लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान एक बेहद भावनात्मक कहानी पढ़ने को मिली थी. कहानी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) के लोक नायक अस्पताल (LNJP hospital) में कार्यरत एक चिकित्सक जोड़ी (Doctor Couple) की थी. यह कहानी हर उस डॉक्टर की भी समझिये जिसने Covid-19 से हमें सुरक्षित रखने हेतु अपने जीवन को भी दांव पर लगा दिया है. भारतीय संस्कृति में डॉक्टर्स को सदैव ही इस धरती पर ईश्वर तुल्य माना जाता रहा है. लेकिन इस बार जितना मरीज़ ख़तरे में थे, उतना ही डॉक्टर्स भी. इसलिए हमारी जान बचाने के लिए, अपने घर-परिवार को ताक पर रख इन कोरोना योद्धाओं की महत्ता और भी बढ़ जाती है. उनके लिए ये राह क़तई आसान नहीं रही. मरीज़ की मृत्यु हो जाने पर उन्हें न जाने किन-किन विषम परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा (अब भी गुज़र रहे हैं), जिसमें उन्हें कोसना, गाली -गलौज़ यहां तक कि उनके साथ मारपीट की घटनाएं भी सामने आती रहीं. पर फिर भी उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा और डटे रहे.
वे तब भी नहीं हारे जबकि उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए सम्बंधित किट एवं अन्य सुविधाएं नहीं थीं. कोई हॉस्पिटल के पास अपनी कार में ही रहने लगा, तो कोई अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा हो दूर से बच्चों को बस नज़र भर देखता और ड्यूटी पर लौट आता. कितने ही डॉक्टर्स हमें बचाते-बचाते अपनी ही जान गंवा बैठे. ये उनकी देश और अपने पेशे के प्रति अगाध निष्ठा ही थी कि वे अपने कर्त्तव्य-पथ से तनिक भी विचलित न हुए.
हमारे इन योद्धाओं को जितना भी धन्यवाद दिया जा सके, वह कम ही है. कितने ही परिवार जो आज सलामत हैं उनकी हर प्रार्थना में प्रतिदिन किसी-न-किसी डॉक्टर का चेहरा जरूर उभरता होगा. देश भर के...
लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान एक बेहद भावनात्मक कहानी पढ़ने को मिली थी. कहानी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) के लोक नायक अस्पताल (LNJP hospital) में कार्यरत एक चिकित्सक जोड़ी (Doctor Couple) की थी. यह कहानी हर उस डॉक्टर की भी समझिये जिसने Covid-19 से हमें सुरक्षित रखने हेतु अपने जीवन को भी दांव पर लगा दिया है. भारतीय संस्कृति में डॉक्टर्स को सदैव ही इस धरती पर ईश्वर तुल्य माना जाता रहा है. लेकिन इस बार जितना मरीज़ ख़तरे में थे, उतना ही डॉक्टर्स भी. इसलिए हमारी जान बचाने के लिए, अपने घर-परिवार को ताक पर रख इन कोरोना योद्धाओं की महत्ता और भी बढ़ जाती है. उनके लिए ये राह क़तई आसान नहीं रही. मरीज़ की मृत्यु हो जाने पर उन्हें न जाने किन-किन विषम परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा (अब भी गुज़र रहे हैं), जिसमें उन्हें कोसना, गाली -गलौज़ यहां तक कि उनके साथ मारपीट की घटनाएं भी सामने आती रहीं. पर फिर भी उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा और डटे रहे.
वे तब भी नहीं हारे जबकि उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए सम्बंधित किट एवं अन्य सुविधाएं नहीं थीं. कोई हॉस्पिटल के पास अपनी कार में ही रहने लगा, तो कोई अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा हो दूर से बच्चों को बस नज़र भर देखता और ड्यूटी पर लौट आता. कितने ही डॉक्टर्स हमें बचाते-बचाते अपनी ही जान गंवा बैठे. ये उनकी देश और अपने पेशे के प्रति अगाध निष्ठा ही थी कि वे अपने कर्त्तव्य-पथ से तनिक भी विचलित न हुए.
हमारे इन योद्धाओं को जितना भी धन्यवाद दिया जा सके, वह कम ही है. कितने ही परिवार जो आज सलामत हैं उनकी हर प्रार्थना में प्रतिदिन किसी-न-किसी डॉक्टर का चेहरा जरूर उभरता होगा. देश भर के चिकित्सकों की तरह ही, कोरोना वायरस ने डॉ. रश्मि मिश्रा और डॉ. ईशान रोहतगी के जीवन में भी अचानक ही एक नया मोड़ ला दिया.
बीते वर्ष ही इनका विवाह हुआ. आने वाली ज़िन्दग़ी के लिए इन्होंने भी तमाम मीठे ख़्वाब सजाये थे. लेकिन Covid-19 की आहट पाते ही इस चिकित्सक दंपति ने अपनी सभी योजनाओं को विराम दे दिया. अपनी प्राथमिकताओं को दरक़िनार कर एक योद्धा की तरह ये भी हमें बचाने की मुहिम में शामिल हो गए. यक़ीनन राह आसान नहीं थी. परस्पर दूरी और फिर एक-दूसरे के जीवन की फ़िक्र भी,अच्छे-अच्छों को विचलित कर देती है. लेकिन कोरोना वॉरियर्स की यह जोड़ी डटी रही. इनका परिवार भी इस निर्णय से सहमत था.
ये आंखों में फ़िक्र लिए, पोशाक पहनने में एक दूसरे की मदद करते हैं. अस्पताल में प्रवेश करते ही दोनों मरीज़ों का अपडेट लेकर, मुस्कान के साथ हाथ हिलाते हैं और अपने-अपने राउंड पर चले जाते हैं. गहन प्रेम के कुछ पल उस मुस्कुराहट के साथ जी लिए जाते हैं. गाहे-बगाहे covid वार्ड के गलियारों में मुलाक़ात हो जाती है. लेकिन यहां भी, बात ग़र होती है तो बस चिकित्सा सम्बन्धी ही. रूम पर पहुंचने का समय भी शिफ़्ट के आधार पर तय होता है.
जैसा कि हम जानते ही हैं कि पीपीई गाउन और मास्क के साथ कई परेशानियां भी हैं. इस दौरान खाना-पीना, शौचालय का उपयोग करना प्रतिबंधित है. जिन प्लास्टिक पीपीई आउटफिट में हवा भी प्रवेश नहीं कर सकती, कल्पना कीजिए उस भीषण आर्द्रता में कोई घंटों कैसे रह पाता होगा. त्वचा की सौ परेशानियों से जूझना, सो अलग! पंद्रह दिनों के काम के बाद सात दिन क्वारंटाइन में भी रहना होता है.
आप परिवार से मिल भी नहीं सकते हैं. केवल मोबाइल के माध्यम से ही सम्पर्क रखा जा सकता है. ये जोड़ी भी इन सब नियमों का पालन करते हुए वहीं अस्पताल के पास ही एक गेस्ट हाउस में रह रही है. इन्हें अपने इस जीवन से शिक़ायतें नहीं क्योंकि इनकी मानवीय संवेदनाएं सलामत हैं. अपने लक्ष्य के आगे ये रुकावट तो कुछ भी नहीं.
सच, इस वैश्विक संकट के दौर में प्रेम का यह रूप कितना अद्वितीय है. जो हमारे लिए इतना सब सहन कर रहे हैं तो हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम सुरक्षा सम्बन्धी सभी नियमों का सुचारु ढंग से पालन करें. मास्क पहनें, साबुन से बार-बार हाथ धो स्वयं को स्वच्छ रखें. इंडिया टुडे के लिए इनकी कहानी को तस्वीरों के माध्यम से बंदीप सिंह जी ने जिस ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया था, उसके सामने यहां लिखा हर शब्द भी बेमानी है. आप भी इन तस्वीरों को देखिये.
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