फिल्मों में लव स्टोरीज़ आपने कई देखी होंगीं, लेकिन रियल लाइफ में दो लोगों की ये कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं लगती. ये कहानी सुनकर आपको फिल्म 'वीर जारा' की याद जरूर आ जाएगी. केरल के रहने वाले ई.के. नारायणन नांबियार 90 साल के हैं. 1946 में उनकी शादी हुई और शादी के कुछ ही महीनों के बाद वो अपनी पत्नी से बिछड़ गए. ये इमोशनल कहानी और भी इमोशनल तब हुई जब पूरा जीवन एक दूसरे के बिना गुजारने के बाद यानी 72 सालों के बाद ये जोड़ा एक बार फिर मिला.
पहले जान लेते हैं दोनों के बिछड़ने की कहानी
आजादी से पहले यानी 1946 में नारायणन और सारदा की शादी हुई थी. तब नारायणन की उम्र थी 18 और सारदा 13 साल की थीं. लेकिन शादी के बाद वो अपनी पत्नी का साथ नहीं निभा सके. शादी के कुछ ही महीनों के बाद कन्नूर जिले में सामंतवाद के खिलाफ किसान आंदोलन छिड़ गया. उस वक्त ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष अपने चरम पर था. किसान सामंतों और जमींदारों के विरुद्ध एकजुट हो रहे थे. 29 दिसंबर 1946 को नारायणन अपने पिता और सैकड़ों किसानों के साथ स्थानीय जमींदार द्वारा किए गए अत्याचारों का बदला लेने के लिए एक पहाड़ी पर इकट्ठा हुए. वो योजना ही बना रहे थे कि पुलिस वहां आ गई और इन लोगों पर गोलियां बरसा दीं. जिसमें पांच लोगों की मौत भी हो गई थी. नारायणन और उनके पिता किसी तरह वहां से निकलकर भागे और कहीं छिप गए.
लेकिन पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा और घर की महिलाओं पर अत्याचार किए जिससे उन दोनों का सुराग मिल सके. नारायणन की मां ने सारदा को पुलिस से बचाया, क्योंकि वो बहुत छोटी थीं. उनके घर को भी आग लगा दी गई. इस घटना के बाद सारदा को उनके मायके भेज दिया गया. पर दो महीने बाद नारायणन और उनके पिता को भी...
फिल्मों में लव स्टोरीज़ आपने कई देखी होंगीं, लेकिन रियल लाइफ में दो लोगों की ये कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं लगती. ये कहानी सुनकर आपको फिल्म 'वीर जारा' की याद जरूर आ जाएगी. केरल के रहने वाले ई.के. नारायणन नांबियार 90 साल के हैं. 1946 में उनकी शादी हुई और शादी के कुछ ही महीनों के बाद वो अपनी पत्नी से बिछड़ गए. ये इमोशनल कहानी और भी इमोशनल तब हुई जब पूरा जीवन एक दूसरे के बिना गुजारने के बाद यानी 72 सालों के बाद ये जोड़ा एक बार फिर मिला.
पहले जान लेते हैं दोनों के बिछड़ने की कहानी
आजादी से पहले यानी 1946 में नारायणन और सारदा की शादी हुई थी. तब नारायणन की उम्र थी 18 और सारदा 13 साल की थीं. लेकिन शादी के बाद वो अपनी पत्नी का साथ नहीं निभा सके. शादी के कुछ ही महीनों के बाद कन्नूर जिले में सामंतवाद के खिलाफ किसान आंदोलन छिड़ गया. उस वक्त ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष अपने चरम पर था. किसान सामंतों और जमींदारों के विरुद्ध एकजुट हो रहे थे. 29 दिसंबर 1946 को नारायणन अपने पिता और सैकड़ों किसानों के साथ स्थानीय जमींदार द्वारा किए गए अत्याचारों का बदला लेने के लिए एक पहाड़ी पर इकट्ठा हुए. वो योजना ही बना रहे थे कि पुलिस वहां आ गई और इन लोगों पर गोलियां बरसा दीं. जिसमें पांच लोगों की मौत भी हो गई थी. नारायणन और उनके पिता किसी तरह वहां से निकलकर भागे और कहीं छिप गए.
लेकिन पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा और घर की महिलाओं पर अत्याचार किए जिससे उन दोनों का सुराग मिल सके. नारायणन की मां ने सारदा को पुलिस से बचाया, क्योंकि वो बहुत छोटी थीं. उनके घर को भी आग लगा दी गई. इस घटना के बाद सारदा को उनके मायके भेज दिया गया. पर दो महीने बाद नारायणन और उनके पिता को भी गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें जेल हो गई.
11 फरवरी 1950 को नारायणन के पिता की जेल के भीतर गोली मार कर हत्या कर दी गई. नारायणन को भी गोलियां लगीं लेकिन वो बच गए. पर बाहर खबर ये मिली कि पिता के साथ नारायणन की भी मौत हो गई. उधर इस खबर को सही मानकर सारदा के परिवारवालों ने उनकी शादी किसी और के साथ कर दी. नारायणन की मां भी ये नहीं चाहती थीं कि पुलिस और जमींदार उनकी बहू को बार बार परेशान करें. इसलिए सारदा की शादी करा देना ही सही लगा. 8 सालों के बाद नारायणन जेल से बाहर आए. लेकिन बाहर आकर पता चला कि उनकी शादीशुदा जिंदगी खत्म हो गई है. कुछ अर्से बाद परिवार वालों ने नारायणन को मनाकर उनकी शादी भी कहीं और करा दी. सारदा और नारायणन दोनों अपने परिवार में व्यस्त हो गए.
72 साल बाद एक बार फिर मिले
नारायणन की भतीजी संथा कवुमबाई ने एक उपन्यास 'दिसंबर 30' लिखा. 1946 के किसान आंदोलन पर आधारित उनका ये उपन्यास काफी मशहूर है. इसमें संथा ने नारायणन और सारदा दोनों का जिक्र भी किया है. संथा बताती हैं- 'जब मैंने उपन्यास लिखा था उस समय तक मुझे बिल्कुल आभास नहीं था कि ये दोनों फिर एक-दूसरे से मिल पाएंगे. जो विवाह के महज कुछ महीनों बाद अलग हो गए थे.'
एक दिन संथा की मुलाकात सारदा के बेटे भार्गवन से हुई. दोनों की बातचीत से पता लगा कि बिछड़े हुए पति-पत्नी आज भी जीवित हैं. तब उनको लगा कि इन दोनों को एक बार मिलना तो जरूर चाहिए. क्योंकि वो दोनों एक दूसरे को बहुत प्रेम से याद करते रहे हैं. संथा और भार्गवन ने इन्हें मिलाने का निश्चय किया और 26 दिसंबर 2018 को 72 साल के लंबे अंतराल के बाद वो भावुक कर देने वाला लम्हा आया. भार्गवन के घर सारदा और नारायणन की मुलाकात करवाई गई. सारदा के परिवारवालों ने नारायणन के लिए बड़े प्यार से पारंपरिक खाना बनाया और उनका स्वागत किया. पहले पहल तो सारदा नारायणन से मिलने में हिचक रही थीं, लेकिन जब मिलीं तो दोनों की आंखों में आंसू थे.
जब ये दोनों बिछड़े थे तो 18 और 13 बरस के थे, आज जब मिले तो शायद एक दूसरे को पहचान भी न पाए होंगे. 72 सालों के बाद कभी पति-पत्नी रहे इस जोड़े का मिलन कितना सुखद रहा होगा. ये समझा जा सकता है. चेहरों पर जीवन भर की विरह का दुख और संघर्ष झुर्रियों के रूप में दिख रहे थे. और उसपर नारायणन का प्यार से सारदा के सिर पर हाथ फेर देना पुराने जख्मों पर मरहम रख गया होगा. वापस लौटने वक्त नारायणन भी सारदा को अपने घर आने का न्योता देकर आए, जिससे मुलाकात का सिलसिला कायम रहे.
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