देश-दुनिया में शिक्षा नगरी के नाम में प्रसिद्ध राजस्थान के कोटा शहर में कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि के साथ ही आत्महत्याओं की घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हो रही हैं. कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है. यहां शिक्षा के बजाय मौत का कारोबार हो रहा है. कोटा एक तरफ जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने के लिए जाना जाता है. वहीं इन दिनों छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में हैं. कोटा पुलिस के अनुसार साल 2018 में 19 छात्रो ने 2017 में 7 छात्रो ने 2016 में 18 छात्र 2015 में यहां 31 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया था. वर्ष 2014 में 45 छात्रों ने आत्महत्या की थी.
27 मई को कोटा में फिर एक छात्रा साक्षी ने खुदकुशी कर ली. छात्रा अपने चाचा के पास रहकर नीट की कोचिंग कर रही थी. उसकी लाश कमरे में फांसी में फंदे पर लटकी मिली. कमरे से एक सुसाइड नोट भी मिला है. उसमें लिखा था कि मेरी मौत का जिम्मेदार कोई नहीं है. साक्षी (17) मूलरूप से टोंक की रहने वाली थी. साक्षी के चाचा सुरेंद्र जाट जो कोटा थर्मल में सहायक अभियंता हैं ने बताया कि साक्षी बाहर वाले कमरे में पढ़ाई करती थी. उसी में चुन्नी से फांसी लगा ली. सुरेंद्र जाट ने बताया कि सम्भवतः पढ़ाई के तनाव में चलते उसने फांसी लगाई है. कुन्हाड़ी थानाधिकारी गंगा सहाय शर्मा ने बताया कि छात्रा सा़क्षी के खुदकुशी करने को लेकर कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है.
इससे पूर्व 24 मई को कोटा में राष्ट्रीय स्तर की मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट की तैयारी कर रहे बिहार के नालंदा जिले के खोजपुरा गांव के एक 16 वर्षीय छात्र आर्यन ने आत्महत्या कर ली थी. गौरतलब है कि मई माह केे 27 दिनों में यह पांचवी घटना थी. जब कॉम्पिटिशन की तैयारी कर रही छात्रा ने खुदकुशी कर ली. कोटा में पिछले पांच महीने में आत्महत्या और आत्महत्या के प्रयास के 11 मामले सामने आए हैं.
कोटा संभाग में कोचिंग छात्रों के आत्महत्या के मामलों को लेकर 24 जनवरी 2023 को विधायक पानाचंद मेघवाल ने विधानसभा में प्रश्न पूछा था. जिसके जवाब में सरकार की ओर से कहा गया है कि कोटा संभाग में विगत चार साल 2019 से 2022 में स्कूल-कॉलेज और कोचिंग सेंटर के विद्यार्थियों की आत्महत्या के कुल 53 मामले दर्ज हुए हैं. अपने जवाब में सरकार ने जो प्रमुख कारण आत्महत्या के गिनाए हैं. उनमें कोचिंग सेंटर में होने वाले टेस्ट में छात्रों के पिछड़ जाने के कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी होना, माता-पिता की छात्रों से उच्च महत्वाकांक्षा होना, छात्रों में शारीरिक मानसिक और पढ़ाई संबंधित तनाव उत्पन्न होना, आर्थिक तंगी, ब्लैकमेलिंग और प्रेम-प्रसंग जैसे प्रमुख कारण भी हैं.
कोटा में राजीव गांधी नगर इलाके के तलवंडी, जवाहर नगर, विज्ञान विहार, दादा बाड़ी, वसंत विहार और आसपास के इलाके में करीब पौने दो लाख व लैंडमार्क इलाके में 60 हजार छात्र रहते हैं. इसी तरह हजारों की संख्या में छात्र कोरल पार्क, बोरखेड़ा में भी रहते हैं. कोटा में करीबन ढाई लाख छात्र पढ़ रहें हैं. जिनमें सर्वाधिक उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं. कोटा में सात नामी व कई अन्य कोचिंग सेंटर हैं. शहर में करीबन साढ़े तीन हजार हॉस्टल और पीजी हैं.
कोटा शहर के हर चैक-चैराहे पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग हीं सब कुछ है. यह सही है कि कोटा में सफलता की दर तीस प्रतिशत से उपर रहती है. देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओं में टाप टेन में पांच छात्र कोटा के रहते हैं. उसके साथ ही कोटा में एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो असफल हो जाते हैं. उनमें से कुछ अपनी असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते हें.
आज कोटा देश में कोचिंग का सुपर मार्केट है. एक अनुमान के मुताबिक कोटा के कोचिंग मार्केट का सालाना चार हजार करोड़ का टर्नओवर है. कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को अनुमानतः सालाना 200-300 करोड़ रूपये से अधिक टैक्स के तौर पर दिया जाता है. कोटा में देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे मोटे 200 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं. यहां तक कि दिल्ली, मुंबई के साथ ही कई विदेशी कोचिंग संस्थाएं भी कोटा में अपना सेंटर खोल रही हैं. लगभग ढ़ाई लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं.
कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं. आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में पढनेवाले छात्र बड़ी-बड़ी कम्पनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोडकर यहां के कोचिंग संस्थाओं में पढ़ा रहे हैं. तनख्वाह ज्यादा होने से अकेले कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी छात्र पढ़ा रहे हैं. कोटा में पुलिस, प्रशासन, कोचिंग संस्थानो ने छात्रों में पढ़ाई का तनाव कम करने के बहुत से प्रयास किए मगर घटनाएं नहीं रुक पा रही हैं.
इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में नामांकन कराने के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं की तैयार करने के लिए देशभर से छात्र कोटा आते हैं और यहां के विभिन्न निजी कोचिंग सेंटरों में दाखिला लेकर तैयारी में लगे रहते हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि परीक्षा उत्तीर्ण करने के दबाव में आकर पिछले कुछ वर्षों में काफी छात्रों ने आत्महत्या की है. जिसके लिए अत्याधिक मानसिक तनाव को कारण माना जा रहा है. कोचिंग संस्थान भले ही बच्चों पर दबाव न डालने की बात कह रहे हों. लेकिन कोटा के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में तैयारी करने वाले बच्चे दबाव महसूस न करें ऐसा संभव नहीं.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक मोबाइल पोर्टल और ऐप लाने की बात कही है. जिससे इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए कोचिंग की मजबूरी खत्म की जा सके. चूंकि इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, आयु, अवसर और परीक्षा का ढांचा कुछ ऐसा है कि विद्यार्थियों के सामने कम अवधि में कामयाब होने की कोशिश एक बाध्यता होती है. इसलिए वे सीधे-सीधे कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं. अगर मोबाइल पोर्टल और ऐप की सुविधा उपलब्ध होती है तो इससे इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी के लिए विद्यार्थियों के सामने कोचिंग के मुकाबले बेहतर विकल्प खुलेंगे.
कोटा की पूरी अर्थव्यवस्था कोचिंग पर ही टिकी हैं ऐसे में कोचिंग सिटी के सुसाइड सिटी में बदलने से यहां के लोगों में घबराहट है कि कहीं छात्र कोटा से मुंह न मोड़ लें. इसे देखते हुए प्रशासन, कोचिंग संस्थाएं और आम शहरी इस कोशिश में लग गए हैं कि आखिर छात्रों की आत्महत्याओं को कैसे रोका जाए. यदि शिघ्र ही कोटा में पढने वाले छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं पर रोक नहीं लग पायेगी तो यहां का एक बार फिर वही हाल होगा जो कुछ साल पहले यहां के कल-कारखानों में तालाबन्दी होने के चलते व्याप्त हुये आर्थिक संकट के कारण हुआ था. इसके लिए प्रशासन ने कोचिंग संस्थानो के संचालन के लिये नियम कायदे कानून बनाना शुरु किया है. जिनसे ही शायद आत्महत्या की घटनाओ पर काबू पाया जा सके.
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