खाना पीना बहुत पर्सनल मामला है. मतलब कौन क्या खा रहा है? क्या नहीं, इसकी चिंता करने का हक़ किसी को नहीं है. सरकार को तो बिलकुल नहीं है. लेकिन जैसा माहौल है सरकार चिंता कर रही है और ये इसी 'चिंता' का परिणाम है कि सरकार द्वारा अक्सर ऐसे फैसले ले लिए जाते हैं, जो लोगों को रास नहीं आते और उसे जनता के रोष या फिर विरोध का सामना करना पड़ता है. कुछ ऐसा ही सुदूर दक्षिण कोरिया में देखने को मिल रहा है. दक्षिण कोरिया में डॉग मीट या ये कहें कि कुत्ते के मांस ने एक नयी डिबेट का शुभारंभ कर दिया है. असल में हुआ कुछ यूं है कि बहुत लंबे समय से दक्षिण कोरिया में ये बहस चल रही है कि वहां कुत्ते के मांस को बैन किया जाए या नहीं. अभी मामले ने कोरिया में सुर्खियां बटोरनी शुरू भी नहीं की थी कि सरकार ने इस सिलसिले में एक वर्क फोर्स बनाने की योजना बनाई है. वर्क फ़ोर्स लोगों से बात करेगी और इसी बातचीत के बाद इस बात का निर्धारण होगा कि दक्षिण कोरिया में डॉग मीट बैन किया जाए या नहीं.
कोरिया में जो हो रहा है उसे देखकर भारत की याद आना स्वाभाविक है. पिछले दिनों गुजरात के कुछ शहरों में जनता की राय जाने बगैर सार्वजनिक मांसाहार पर एकतरफा बैन लगा दिया गया था. बैन साउथ कोरिया भी लगा रहा है लेकिन उसका तरीका अलग है. खान-पान को पर्सनल च्वाइस मानते हुए वहां रायशुमारी की जा रही है जो अपने में बड़ी बात है.
ध्यान रहे दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने 2 माह पूर्व ये कहकर सनसनी फैला दी थी कि सरकार देश में कुत्ते का मांस खाने की सदियों पुरानी परंपरा को ख़त्म करने पर विचार कर रही है. राष्ट्रपति का ये कहना भर था लोगों की एक बड़ी आबादी सड़क पर आ गयी थी....
खाना पीना बहुत पर्सनल मामला है. मतलब कौन क्या खा रहा है? क्या नहीं, इसकी चिंता करने का हक़ किसी को नहीं है. सरकार को तो बिलकुल नहीं है. लेकिन जैसा माहौल है सरकार चिंता कर रही है और ये इसी 'चिंता' का परिणाम है कि सरकार द्वारा अक्सर ऐसे फैसले ले लिए जाते हैं, जो लोगों को रास नहीं आते और उसे जनता के रोष या फिर विरोध का सामना करना पड़ता है. कुछ ऐसा ही सुदूर दक्षिण कोरिया में देखने को मिल रहा है. दक्षिण कोरिया में डॉग मीट या ये कहें कि कुत्ते के मांस ने एक नयी डिबेट का शुभारंभ कर दिया है. असल में हुआ कुछ यूं है कि बहुत लंबे समय से दक्षिण कोरिया में ये बहस चल रही है कि वहां कुत्ते के मांस को बैन किया जाए या नहीं. अभी मामले ने कोरिया में सुर्खियां बटोरनी शुरू भी नहीं की थी कि सरकार ने इस सिलसिले में एक वर्क फोर्स बनाने की योजना बनाई है. वर्क फ़ोर्स लोगों से बात करेगी और इसी बातचीत के बाद इस बात का निर्धारण होगा कि दक्षिण कोरिया में डॉग मीट बैन किया जाए या नहीं.
कोरिया में जो हो रहा है उसे देखकर भारत की याद आना स्वाभाविक है. पिछले दिनों गुजरात के कुछ शहरों में जनता की राय जाने बगैर सार्वजनिक मांसाहार पर एकतरफा बैन लगा दिया गया था. बैन साउथ कोरिया भी लगा रहा है लेकिन उसका तरीका अलग है. खान-पान को पर्सनल च्वाइस मानते हुए वहां रायशुमारी की जा रही है जो अपने में बड़ी बात है.
ध्यान रहे दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने 2 माह पूर्व ये कहकर सनसनी फैला दी थी कि सरकार देश में कुत्ते का मांस खाने की सदियों पुरानी परंपरा को ख़त्म करने पर विचार कर रही है. राष्ट्रपति का ये कहना भर था लोगों की एक बड़ी आबादी सड़क पर आ गयी थी. उनका कहना था कि सरकार को इस तरह खान पान पर नजर रखने का कोई हक़ नहीं है.
साथ ही लोगों ने ये भी कहा था कि यदि सरकार ऐसा करने के बारे में सोच रही है तो उसे पहले लोगों से बात करनी चाहिए थी. बताते चलें कि दक्षिण कोरिया में ऐसे तमाम रेस्तरां बंदी की कगार पर हैं जिनके मेन्यू में कुत्ते का मांस रहता था. कोरिया जैसे देश के मद्देनजर एक दिलचस्प बात ये भी है कि देश के युवा वर्ग ने कुत्ते के मांस से लगभग तौबा कर ली है.
दक्षिण कोरिया के युवा ऐसे होटल्स और रेस्तरां में कम ही जाते हैं जहां डॉग मीट सर्व होता है. लोगों विशेषकर युवाओं ने बरसों पुरानी परंपरा का त्याग क्यों किया इसकी वजह बस इतनी है कि हाल फ़िलहाल में कोरिया में पालतू जानवरों जिसमें कुत्ते और बिल्ली शामिल हैं, का ट्रेंड खासा बढ़ा है. दक्षिण कोरिया में अभी बीते दिनों एक सर्वे भी हुआ है जिसमें कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं.
सर्वे में आया है कि भले ही लोग कुत्ते का मांस ना खाते हों, लेकिन ज्यादा से ज्यादा लोग इसपर प्रतिबंध लगाने के विरुद्ध हैं. चूंकि बात कुत्ते के मीट पर बैन की चल रही है तो सरकार भी ये जानना चाहती है कि इसे देश में बैन किया जाए या नहीं. कृषि मंत्रालय सहित सरकार के 7 विभागों द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि उन्होंने अधिकारियों, नागरिक/असैन्य विशेषज्ञों और संबंधित संगठनों से जुड़े लोगों का एक समूह गठित करने का फैसला लिया है जो कुत्ते के मांस पर प्रतिबंध लगाने की संभावनाओं पर अपना विचार/सिफारिश दे सके.
बयान में इस बात का भी जिक्र है कि प्रशासन डॉग फार्म, रेस्तरां और अन्य जगहों से भी सूचनाएं एकत्र करेगा और इस संबंध में जनता के विचार जानेगा. जैसा कि हम पहले ही इस बात को बता चुके चुके हैं कि सरकार के इस तरह के फैसले से लोगों में रोष है इसलिए मामले पर सरकार ने भी सफाई दी है और लोगों के गुस्से को ठंडा करने का प्रयास किया है.
सरकार का कहना है कि इस पूरी कवायद का मतलब यह नहीं है कि कुत्ते का मांस खाने पर प्रतिबंध लगाया ही जाएगा. बाकी, जिस तरफ सरकार का मामले पर कोई पक्का स्टैंड बन नहीं पा रहा है उससे कुत्ते पालने वाले लोगों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं दोनों में बेचैनी है और दोनों ही सरकारी नीतियों की आलोचना का सामना कर रहे हैं.
गौरतलब है कि दक्षिण कोरिया में हर साल सिर्फ खाए जाने के उद्देश्य से खाने करीब 10 से 15 लाख कुत्तों की हत्या कर दी जाती है और मांस की आपूर्ति होती रहे इसलिए लिए कुत्तों का कृतिम प्रजनन करवाया जाता है.
बहरहाल जैसा कि कोरिया की इस खबर के बीच हमने भारत का भी जिक्र किया था जहां अलग अलग राज्य सरकारें इसी फ़िराक में हैं कि कैसे भी करके मांसाहार को प्रतिबंधित कर दिया जाए. लोग जहां इसका समर्थन कर रहे हैं तो वहीं विरोध भी खूब हो रहा है. ऐसे में बेहतर यही है कि कोई भी बड़ा फैसला लेने से पहले सरकार लोगों से बात करें और वैसा ही करे जैसा कोरिया में हो रहा है.
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