बात बीते महीनों की है मैं अपने दफ्तर में बैठा कुछ काम कर रहा था तभी मेरा फोन बजा. फोन देखा तो स्क्रीन पर एक पुराने मित्र का नाम डिस्प्ले हुआ. मित्र एक इंग्लिश न्यूज चैनल में पत्रकार है. मित्र घबराया था और हाय हेल्लो करने के बजाये वो सीधा मुद्दे पर आते हुए बोला कि 'अरे कुछ सुना बगदादी मर गया'.
दो सेकंड के लिए तो मैं भी हैरत में पड़ गया कि 'कौन बगदादी' और कौन सा वो मेरे उन्नाव वाले चाचा जी का पड़ोसी है जो मेरा मित्र बगदादी की मौत की खबर मुझे बता रहा था. फिर अचानक ही मुझे याद आया कि अरे मेरा मित्र आईएसआईएस वाले बगदादी की बात कर रहा है. खैर बात आई गयी हो गयी. मित्र के फोन के बाद बगदादी कई बार मरा, कई बात जिंदा हुआ.
खैर, कल फिर खबर आई कि बगदादी नहीं रहा उसे रूस ने मार गिराया है. मैंने भी उत्सुकतावश टीवी चैनलों का रुख किया वहां टीवी एंकर गला फाड़ फाड़ के चीख रहे थे कि खूंखार आतंकी बगदादी मारा गया. चैनलों ने पैकेज चला दिए थे कि रात 9 बजकर 5 मिनट पर जानिये कि आखिर कैसी हुई बगदादी मौत.
मैं चैनल बदल रहा था, बदले जा रहा था. एक जोशीले चैनल पर एंकर डराने की मुद्रा में बता रहा था कि 'तो कैसे दुनिया का सबसे खूंखार आतंकी बगदादी हुआ बम धमाके में ढेर' तो वहीं दूसरे चैनल पर ग्रे कलर का ब्लेजर पहनकर और मेजेंटा कलर की लिपस्टिक लगाए फीमेल एंकर आंखें गोल किये हुए बता रही थी कि 'सिर्फ उसके चैनल के पास बगदादी की मौत की एक्सक्लूसिव तस्वीरें हैं'. मैं चैनल बदल रहा था और बगदादी की मौत पर टीवी चैनलों की एंकरिंग देख रहा था. थक हार कर मैंने टीवी बंद कर दिया.
टीवी बंद कर मैं लेटा ही था कि बगदादी को लेकर तमाम तरह के विचार मेरे दिमाग में आने लगे. मैं जैसे - जैसे बगदादी पर सोच रहा था वैसे - वैसे मुझे महसूस...
बात बीते महीनों की है मैं अपने दफ्तर में बैठा कुछ काम कर रहा था तभी मेरा फोन बजा. फोन देखा तो स्क्रीन पर एक पुराने मित्र का नाम डिस्प्ले हुआ. मित्र एक इंग्लिश न्यूज चैनल में पत्रकार है. मित्र घबराया था और हाय हेल्लो करने के बजाये वो सीधा मुद्दे पर आते हुए बोला कि 'अरे कुछ सुना बगदादी मर गया'.
दो सेकंड के लिए तो मैं भी हैरत में पड़ गया कि 'कौन बगदादी' और कौन सा वो मेरे उन्नाव वाले चाचा जी का पड़ोसी है जो मेरा मित्र बगदादी की मौत की खबर मुझे बता रहा था. फिर अचानक ही मुझे याद आया कि अरे मेरा मित्र आईएसआईएस वाले बगदादी की बात कर रहा है. खैर बात आई गयी हो गयी. मित्र के फोन के बाद बगदादी कई बार मरा, कई बात जिंदा हुआ.
खैर, कल फिर खबर आई कि बगदादी नहीं रहा उसे रूस ने मार गिराया है. मैंने भी उत्सुकतावश टीवी चैनलों का रुख किया वहां टीवी एंकर गला फाड़ फाड़ के चीख रहे थे कि खूंखार आतंकी बगदादी मारा गया. चैनलों ने पैकेज चला दिए थे कि रात 9 बजकर 5 मिनट पर जानिये कि आखिर कैसी हुई बगदादी मौत.
मैं चैनल बदल रहा था, बदले जा रहा था. एक जोशीले चैनल पर एंकर डराने की मुद्रा में बता रहा था कि 'तो कैसे दुनिया का सबसे खूंखार आतंकी बगदादी हुआ बम धमाके में ढेर' तो वहीं दूसरे चैनल पर ग्रे कलर का ब्लेजर पहनकर और मेजेंटा कलर की लिपस्टिक लगाए फीमेल एंकर आंखें गोल किये हुए बता रही थी कि 'सिर्फ उसके चैनल के पास बगदादी की मौत की एक्सक्लूसिव तस्वीरें हैं'. मैं चैनल बदल रहा था और बगदादी की मौत पर टीवी चैनलों की एंकरिंग देख रहा था. थक हार कर मैंने टीवी बंद कर दिया.
टीवी बंद कर मैं लेटा ही था कि बगदादी को लेकर तमाम तरह के विचार मेरे दिमाग में आने लगे. मैं जैसे - जैसे बगदादी पर सोच रहा था वैसे - वैसे मुझे महसूस हो रहा था कि भूख, बेरोज़गारी, गरीबी और महंगाई के बीच शायद बगदादी ही हम जैसों के लिए दिल बहलाने वाला गालिब का ख्याल है. मुझे कभी-कभी लगता है कि अब नेताओं के नक़्शे कदम पर चलते हुए शायद मीडिया ने भी कसम खा ली है कि अब वो भी हमें बगदादी की मौत का लॉलीपॉप थामकर बेवकूफ बनाती रहेगी.
गौरतलब है कि बीते दो सालों में बगदादी 7 बार मर के जिंदा हो चुका है और हर बार उसकी मौत से जुड़ी कहानियां एक एंकर के लिए पूर्व के मुकाबले ज्यादा दिलचस्प और एक दर्शक के लिए ज्यादा डरावनी होती हैं. एंकर बताता है और दर्शक हक्का सुनता जाता है और मन ही मन खुश होता है कि चलो कम से कम ये मुआ बगदादी मरा तो. बात अगर बगदादी की मौत पर हो तो पहले इसकी मौत की खबर आई थी नवम्बर 2014 में तब ये बताया हगाया था कि बगदादी को मोसुल के पास अमेरिका द्वारा मार गिराया गया है.
इसके बाद मार्च 2015 में खबर आई की अल - बाज जिले में बगदादी गंभीर रूप से घायल हो गया है और उसके बाद उसकी मौत हो गयी है. इसके बाद 2015 में ही बगदादी की मौत पर अपना दावा ठोकते हुए इराक ने कहा कि उसने बगदादी के ठिकाने को बम से उड़ा दिया है जिसके बाद उसकी भी मौत हो गयी है. 2016 से 2017 के बीच भी बगदादी बार मरा और फिर मर के जिंदा हुआ.
अंत में हम यही कहेंगे कि बगदादी असल ज़िन्दगी में मर नहीं रहा हां मगर उसे टीवी एंकर और चैनलों द्वारा ज़रूर मारा जा रहा है और अगर इसके कारण पर गौर करें तो मिलता है कि बगदादी की मौत को भुनाने के पीछे टीआरपी ही मुख्य वजह है. पूर्व की तरह मेरे पास चिंतित होने के कई कारण है और अब वाकई मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बगदादी मरा या नहीं साथ ही अब तो मैं तब टीवी बिल्कुल नहीं खोलूंगा जब मेरा कोई दोस्त फोन करते हुए मुझे बताएगा कि 'अरे कुछ सुना बगदादी फिर मर गया'.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.