तमाम अड़चन और खींचतान के बाद आखिरकार एलन मस्क ट्विटर के मालिक बन गए हैं. इसके साथ ही इस प्रतिष्ठित टेक कम्पनी के कार्यकारी समूह के आला अधिकारियों मुख्य कार्यकारी अधिकारी पराग अग्रवाल, मुख्य वित्तीय अधिकारी नेड सेगल और विधि विषयक मामले व नीति प्रमुख विजया गाड्डे को बाहर होना पड़ा है.
राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दे ही एक राष्ट्र, सरकार, विचारधारा और व्यक्ति की साख तय करते हैं. इसके लिए तमाम मीडिया समूह और सोशल नेटवर्किंग साइट्स हथियार की तरह इस्तेमाल की जा रहीं हैं. भारत भी इन सबसे अछूता नहीं है. यहां राजनीतिक विरोध की आड़ में मुद्दे तय और ट्रेंड किए जाते हैं. इसके जरिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की साख को कमजोर करने का चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है.
अधिकांश भारतीय मीडिया समूहों को सरकार विरोधियों और नीति आलोचकों द्वारा "गोदी मीडिया" विशेषण से नवाजा गया है. इसके लिए इन मीडिया समूहों की अनियमित और अपारदर्शी कार्यप्रणाली भी काफी हद तक जिम्मेदार है. यही कारण है कि तमाम विदेशी मीडिया समूह नकारात्मक रिपोर्टिंग कर भारत की छवि को लम्बे अर्से से धूमिल करने में लगे हैं. इसमें वे सफल भी हो रहे हैं.
देशी-विदेशी प्रोपेगंडा को ध्वस्त करने के लिए आवश्यक है कि भारतीय मीडिया निष्पक्षता, विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के साथ काम करे ताकि वैश्विक स्तर पर भारत का पक्ष और दृष्टिकोण निर्विवाद रूप से स्वीकार्य हो. ट्विटर और फेसबुक जैसी कई प्रतिष्ठित टेक कम्पनियों में तमाम भारतीय कर्मचारी और अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं. अब समय है भारतीय उद्योग जगत ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में हिस्सेदारी संभव हो सके तो इन्हें पूरी तरह खरीदने की दिशा में सोचे या देशी टेक कम्पनियों को आगे बढ़ाने में सहयोग दे.
भारत सरकार की भी जिम्मेदारी है कि इसके लिए...
तमाम अड़चन और खींचतान के बाद आखिरकार एलन मस्क ट्विटर के मालिक बन गए हैं. इसके साथ ही इस प्रतिष्ठित टेक कम्पनी के कार्यकारी समूह के आला अधिकारियों मुख्य कार्यकारी अधिकारी पराग अग्रवाल, मुख्य वित्तीय अधिकारी नेड सेगल और विधि विषयक मामले व नीति प्रमुख विजया गाड्डे को बाहर होना पड़ा है.
राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दे ही एक राष्ट्र, सरकार, विचारधारा और व्यक्ति की साख तय करते हैं. इसके लिए तमाम मीडिया समूह और सोशल नेटवर्किंग साइट्स हथियार की तरह इस्तेमाल की जा रहीं हैं. भारत भी इन सबसे अछूता नहीं है. यहां राजनीतिक विरोध की आड़ में मुद्दे तय और ट्रेंड किए जाते हैं. इसके जरिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की साख को कमजोर करने का चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है.
अधिकांश भारतीय मीडिया समूहों को सरकार विरोधियों और नीति आलोचकों द्वारा "गोदी मीडिया" विशेषण से नवाजा गया है. इसके लिए इन मीडिया समूहों की अनियमित और अपारदर्शी कार्यप्रणाली भी काफी हद तक जिम्मेदार है. यही कारण है कि तमाम विदेशी मीडिया समूह नकारात्मक रिपोर्टिंग कर भारत की छवि को लम्बे अर्से से धूमिल करने में लगे हैं. इसमें वे सफल भी हो रहे हैं.
देशी-विदेशी प्रोपेगंडा को ध्वस्त करने के लिए आवश्यक है कि भारतीय मीडिया निष्पक्षता, विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के साथ काम करे ताकि वैश्विक स्तर पर भारत का पक्ष और दृष्टिकोण निर्विवाद रूप से स्वीकार्य हो. ट्विटर और फेसबुक जैसी कई प्रतिष्ठित टेक कम्पनियों में तमाम भारतीय कर्मचारी और अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं. अब समय है भारतीय उद्योग जगत ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में हिस्सेदारी संभव हो सके तो इन्हें पूरी तरह खरीदने की दिशा में सोचे या देशी टेक कम्पनियों को आगे बढ़ाने में सहयोग दे.
भारत सरकार की भी जिम्मेदारी है कि इसके लिए अनुकूल परिस्थितियां और वातावरण बनाने में मदद करे.
बताते चलें कि इस डील की शुरुआत अप्रैल महीने में हुई थी, जब एलन मस्क ने पहली बार ये ऐलान किया था कि वो ट्विटर कम्पनी को खरीदना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने कम्पनी के बाकी शेयरहोल्डर्स को एक ऑफर दिया था. ये ऑफर बहुत सरल था. एलन मस्क चाहते थे कि ट्विटर में जितने भी शेयरहोल्डर्स हैं, वो अपनी तमाम हिस्सेदारी उन्हें बेच दें. वो ट्विटर के इकलौते मालिक बन जाएं. 23 अक्टूबर तक ट्विटर में पांच बड़े शेयरहोल्डर्स थे. इनमें भी कम्पनी में 9.2 प्रतिशत की हिस्सेदारी अकेले एलन मस्क के पास थी.
इसके बाद 3 लाख 62 हज़ार करोड़ रुपये में डील के लिए तैयार हो गए थे. जब ऐसा लग रहा था कि ये डील फाइनल होने वाली है, तभी जुलाई महीने में एलन मस्क ने अपना मन बदल लिया और ये कहा कि वो अब ट्विटर को नहीं खरीदना चाहते क्योंकि कम्पनी ने Fake Bot Accounts को लेकर उनसे कई महत्वपूर्ण जानकारियां छिपाई हैं.
हालांकि इसके बाद ट्विटर ने एलन मस्क पर कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाया और ये मामला अमेरिका की एक अदालत में पहुंच गया. बड़ी बात ये है कि, अदालत ने एलन मस्क को 28 अक्टूबर यानी आज की डेडलाइन दी थी और ये कहा था कि अगर वो इस तारीख तक ट्विटर को खरीदने की प्रक्रिया पूरी नहीं करते तो उन्हें अदालत में कानूनी मुकदमे का सामना करना होगा. एलन मस्क ने भी ना ना करते हुए आज ट्विटर को खरीद ही लिया. ये डील उतनी ही कीमत में हुई, जो अप्रैल महीने में तय हुई थी.
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