2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से गौ रक्षा अपने चरम पर है. केंद्र सरकार के अलावा तमाम राज्यों की सरकारों ने भी गायों के लिए अलग-अलग योजनाएं बनाई हैं. जैसे हालात हैं ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि गाय को संरक्षित करने के चक्कर में न सिर्फ हम अन्य जानवरों को भूल गए बल्कि उनके साथ सौतेला व्यवहार कर दिया. गाय के अलावा और जानवर हमारे लिए किस तरह फायदेमंद हैं यदि इस बात को समझना हो तो हमें चंडीगढ़ में आयोजित 6वें इंडियन ऑरगेनिक फेस्टिवल का रुख करना चाहिए. इस ऑरगेनिक फेस्टिवल में गधे और उनका दूध चर्चा में है. फेस्टिवल में गधी के दूध से बना साबुन हाथों हाथ लिया गया.
गधी के दूध से बने साबुन की भी अपनी खासियतें हैं. इस साबुन को बनाने वाली कंपनी ऑर्गेनिको की फाउंडर पूजा कौल ने इस साबुन की एक से एक खूबियां बताईं. पूजा के अनुसार इस अद्भुत साबुन को बनाने के लिए 5 तरफ के नेचुरल ऑइल में गधी का दूध मिलाया गया है. 500 रुपए प्रति पीस वाले इस साबुन की खास बात ये हैं कि यदि कोई भी व्यक्ति 2 से 3 हफ़्तों तक इस साबुन का इस्तेमाल अपने चेहरे पर करे तो उसकी त्वचा में जो चमक आएगा उससे कोई भी मोहित हो जाएगा. साथ ही व्यक्ति अगर इस साबुन का इस्तेमाल रेगुलर करे तो इससे चेहरे में पड़ने वाली झुर्रियां भी खत्म हो जाएंगी.
इस साबुन को लेकर जो अब तक रिसर्च हुई है उसके भी परिणाम चौकाने वाले हैं. साबुन पर शोध कर रहे जानकारों का मत है कि गधी के दूध में कुछ ऐसे तत्व पाए गए हैं जो त्वचा को बच्चों की स्किन जैसा स्मूथ बनाते...
2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से गौ रक्षा अपने चरम पर है. केंद्र सरकार के अलावा तमाम राज्यों की सरकारों ने भी गायों के लिए अलग-अलग योजनाएं बनाई हैं. जैसे हालात हैं ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि गाय को संरक्षित करने के चक्कर में न सिर्फ हम अन्य जानवरों को भूल गए बल्कि उनके साथ सौतेला व्यवहार कर दिया. गाय के अलावा और जानवर हमारे लिए किस तरह फायदेमंद हैं यदि इस बात को समझना हो तो हमें चंडीगढ़ में आयोजित 6वें इंडियन ऑरगेनिक फेस्टिवल का रुख करना चाहिए. इस ऑरगेनिक फेस्टिवल में गधे और उनका दूध चर्चा में है. फेस्टिवल में गधी के दूध से बना साबुन हाथों हाथ लिया गया.
गधी के दूध से बने साबुन की भी अपनी खासियतें हैं. इस साबुन को बनाने वाली कंपनी ऑर्गेनिको की फाउंडर पूजा कौल ने इस साबुन की एक से एक खूबियां बताईं. पूजा के अनुसार इस अद्भुत साबुन को बनाने के लिए 5 तरफ के नेचुरल ऑइल में गधी का दूध मिलाया गया है. 500 रुपए प्रति पीस वाले इस साबुन की खास बात ये हैं कि यदि कोई भी व्यक्ति 2 से 3 हफ़्तों तक इस साबुन का इस्तेमाल अपने चेहरे पर करे तो उसकी त्वचा में जो चमक आएगा उससे कोई भी मोहित हो जाएगा. साथ ही व्यक्ति अगर इस साबुन का इस्तेमाल रेगुलर करे तो इससे चेहरे में पड़ने वाली झुर्रियां भी खत्म हो जाएंगी.
इस साबुन को लेकर जो अब तक रिसर्च हुई है उसके भी परिणाम चौकाने वाले हैं. साबुन पर शोध कर रहे जानकारों का मत है कि गधी के दूध में कुछ ऐसे तत्व पाए गए हैं जो त्वचा को बच्चों की स्किन जैसा स्मूथ बनाते हैं. साथ ही गधी के दूध की एक अच्छी बात ये भी है कि इससे स्किन पर कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता.
ऑर्गेनिको की फाउंडर पूजा अपने इस नए प्रोजेक्ट के लिए कितना सीरियस हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये और उनकी कंपनी लगातार उन लोगों के साथ काम कर रहे हैं जो गधों के पालन और उनके प्रजनन से जुड़े हैं. कौल ने इस बात के ठोस दावे पेश किये हैं कि जो लोग भी उनकी संस्था से जुड़े हैं इस उत्पाद के कारण उनकी आय में बढोतरी हुई है.
अच्छा चूंकि बात गधों की चल रही है तो यहां भी पाकिस्तान का जिक्र लाजमी हो जाता है. बीते कई दिनों से पाकिस्तान का एक वीडियो इंटरनेट पर चर्चा का कारण बना है. वीडियो में पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल जियो टीवी की एक रिपोर्ट पेश की गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान के लाहौर में गधों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. पाकिस्तान गधों की तादाद के मद्देनजर विश्व का तीसरा बड़ा देश बन चुका है. देश के गधे बीमार न रहें इसलिए पाकिस्तानी हुक्मरानों ने गधों का अस्पताल भी बनाया है जहां उनकी हर जरूरत का ध्यान रखते हुए मुफ्त इलाज किया जाता है.
जिस तरह पाकिस्तान की सरकार तमाम बातों को दरकिनार करते हुए गधों को रहम की निगाह से देख रही है और जिस तरह उनके संरक्षण एयर सशक्तिकरण के लिए गंभीर है इससे लाहौर के वो कारोबारी बहुत खुश हैं जिन्होंने गधे पाल रखे हैं. 25-30 हजार रुपए में आने वाले इन गधों से जहां एक तरफ लाहौर के लोग रोजाना 1000 से 1500 रुपए कम रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ प्रजनन से भी ये लोग ठीक ठाक पैसा कम रहे हैं.
पाकिस्तान जिस तरह से अपने गधों की संख्या पर गर्व से 56 इंची छाती दिखा रहा है उससे हम भारतीयों को प्रेरणा लेनी चाहिए. चूंकि भारत गधी के दूध के इस्तेमाल से त्वचा को स्मूथ रखने वाला पहला देश है अतः हमारे पास संभावनाएं ज्यादा हैं. अब वक़्त आ गया है जब हमें केवल गाय पर नहीं बल्कि गधे पर भी फोकस करना चाहिए और ये देखना चाहिए कि गधा किन किन चीजों से हमें लाभ पहुंचा सकता है.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि हर किसी की किस्मत में अच्छे दिन नहीं होते. बाक़ी बात चूंकि गधों के सन्दर्भ में हो रही है. तो वाकई इनके अच्छे दिन चल रहे हैं. पाकिस्तान में तो इनका जलवा था ही अब उस जलवे का हिंदुस्तान आना ये बता देता है कि, वो दिन दूर नहीं जब गाय की तरह गधे पर राजनीति होगी और चुनावों में गधों को प्राथमिकता दी जाएगी. तब जीत यहां उसी की होगी जो उन गधों को उनके हक दिलाएगा जो अब तक शोषित वंचित थे और तिरस्कार की जिंदगी जी रहे थे.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.