तमाम मीडिया की, डिजिटल हो या प्रिंट, हेडलाइन कमोबेश यही है कि Dolo-650 दवा की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को मिले हैं 1,000 करोड़ के गिफ्ट. चूंकि खबर है तो सूत्रों के हवाले से ही होगी और सूत्र बता रहे हैं कि निर्माता फार्मा कंपनी माइक्रो लैब्स पर छापेमारी के बाद इनकम टैक्स विभाग ने ऐसा दावा किया है. संयोग ही है कि एक बार फिर माननीय न्यायाधीश की सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणी अनावश्यक और अनुचित प्रतीत हो रही है. सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस बोपाना की बेंच 2021 में एक गैर सरकारी एनजीओ द्वारा दायर की गई यूनिफार्म फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस (कोड) को वैधानिक आधार देने और निगरानी तंत्र, पारदर्शिता, जवाबदेही के साथ-साथ उल्लंघन के परिणामों को सुनिश्चित करके इसे प्रभावी बनाने के लिए निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका पर कल ही (18 अगस्त 2022) सुनवाई कर रही थी. एनजीओ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया गया कि सीबीडीटी ने डोलो टैबलेट बनाने वाली चर्चित फार्मा कंपनी द्वारा बुखार के इलाज के लिए डोलो 650 mg का नुस्खा लिखने के लिए चिकित्सकों को 1000 करोड़ रुपये के मुफ्त उपहार बांटने का आरोप लगाया है. हालांकि सीबीडीटी ने आधिकारिक तौर परमाइक्रो लैब्स (डोलो 650 के निर्माता) के लिए ऐसा कहा हो, संभव नहीं है.
जब संस्थान के विभिन्न ठिकानों पर रेड हुई, बिना किसी डिटेलिंग के अधिकारियों ने सिर्फ कहा था कि आयकर विभाग तलाशी के तहत कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड और बयानों की जांच कर रहा है.सीबीडीटी ने एक बयान में ये भी कहा कि दवा निर्माता कंपनी के खिलाफ कार्रवाई के बाद विभाग ने 1.20 करोड़ रुपये की अघोषित नकदी और 1.40 करोड़...
तमाम मीडिया की, डिजिटल हो या प्रिंट, हेडलाइन कमोबेश यही है कि Dolo-650 दवा की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को मिले हैं 1,000 करोड़ के गिफ्ट. चूंकि खबर है तो सूत्रों के हवाले से ही होगी और सूत्र बता रहे हैं कि निर्माता फार्मा कंपनी माइक्रो लैब्स पर छापेमारी के बाद इनकम टैक्स विभाग ने ऐसा दावा किया है. संयोग ही है कि एक बार फिर माननीय न्यायाधीश की सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणी अनावश्यक और अनुचित प्रतीत हो रही है. सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस बोपाना की बेंच 2021 में एक गैर सरकारी एनजीओ द्वारा दायर की गई यूनिफार्म फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस (कोड) को वैधानिक आधार देने और निगरानी तंत्र, पारदर्शिता, जवाबदेही के साथ-साथ उल्लंघन के परिणामों को सुनिश्चित करके इसे प्रभावी बनाने के लिए निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका पर कल ही (18 अगस्त 2022) सुनवाई कर रही थी. एनजीओ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया गया कि सीबीडीटी ने डोलो टैबलेट बनाने वाली चर्चित फार्मा कंपनी द्वारा बुखार के इलाज के लिए डोलो 650 mg का नुस्खा लिखने के लिए चिकित्सकों को 1000 करोड़ रुपये के मुफ्त उपहार बांटने का आरोप लगाया है. हालांकि सीबीडीटी ने आधिकारिक तौर परमाइक्रो लैब्स (डोलो 650 के निर्माता) के लिए ऐसा कहा हो, संभव नहीं है.
जब संस्थान के विभिन्न ठिकानों पर रेड हुई, बिना किसी डिटेलिंग के अधिकारियों ने सिर्फ कहा था कि आयकर विभाग तलाशी के तहत कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड और बयानों की जांच कर रहा है.सीबीडीटी ने एक बयान में ये भी कहा कि दवा निर्माता कंपनी के खिलाफ कार्रवाई के बाद विभाग ने 1.20 करोड़ रुपये की अघोषित नकदी और 1.40 करोड़ रुपये के सोने और हीरे के जेवर जब्त किए हैं. हां,सीबीडीटी ने बिना समूह का नाम लिए जेनेरलाइज़ जरूर किया था कि समूह ने अपने उत्पादों/ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए अनैतिक प्रथाओं को अपनाया है.
इस तरह के मुफ्त उपहारों की राशि लगभग 1,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है. परंतु मीडिया नाम ले रही है, याचिकाकर्ता ने भी मौका ताड़ा और इनकम टैक्स विभाग का हवाला देते हुए आरोप दोहरा दिया, याचिका जो पुख्ता हो रही थी. तभी जाने अनजाने ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूरी गंभीरता से डॉक्टर द्वारा उनको कोविड ग्रस्त होने पर प्रेस्क्राइब की गई डोला 650 को आरोप के आलोक में बताते हुए चिंता व्यक्त कर दी. बेहतर होता वे परहेज कर जाते! या फिर क्या उनके पास कोई कारण है कि डोला 650 ने उनकी रिकवरी को कंट्रीब्यूट नहीं किया ?
बेवजह ही उनके इस कमेंट को उछाला जाएगा मानों आरोप सिद्ध हो गए हों. और हेडलाइन बन भी गई है - 'Pharma cos distributed Rs 1000 crore freebies among doctors to prescribe Dolo 650 tablets : FMRAI tells Supreme Court.' फार्मा कंपनियां डॉक्टरों को गिफ्ट देती हैं, कोई लुका छिपी नहीं है चूंकि मार्केटिंग प्रैक्टिस है. और प्रैक्टिस है तो प्रतिस्पर्धा के दौर में कभी कभी प्रैक्टिस करप्ट भी होगी ही. हर ट्रेड या इंडस्ट्री इस बाबत कोड बनाती है जिसका इन ऑल फेयरनेस पर्पस होता है कि इस मार्केटिंग टूल के अनफेयर यूज़ से किसी ट्रेड पार्टनर के साथ अनफेयर ना हो जाए !
सीमेंट इंडस्ट्री ज्वलंत उदाहरण है जब तमाम प्लेयर्स के एसोसिएशन ने गलाकाट प्रतिस्पर्धा जनित प्राइस कट के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए समुचित कायदे कानून बनाए और स्वयं पर लागू भी किये! स्पष्ट है नीति है सब कमाई करो, सब फूलो फलो ! सवाल है क्या माइक्रो लैब्स, जिनके अनेकों प्रोडक्ट हैं और जो पांच दशक से फार्मा निर्माता के रूप में स्थापित है, ने इस हद तक जाकर चिकित्सकों को उपहार बांटे सिर्फ अपने एक प्रोडक्ट डोलो 650 के लिए ?
चलिए जवाब टटोलते हैं ! सबसे पहले सीबीडीटी के पॉइंट ऑफ़ व्यू से मामले को समझें. प्रामाणिकता के साथ पब्लिक डोमेन में खबर सिर्फ इतनी भर है कि डोलो-650 निर्माता माइक्रो लैब्स लिमिटेड संदिग्ध कर चोरी के लिए आयकर जांच के दायरे में है. डोमेन में ये भी है कि कंपनी ने कोविड-19 महामारी के दौरान डोलो-650 की बिक्री में वृद्धि देखी. आखिर डोलो 650 क्या है ? शायद बताने की जरूरत नहीं है कि और कुछ नहीं बल्कि 650 mg पेरासिटामोल, एक ज्वर नाशक और दर्द निवारक दवा है और व्यापक रूप से कोविड -19 महामारी के दौरान उपयोग की गई थी.
ऐसा क्यों हुआ कि डोलो 650 डॉक्टरों द्वारा खूब प्रिस्क्राइब की जाने लगी और तदनुसार खूब बिकी भी हुई ? वन लाइनर जवाब दें एक तो आसान उपलब्धता थी और दूजे दूसरी लहर के दौरान डॉक्टरों के नुस्खे की पसंदीदा थी डोलो-650 ! पेरासिटामोल के लिए विकल्प की बात करें तो क्रोसिन है लेकिन 500 मिलीग्राम के फार्मूलेशन में है और दूसरी है कैलपोल जिसकी कीमत ज्यादा है. चूंकि दूसरी लहर के दौरान लोगों को तेज बुखार हो रहा था, इसलिए अधिकतर डॉक्टर डोलो ( 500 मिलीग्राम की तुलना में 650 मिलीग्राम के फार्मूलेशन को बेहतर और कारगर समझते हुए ) को प्रिस्क्राइब कर रहे थे, उपलब्ध भी थी और अपेक्षाकृत सस्ती भी थी.
हालांकि दूसरी लहर के दौरान ब्रांड एक पसंदीदा नुस्खे के रूप में शुरू हुआ, लोग अब भी इसे बिना डॉक्टर के पर्चे के इस्तेमाल कर रहे हैं. वजह इसकी प्रभावशीलता भी है. फिर कोरोना काल के वर्चुअल वर्ल्ड में एक डॉक्टर का नुस्खा पॉज़िटिव नोट के साथ व्हाट्सएप पर खूब सर्कुलेट होने लगा और यूज़र्स मल्टीप्लाई होने लगे. डोलो एक घरेलू नाम बन गया और लोगों ने इसे सभी बुखार , दर्द और दर्द के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. सो एक बार फिर दोहरा दें महामारी के दौरान क्रोसिन की नियमित सप्लाई ना होना और कैलपोल का महंगा होना डोलो 650 को लोकप्रिय बना गया.
हां, कंपनी ने भी एक गेम खेला लेकिन उसे फ़ाउल प्ले नहीं कह सकते. पैरासिटामॉल ब्रांड डोलो को जानबूझकर 650 mg की कैटेगरी में लॉन्च किया और इस बात पर फोकस किया कि सिर्फ हम पैरासिटामॉल की 650 mg देते हैं. बाकी ब्रांड्स 500 mg में ही हैं. माइक्रो लैब्स ने अपने ब्रांड प्रमोशन में FO यानी 'Fever of nknown Origin' टर्म का इस्तेमाल किया. इससे डॉक्टर्स का प्रिस्क्रिप्शन बढ़ गया. अगर बुखार का कारण पता नहीं है तो डॉक्टर डोलो 650 प्रिस्क्राइब करने लगे. ऐसा भी नहीं है कि डोलो 650 पहले नहीं थी. तब भी थी जब GSK की क्रोसिन और कालपोल की तूती बोलती थी.
फार्मूलेशन के मामूली से चेंज ने सीन ही बदल दिया. दीगर फैक्टर्स मसलन उपलब्धता और कम कीमत भी काम कर गए. नतीजन डोलो लोगों की जुबान पर कुछ यूं चढ़ा कि नुस्खा हो या ना हों बुखार है , दर्द है या कोई भी दर्द है , डोलो ले लो और निजात पाओ ! जहां तक इनकम टैक्स की बात है तो रेड पड़ी है जिसमें दस्तावेजों और खातों को ऑडिट के मूलभूत आधार " An auditor is not expected to act as a detective or approach his or her work with undue suspicion or having preconceived notions in mind. He is not a bloodhound, but he is a watchdog." को ताक पर रखकर खंगाला जाएगा और ख़बरें वही लीक होंगी जो टीआरपी बटोरती है.
करोड़ दो करोड़ कैश और गहनों के रूप में मिलना किसी भी एंगल से 1000 करोड़ की 'रेवड़ी' बांटने वाली बात को सपोर्ट नहीं करती है क्योंकि माइक्रो लैब्स के मालिक सुराणा बंधु उस मारवाड़ी कम्युनिटी को बिलॉन्ग करते हैं जिनके मिडिल क्लास के पास भी इतना धन मिल जाता है. फिर मार्च 2020 से लेकर दिसम्बर 2021 तक 567 करोड़ की डोलो 650 बेचने के लिए (जिसका रिटेल प्राइस मात्र रुपया 30 प्रति 15 टेबलेट की स्ट्रिप है) डॉक्टरों को 1000 करोड़ के गिफ्ट देने की बात गले नहीं उतरती.
हां, पांच दशकों की स्थापित तक़रीबन 5000 करोड़ के सालाना टर्नओवर वाली फार्मा कंपनी ने ज़रूर आठ दस सालों में इतने पैसे मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के तहत डॉक्टरों पर खर्च कर दिए होंगे. सो कोई क्लेम करे कि डोलो 650 की बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनी ने 100 करोड़ रुपये लुटा दिए सुराणा भाइयों ने, अविश्वसनीय है. दुर्भाग्य से फार्मा कंपनियों के लिए डॉक्टरों को मुफ्त उपहार देना आम बात हो गई है. देने के अनेकों रूप हैं, अभिनव है- मसलन मुफ्त नमूने, सम्मेलन, रिसर्च प्लान , परिवार के लिए फ्लाइट टिकट आदि आदि .
कंपनियां ऐसा क्यों करती है ? कारोबार लाने और अत्यधिक और/या तर्कहीन दवाएं लिखने और उच्च लागत और/या अधिक कीमत वाले ब्रांडों को बढ़ावा देने के लिए एक प्रकार से डॉक्टरों को रिश्वत देना ही है ! इस अस्वास्थ्यकर प्रथा पर लगाम लगे, सभी चाहते हैं लेकिन किसी एक कंपनी को या एक ब्रांड की दवाई को बिना किसी ठोस सबूत के बलि का बकरा बना देना सर्वथा अनुचित है.
पॉलिटिक्स के रूल लागू होते तो बड़ा आसान होता माइक्रो लैब्स के लिए कहना कि विरोधी फार्मा कंपनियों की कुटिल चाल है! जब वही ऐसा नहीं कह रही है तो मीडिया कूल रहे और साथ ही न्यायालय भी कूल रहते हुए तथ्यों और सबूतों के आधार पर ही बातें करें मामला कुछ भी हो! किसी भी हालत में क्यों फील हो कि अनावश्यक ही चीजें प्रभावित हो रही हैं?
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