जब कभी हम खाली बैठे होते हैं और किसी का फोन आए या फिर कोई सामने से आकर पूछे क्या कर रहे हो तो अक्सर हमारा जवाब होता है- कुछ भी नहीं. पर सच्चाई ये है कि हम उस वक्त भी कुछ ना कुछ कर ही रहे होते हैं. लेकिन अगर सच में कोई कुछ नहीं करे तो इसके कई फायदे हैं. महान दार्शनिक प्लेटो ने कहा है- कोई भी इंसान जीवन में खुश रहना चाहता है. यही जीवन की चाह होती है.' तो अगर कुछ नहीं करने से हमें खुशी मिलती है तो क्यों ना उसे लपक लिया जाए?
अगर हम ये बात अपने घरवालों को या किसी दोस्त-यार को बताएंगे तो बहुत मुमकिन है कि वो हमारा मजाक उड़ाएं. लेकिन अगर हम कहें कि दुनिया में एक ऐसा देश है जिसे कुछ ना करने से मिलने वाली खुशी का अंदाजा है तो?
दरअसल दक्षिण कोरिया में एक खेल है जिसमें आपको सच में कुछ नहीं करना होता है! और यहां पर कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं ही होता है. स्पेस आउट नाम का ये खेल दक्षिण कोरिया में हर साल खेला जाता है. जो सबसे लंबे समय तक 'कुछ नहीं' करने में कामयाब होता है वही विनर होता है. इस खेल के दौरान प्रतिभागी ना तो फोन का इस्तेमाल कर सकते हैं, ना ही किसी और प्रतिभागी से बात कर सकते हैं.
इस खेल को 2014 में विजुअल आर्टिस्ट वूप्स यंग ने शुरु किया था. इस खेल को शुरू करने के पीछे मुख्य कारण था काम के बोझ से दबे दिमाग को शांति देना और उसे थोड़ा स्लो डाउन करना था. यंग लोगों को ये दिखाना चाहते थे कि किस तरह हम अपने दिमाग को फालतू की बातों और सोचों से घेरे रहते हैं और थका देते हैं.
कुछ ना करने और सोचने का एक दौर दिमाग के लिए संजीवनी का काम करता है. ना सिर्फ इससे दिमाग शांत होता है बल्कि हम खुद भी फ्रेश फील करते हैं. ये बात हम खुद अपने रोजाना के कामों में महसूस करते हैं. हम अक्सर कहते हैं-...
जब कभी हम खाली बैठे होते हैं और किसी का फोन आए या फिर कोई सामने से आकर पूछे क्या कर रहे हो तो अक्सर हमारा जवाब होता है- कुछ भी नहीं. पर सच्चाई ये है कि हम उस वक्त भी कुछ ना कुछ कर ही रहे होते हैं. लेकिन अगर सच में कोई कुछ नहीं करे तो इसके कई फायदे हैं. महान दार्शनिक प्लेटो ने कहा है- कोई भी इंसान जीवन में खुश रहना चाहता है. यही जीवन की चाह होती है.' तो अगर कुछ नहीं करने से हमें खुशी मिलती है तो क्यों ना उसे लपक लिया जाए?
अगर हम ये बात अपने घरवालों को या किसी दोस्त-यार को बताएंगे तो बहुत मुमकिन है कि वो हमारा मजाक उड़ाएं. लेकिन अगर हम कहें कि दुनिया में एक ऐसा देश है जिसे कुछ ना करने से मिलने वाली खुशी का अंदाजा है तो?
दरअसल दक्षिण कोरिया में एक खेल है जिसमें आपको सच में कुछ नहीं करना होता है! और यहां पर कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं ही होता है. स्पेस आउट नाम का ये खेल दक्षिण कोरिया में हर साल खेला जाता है. जो सबसे लंबे समय तक 'कुछ नहीं' करने में कामयाब होता है वही विनर होता है. इस खेल के दौरान प्रतिभागी ना तो फोन का इस्तेमाल कर सकते हैं, ना ही किसी और प्रतिभागी से बात कर सकते हैं.
इस खेल को 2014 में विजुअल आर्टिस्ट वूप्स यंग ने शुरु किया था. इस खेल को शुरू करने के पीछे मुख्य कारण था काम के बोझ से दबे दिमाग को शांति देना और उसे थोड़ा स्लो डाउन करना था. यंग लोगों को ये दिखाना चाहते थे कि किस तरह हम अपने दिमाग को फालतू की बातों और सोचों से घेरे रहते हैं और थका देते हैं.
कुछ ना करने और सोचने का एक दौर दिमाग के लिए संजीवनी का काम करता है. ना सिर्फ इससे दिमाग शांत होता है बल्कि हम खुद भी फ्रेश फील करते हैं. ये बात हम खुद अपने रोजाना के कामों में महसूस करते हैं. हम अक्सर कहते हैं- हमें ब्रेक चाहिए. ये ब्रेक और कुछ नहीं रोजाना की चिक-चिक से दूर हो दिमाग को सुकून देने की एक कवायद भर होती है.
हमारे शरीर में दिमाग एक ऐसा अंग है जो हमेशा कुछ ना कुछ करता रहता है. हर वक्त हम कुछ सोचते रहते हैं और दिमाग में फालतू का कचरा भरते रहते हैं. दिमाग कभी शांत नहीं रहता. चाहे काम का प्रेशर हो, प्रेम संबंधों का तनाव हो, दोस्त हों या फिर सोशल मीडिया, सब हमारे दिमाग को किसी ना किसी तरीके से प्रभावित करते रहते हैं.
इसलिए समय-समय पर ऐसा ब्रेक हमारे दिमाग और स्वास्थ्य के लिए बहुत जरुरी है. जरूरत है तो बस दिमाग में चल रहे केमिकल लोचे को समझने की और इसे सही समय पर रेस्ट का टॉनिक देने की.
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