है?
अब आइए, इस किताब के कुछ संवाद पढ़िए-
1. मैंने बचपन में अपने नाना के गांव में एक पुराना किस्सा सुना था कि वहां के कोई राजा साहब बहुत प्रजा वत्सल, निर्भीक और साहसी थे. उन्होंने अपने समय के विधर्मी बादशाह की गुलामी स्वीकार नहीं की. कभी बादशाह को अपने इलाके में कर नहीं वसूलने दिया. छापेमारी के युद्ध में राजा इतने कुशल थे कि बादशाह की बड़ी सेना को भी चकमा दे देते थे. लेकिन एक बार साजिश में उन्हें पकड़ ही लिया गया. राजा साहब को एक सार्वजनिक स्थान पर बैठाया गया. प्राचीनकाल के राज्याभिषेक का सार स्वांग वहां हुआ. सात नदियों के पवित्र जल से राजा को स्नान कराया जाता था इसलिए शाही अमलों ने सात मेहतरों को खड़ा करके राजा साहब के सिर पर पेशाब कराया. उनके सिर पर मल के टोकरे उलटे कराए. इस तरह राजा साहब की मान-मर्यादा को धूल में मिलाया गया. और उसके बाद वे समाज के अधमाधिअधम व्यक्ति बनाकर बाकी जीवन जीने के लिए छोड़ दिए गए.
2. एक व्यक्ति ने एक मोहल्ले में मेहतरों से भेंट में कहा था-बाबूजी हमारे एक बुजुर्ग ने हमें बताया था कि हम लोग भी कोई सदा से मेहतर नहीं थे. क्षत्रिय थे. गोरी, गजनी के बादशाह से लड़ाई में हम हार गए. वह हमें पकड़कर ले गए. हमारी औरतें हमसे छीन लीं. उनका धरम बदल दिया. हमसे भी कहा कि अपना दीन-धरम छोड़कर हमारे मजहब में आ जाओ. हमने कहा-हम अपना धरम हर्गिज नहीं छोड़ेंगे. बादशाह ने गुस्सा होके कहा-नईं छोड़ोगे तो तुम्हें हमारा मल-मूत्र उठाना पड़ेगा. हमने ये काम मंजूर किया. लेकिन अपना धरम नहीं छोड़ा. ...सोचता हूं कि आसानी से इन मेहतरों के पुरखों ने अपना यह नया कर्म नहीं अपनाया होगा.
3. इन हरिजनों का संघर्ष केवल इस देश के हिन्दुओं से नहीं बल्कि मुसलमानों और ईसाइयों से भी है. हिंदू, मुसलमान, सिख,ईसाई, ऐसी कौन सी भारतीय जाति है, जो अपने आपको मेहतरों से ऊंचा नहीं समझती और जो उन्हें छूने से घिनाती नहीं है. बरसों पहले एक पढ़े-लिखे ईसाई ने मुझे बताया था कि जो कुलीन हिंदू या कुलीन मुसलमान ईसाई बनते हैं, वे अकुलीन ईसाइयों से शादी-ब्याह नहीं करते. मुसलमान ईसाई मुख्यत: मुसलमान ईसाइयों से ही शादी-ब्याह करते हैं. मैंने धर्म परिवर्तन करने वालों को प्राय: सुखी नहीं देखा है.
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