बचपन का जिक्र आते ही हमें सबसे पहले अपने बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. उस समय की गई वो शरारतें, वो बदमाशियां और अपने माता-पिता का समझाना-सिखाना सब आज भी भूले नहीं. आज जब स्वयं अभिभावक की भूमिका में आ गए तब पता चला कि बच्चों की देख-रेख इतनी आसान नहीं. कच्ची उम्र को सही संरक्षण की आवश्यकता पड़ती है जिसे खासकर मां को बेहद संतुलित ढंग से निभाना होता है. अपने छः साल के बेटे की परवरिश करते हुए आए दिन मुझे ऐसी घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है.
स्कूल से मार खाकर आएं तो
एक दिन उसने स्कूल से आते ही कहा 'मम्मा! आज अली ने मुझे पेट में इतनी जोर का पंच मारा कि लगा मैं मर ही जाऊंगा'. एक मां होने के नाते मुझे बुरा तो बहुत लगा लेकिन उस वक्त मैंने उसे सिर्फ यही कहा कि तुम अली से दूर रहा करो. अगले दिन मैं शिकायत लेकर स्कूल चली गई. टीचर ने कहा- 'कल अली के पेरेंट्स को बुलाया गया था, लेकिन अच्छी बात ये है कि अगत्य (मेरा बेटा) ने पलटकर उस तरह की कोई हरकत नहीं की. वाकई आप अपने बच्चे की परवरिश बहुत अच्छे संस्कार देकर कर रही हैं. मन ही मन मैं प्रफुल्लित हो गई. सच ही तो कहा टीचर ने बचपन से मैंने अपने बेटे को यही तो सिखाया है कि मार-पीट करने वाले गुंडे होते हैं.
ये भी पढ़ें- स्कूल जाने वाले हर बच्चे की मां टेंशन में क्यों है
बच्चे अगर स्कूल से मार खाकर आएं तो उन्हें सूझबूझ से... बचपन का जिक्र आते ही हमें सबसे पहले अपने बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. उस समय की गई वो शरारतें, वो बदमाशियां और अपने माता-पिता का समझाना-सिखाना सब आज भी भूले नहीं. आज जब स्वयं अभिभावक की भूमिका में आ गए तब पता चला कि बच्चों की देख-रेख इतनी आसान नहीं. कच्ची उम्र को सही संरक्षण की आवश्यकता पड़ती है जिसे खासकर मां को बेहद संतुलित ढंग से निभाना होता है. अपने छः साल के बेटे की परवरिश करते हुए आए दिन मुझे ऐसी घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है. स्कूल से मार खाकर आएं तो एक दिन उसने स्कूल से आते ही कहा 'मम्मा! आज अली ने मुझे पेट में इतनी जोर का पंच मारा कि लगा मैं मर ही जाऊंगा'. एक मां होने के नाते मुझे बुरा तो बहुत लगा लेकिन उस वक्त मैंने उसे सिर्फ यही कहा कि तुम अली से दूर रहा करो. अगले दिन मैं शिकायत लेकर स्कूल चली गई. टीचर ने कहा- 'कल अली के पेरेंट्स को बुलाया गया था, लेकिन अच्छी बात ये है कि अगत्य (मेरा बेटा) ने पलटकर उस तरह की कोई हरकत नहीं की. वाकई आप अपने बच्चे की परवरिश बहुत अच्छे संस्कार देकर कर रही हैं. मन ही मन मैं प्रफुल्लित हो गई. सच ही तो कहा टीचर ने बचपन से मैंने अपने बेटे को यही तो सिखाया है कि मार-पीट करने वाले गुंडे होते हैं. ये भी पढ़ें- स्कूल जाने वाले हर बच्चे की मां टेंशन में क्यों है
लेकिन उसके बाद फिर 'आज अली ने पुश कर दिया', 'आज अली ने स्टपिड कहा' 'आज अली ने मारा' सुनते-सुनते जब तंग आ गई तो मैंने अगत्य से पूछा कि जब वो मारता है तो आप क्यों नहीं मारते हो? तो उसने कहा कि मम्मा! मुझे हीरो बनना है गुंडा नहीं. उस दिन टीवी पर सिंघम मूवी आ रही थी, जिसके एक सीन में अजय देवगन गुंडो को मार रहे थे. मेरे दिमाग में अचानक से एक आइडिया आया. मैंने अगत्य से कहा कि 'देखो हीरो गुंडों को मार रहा है. हीरो मार नहीं खाते है बल्कि गुंडो को मारते हैं'. यकीन मानियए मेरी प्रॉब्लम सॉल्व हो गई. 'किस' के बारे में कैसे समझाएं एक दिन उसके क्लास के लड़के (बच्चे) ने एक लड़की (बच्ची) के होंठों पर किस कर लिया. सुनकर मेरा तो सर चकरा गया, ग्रेड वन के बच्चे और ये स्थिति! खैर जल्दी से मम्मीज की मीटिंग बुलाई गई और वहां जो बात समझ में आई वो ये, कि आज के प्रगतिशील सोच वाले समाज में 'हग' करना और 'किस' करना आम बात है और आज के पेरेंट्स ये नहीं चाहते की 'किस' के किसी भी सीन में उन्हें टीवी चैनल चेंज करना पड़े. इसलिए वो अपने बच्चों के सामने और बच्चों को 'किस' करने में सहज हैं. ये भी पढ़ें- अभी पता चल जाएगा कि आप बेटे और बेटी में भेद करते हैं या नहीं
बहुत हद तक मैं इस बात से सहमत हूं, लेकिन 'किस' हमेशा ही प्रेम प्रदर्शन का एक तरीका है और प्रेम तो बच्चों में भी होता है, लेकिन 'किस' बच्चों के प्रेम प्रदर्शन का तरीका नहीं. बच्चे अगर समय और उम्र के साथ-साथ सब सीखें तभी उनके व्यक्तित्व का सही विकास संभव है. 'किस' को बच्चों के लिये सहज बनाने के साथ-साथ बच्चों को उन्हीं की भाषा में समझाया जा सकता है कि किस सिर्फ बड़े लोग करते हैं, जैसे चाकू का इस्तेमाल सिर्फ बड़े लोग करते हैं. क्योकि किस अनहाईजीनिक है. बीइससे बीमारिया हो सकती हैं ! और चूंकि बड़े लोगों में इम्यूनिटी ज्यादा होती है तो वो जल्दी से बीमार नहीं होते है. बच्चों के सामने तानाशाह न बने कुछ लोग अपने बच्चों को घर में किसी भी बात के लिए रोकते-टोकते नहीं है, और घर के बाहर निकलते ही उन्हें बिलकुल परफेक्ट बच्चा चाहिये. लेकिन बच्चे तो बच्चे होते हैं, जब वो अपनी शरारतों पर उतर आते हैं तब पेरेंट्स की झल्लाहट बढ़ जाती है. लेकिन कहते हैं कि बच्चों का पहला स्कूल घर होता है और पहली शिक्षक मां, इसलिये बच्चों को सर्वप्रथम घर में ही सिखाना चाहिये. लेकिन याद रहे एक तानाशाह की तरह नहीं बल्कि बच्चों को बच्चों की भाषा में सिखाना चाहिए. जैसे पढ़ाने के लिए नए-नए तरीके ढूंढे जाते हैं. प्रेक्टिकल तरीके से बच्चे जल्दी सीखते हैं. ये भी पढ़ें- 'मैं स्मार्टफोन बनना चाहता हूं' अलग-अलग किस्म के बच्चे और पेरेंट्स- जिस तरह बच्चे अलग-अलग तरह के होते हैं वैसे ही पेरेंट्स भी अलग- अलग तरह के होते हैं. कई पेरेंट्स तानाशाह प्रवृति के होते है और घर में वो बच्चों पर इतना रोक-टोक करते हैं कि जब उनके बच्चे घर से बाहर निकलते हैं वो मनमानी करने लगते हैं.
कुछ पेरेंट्स बच्चे से एक बार में ही बात मानने की उम्मीद रखते हैं और अगर बच्चे कभी ऐसा नहीं करें तो मां बाप सबके सामने बच्चों को ना तो डांटने से बाज आते हैं और न ही मारने से. वो ये भूल जाते हैं कि छोटे बच्चों का भी आत्मसम्मान होता है. वो भी शर्मिंदगी महसूस करते हैं. अपने दोस्तों के सामने डांट खाकर ठीक वैसा ही महसूस करते हैं जैसे हम अपने दोस्तों के बीच शर्मिंदगी महसूस करते हैं. बच्चों का ईगो भी हर्ट होता है. बच्चों में ईगो सुनकर आप जरूर हैरान होंगे लेकिन यकीन मानिए छोटा ही सही बच्चों में भी ईगो होता है. जैसे कभी कभार दूसरे बच्चे से तुलना करके बच्चों को उकसाया जा सकता है. मुझे याद है इंटरनेशनल डे पर मेरा बेटा इंडिया का प्रतिनिधित्व करने की तैयारी कर रहा था, लेकिन उसे 'जन गण मन' याद नहीं हो रहा था. एक दिन उसकी टीचर ने उससे कहा कि 'मुझे शक है कि तुम इंडियन हो'. बस उसी दिन मेरे बेटे ने 'जन गण मन' याद कर लिया. लेकिन अत्यधिक तुलना के कारण बच्चे या तो हीन भावना के शिकार हो जाते हैं या ईर्ष्यालु प्रवृत्ति के हो जाते हैं. इसी तरह हमें लगता है कि यदि हम बच्चों की तारीफ करेंगे तो सुनकर बच्चे बिगड़ जाएंगे. लेकिन कभी-कभी बच्चों की तारीफ करने से बच्चे और ज्यादा अच्छा करने की कोशिश करते हैं. परन्तु बच्चों के साथ अति करने से बचें चाहे वो प्रशंसा हो या तुलना. संतुलन बनाकर रखना चाहिए. ये भी पढ़ें- बेटियों का ये दुलार शहर से मेरे गाँव कब पहुंचेगा? अक्सर देखा जाता है कि हम अपने अनुभवों और बड़प्पन के मद में इतने चूर हो जाते हैं कि बच्चों की राय हमारे लिये कोई मायने नहीं रखती. लेकिन कई बार छोटे बच्चे सही भी होते हैं. उन्हें सुनने की कोशिश करिये, उनके पास भी आइडिया होते हैं उन्हें आजमा कर देखिए.
बच्चे गिली मिट्टी जैसे होते है. हम उन्हें जैसा रूप देंगे वो वैसे ही बनेंगे. फिर भी कुछ बाते हैं जिन्हें ध्यान में रखा जाए तो बेहतर है- • अगर आपका बच्चा बहुत रूड व्यवहार करता है, तो इसका अर्थ है कि आप उसके साथ बहुत रूड हैं या आप परिवार में आपस में लड़ते हैं जो आपका बच्चा आपसे सीख रहा है. • अगर आपका बच्चा आपसे अपनी कोई गलती छुपा रहा है, इसका अर्थ है कि आप उसकी छोटी-छोटी गलतियों को बहुत तूल देते हैं. • अगर आपका बच्चा आपको जानबूझकर दूसरों के सामने डिस्टर्ब करता है तो इसका मतलब है कि शारीरिक तौर पर आप उससे दूरी बनाए रखते हैं. • अगर आपका बच्चा बाहर अपने लिए खड़ा नहीं हो पाता है तो इसका मतलब है कि आपने सबके सामने हमेशा उसे अनुशासित किया है. • अगर आपका बच्चा कायर बनता जा रहा है तो इसका मतलब आप हमेशा से ही उसके रास्ते में आने वाली मुश्किलों को हटाते आए हैं. • अगर आपका बच्चा दूसरों की भावनाओं की परवाह नहीं करता तो इसका मतलब आप भी उसकी भावनाओं की परवाह नहीं करते. • अगर आप अपने बच्चे को कुछ देते हैं और फिर भी वो दूसरे बच्चों की चीजें देखकर लालच में आ जाता है, इसका मतलब आप उसे उसकी पसंद की चीज नहीं दिलवाते. • अगर आपका बच्चा कोई निर्णय नहीं ले पाता है तो इसका मतलब आपने हमेशा उसे सलाह दी है, कभी उसे खुद निर्णय नहीं लेने दिया. • अगर आपका बच्चा जल्दी गुस्से में आ जाता है तो इसका मतलब है कि आपने कभी उसकी तारीफ नहीं की. वो गुस्सा सिर्फ आपका अटेंशन पाने के लिए करता है. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |