अगर आपसे ये कहा जाए कि माता-पिता को अपने बच्चे की नैपी चेंज करने से पहले उससे पूछ लेना चाहिए तो? जाहिर है आप इस मजाक कहेंगे क्योंकि एक छोटा सा बच्चे का कंसेंट जैसी चीज से कोई वास्ता नहीं होता. आपकी तरह दुनिया के ज्यादातर लोग भी यही सोच रहे हैं और इस बात का मजाक बना रहे हैं. लेकिन ये बात इतनी भी मजाकिया नहीं. इसे अगर गंभीरता से नहीं लेंगे तो काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
कंसेंट को कानून पर बात करते हुए सैक्सुअलिटी एक्सपर्ट डिऐन कार्सन(Deanne Carson) ने अमेरिकी टेलिविजन पर कहा कि 'माता-पिता को बच्चों की नैपी बदलने से पहले बच्चे की सहमती लेनी चाहिए, जिससे बच्चे में जन्म से ही सहमति का आदत डाली जा सके.'
देखिए वीडियो और बात समझिए
उनका कहना था कि वो सहमति से जुड़े मामलों पर तीन साल के बच्चों के साथ काम करना शुरू कर देती हैं लेकिन माता-पिता से उम्मीद की जाती है कि वो शुरू से ही बच्चों को इन बातों से अवगत कराएं. डिऐन का कहना है कि जब आप बच्चे से पूछेंगे तो जाहिर है वो आपको जवाब नहीं देगा, लेकिन अगर आप उसे समय देंगे और बॉडी लैंग्वेज या शरीर के हाव भाव का इंतजार करेंगे, उससे आई कॉन्टेक्ट बनाएंगे, तो बच्चे को समझ आएगा कि उसकी प्रतिक्रिया मायने रखती है.
उनकी ये बात काफी लोगों को समझ नहीं आई, और लोगों ने डिऐन की आलोचनाएं करना शुरू कर दिया. लेकिन अगर उनकी बात को गहराई से समझेंगे तो पाएंगे कि एक बच्चे का कंसेंट कितना जरूरी होता है, जब बात उसकी सुरक्षा की हो तो. यौन शोषण का खतरा महिलाओं से ज्यादा बच्चों को होता है.
क्यों बच्चों के लिए जरूरी है कंसेंट
बच्चों को छूना उन्हें प्यार से गले...
अगर आपसे ये कहा जाए कि माता-पिता को अपने बच्चे की नैपी चेंज करने से पहले उससे पूछ लेना चाहिए तो? जाहिर है आप इस मजाक कहेंगे क्योंकि एक छोटा सा बच्चे का कंसेंट जैसी चीज से कोई वास्ता नहीं होता. आपकी तरह दुनिया के ज्यादातर लोग भी यही सोच रहे हैं और इस बात का मजाक बना रहे हैं. लेकिन ये बात इतनी भी मजाकिया नहीं. इसे अगर गंभीरता से नहीं लेंगे तो काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
कंसेंट को कानून पर बात करते हुए सैक्सुअलिटी एक्सपर्ट डिऐन कार्सन(Deanne Carson) ने अमेरिकी टेलिविजन पर कहा कि 'माता-पिता को बच्चों की नैपी बदलने से पहले बच्चे की सहमती लेनी चाहिए, जिससे बच्चे में जन्म से ही सहमति का आदत डाली जा सके.'
देखिए वीडियो और बात समझिए
उनका कहना था कि वो सहमति से जुड़े मामलों पर तीन साल के बच्चों के साथ काम करना शुरू कर देती हैं लेकिन माता-पिता से उम्मीद की जाती है कि वो शुरू से ही बच्चों को इन बातों से अवगत कराएं. डिऐन का कहना है कि जब आप बच्चे से पूछेंगे तो जाहिर है वो आपको जवाब नहीं देगा, लेकिन अगर आप उसे समय देंगे और बॉडी लैंग्वेज या शरीर के हाव भाव का इंतजार करेंगे, उससे आई कॉन्टेक्ट बनाएंगे, तो बच्चे को समझ आएगा कि उसकी प्रतिक्रिया मायने रखती है.
उनकी ये बात काफी लोगों को समझ नहीं आई, और लोगों ने डिऐन की आलोचनाएं करना शुरू कर दिया. लेकिन अगर उनकी बात को गहराई से समझेंगे तो पाएंगे कि एक बच्चे का कंसेंट कितना जरूरी होता है, जब बात उसकी सुरक्षा की हो तो. यौन शोषण का खतरा महिलाओं से ज्यादा बच्चों को होता है.
क्यों बच्चों के लिए जरूरी है कंसेंट
बच्चों को छूना उन्हें प्यार से गले लगाना, उन्हें गोद में उठा लेना, उनकी पप्पी लेना, कहने को तो बहुत ही आम बात है. लोग अक्सर बच्चों के साथ ये करते हैं, लेकिन कौन किस नियत से बच्चों के साथ ये सब कर रहा है ये कोई देखकर नहीं समझ सकता. यहां तक कि मां बाप भी देखकर नहीं बता सकते कि एक व्यक्ति किसी छोटी बच्ची के साथ अगर प्यार जता रहा है तो उसकी नीयत कैसी है. पर हां उनके ऐसा करने से बच्चे जरूर असहज हो जाते होंगे.
सुनने में ये अजीब जरूर लगेगा लेकिन आप इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते कि आजकल बच्चे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, न बाहर और न ही अपने घर में. और बच्चों की उम्र भी अब कोई मायने नहीं रखती 8 महीने की बच्ची हो या स्कूल जाने वाला बच्चा, हर किसी के सर पर यौन शोषण की तलवार लटकी हुई है.
जानकारी के लिए बता दें कि सिर्फ पेनिट्रेशन को ही यौन शोषण नहीं कहा जा सकता. भारत के पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज) एक्ट के अनुसार, 'बच्चे को गलत तरीके से छूना, उसके सामने गलत हरकतें करना और उसे अश्लील चीज़ें दिखाना-सुनाना भी यौन शोषण के दायरे में आता है.'
ऐसे में अगर सहमति के बारे में बचपन से ही बच्चों को सिखाया जाए तो इसमें कोई नुकसान नहीं, बल्कि फायदा ही है.
लोगों में ये बहस का विषय है
भारत में तो नहीं, लेकिन विदेशों में सामाजिक परिवेश ऐसा है कि अपने से बड़ों के साथ मिलने पर बच्चे या तो गले लगते हैं या फिर किस करते हैं, ये वहां की संस्कृति है. हालांकि भारत में भी बच्चों को चूमना और गले लगाना अब आम है. ऐसे में इस अगर कोई ये बात कहे तो बहस तो होगी ही-
'बच्चों के शरीर पर माता-पिता को अपना अधिकार नहीं समझना चाहिए'
'अपने बच्चों के शरीर पर माता-पिता का अधिकार नहीं होना चाहिए. बच्चों को अपने शरीर पर खुद का कंट्रोल होना चाहिए. अगर बच्चे किसी के छूने से असहज महसूस करते हैं तो मातापिता को उन्हें न बोलना सिखाना चाहिए. इस तरह वो अपने साथ होने वाले यौन शोषण से खुद को बचा पाएंगे.' कुछ समय पहले जब सीएनएन की एक लेखिका कातिया हैटर(katia hetter) ने ये सब अपने आर्टिकल में लिखा तो लोगों ने इसका काफी विरोध किया था.
इसी आर्टिकल में एक एक्सपर्ट का कहना था कि 'कोई नाराज न हो जाए ये सोचकर जब हम अपने बच्चों पर दबाव डालते हैं कि उनके साथ ठीक से व्यवहार करो, तो हम बच्चों को ये सिखा रहे होते हैं कि उनका शरीर उनका अपना नहीं है, क्योंकि उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर हम उन्हें सामने वाले के सामने धकेलते हैं.'
इस विचार को बल देने के लिए एक फेसबुक पेज Safe kids, thriving families भी काम कर रहा है और उसका उद्देश्य भी यही है कि बच्चे सुरक्षित रहें.
'मैं पांच साल की हूं. मेरा शरीर मेरा है. मुझे किस और गले लगने के लिए मजबूर न करें. मैं सहमति के बारे में सीख रही हूं और इसपर आपका सहयोग मुझे जीवन भर सुरक्षित रहने में मेरी मदद करेगा.'
'क्योंकि तुम प्यार से बोलती हो तो इसका मतलब ये नहीं कि सामने वाला व्यक्ति हां ही कहेगा. और इसी तरह अगर कोई तुमसे अच्छे से बात करता है तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हें हां कहना चाहिए.' ये मदद उसे यौन शोषण से बचाएगी.
कंसेंट यानी सहमति की बात की जाए तो हमारे देश के लोग इस शब्द को ज्यादा अहमियत नहीं देते. लेकिन बात जब बच्चों की सुरक्षा की हो तो हर किसी को गंभीर हो जाना चाहिए. बच्चे समझदार हैं तो अच्छा है, लेकिन दूध पीते बच्चों से इजाज़त लेने का मतलब उनकी आज्ञा से नहीं बल्कि उन्हें समझाने से है. हम छोटे बच्चों में संस्कार बचपन से डालते हैं, अगर हम उन्हें हां या न बोलना सिखा सकते हैं तो ये भी उसी वक्त से क्यों नहीं सिखा सकते? अब भी अगर आपको सैक्सुअलिटी एक्सपर्ट डिऐन कार्सन की नैपी चेंज करने के लिए कंसेंट वाली बात मजाक लग रही है तो फिर आपकी मदद कोई नहीं कर सकता.
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